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दुर्लभ पारिजात नहीं दे रहा फल, वैज्ञानिक शोध से निकालेंगे हल

एनबीआरआइ के वैज्ञानिक प्राचीन वृक्षों में फल न आने के कारणों पर शीघ्र करेंगे रिसर्च। एनबीआरआइ के अलावा बाराबंकी में है महाभारतकालीन वृक्ष सुलतानपुर में भी है ऐतिहासिक पारिजात।

By Anurag GuptaEdited By: Published: Tue, 26 Mar 2019 09:57 PM (IST)Updated: Sat, 30 Mar 2019 08:39 AM (IST)
दुर्लभ पारिजात नहीं दे रहा फल, वैज्ञानिक शोध से निकालेंगे हल
दुर्लभ पारिजात नहीं दे रहा फल, वैज्ञानिक शोध से निकालेंगे हल

लखनऊ, (महेंद्र पांडेय)। पौराणिक कथाओं ने जहां पारिजात वृक्ष को लोगों की आस्था से जोड़ा है तो वैज्ञानिक तथ्यों ने इसे समसामयिक बनाया है। बाराबंकी के किंतूर गांव के पारिजात वृक्ष का धार्मिक महत्व है। सुलतानपुर, हमीरपुर, कानपुर और लखनऊ में भी पारिजात की दुर्लभ प्रजातियों के वृक्ष हैं। इन पेड़ों पर समय से फूल तो आते हैं लेकिन वह फल के रूप में तब्दील नहीं हो रहे हैं। इसका कारण बीज न बन पाना है। इन प्रजातियों को संरक्षित और विकसित करने के लिए राजधानी के नेशनल बॉटनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनबीआरआइ) ने शोध करने की योजना बनाई है। शीघ्र ही फल न आने के कारणों पर शोध कर उस दिशा में उपचार किया जाएगा।

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पारिजात के कई नाम, पहचान भी अलग :

उत्तर प्रदेश समेत देश में पारिजात की सीमित प्रजातियां हैं। वैज्ञानिक डॉ. आरएस कनौजिया ने बताया कि बाराबंकी समेत कुछ जिलों में पारिजात की दुर्लभ प्रजातियां अभी भी हैं। इसका वैज्ञानिक नाम एडनसॉनिया डिजिटाटा है। वैसे इसे हरसिंगार और कल्पवृक्ष के रूप में भी जाना जाता है, लेकिन दुर्लभ प्रजातियों के वृक्ष हरसिंगार से बड़े होते हैं। इसके फूल और फल का भी आकार बड़ा होता है। एनबीआरआइ के डॉ. केजे सिंह ने बताया कि हरसिंगार के वृक्षों में फूल रात में ही खिलते हैं, सुबह गिर जाते हैं। यह इसकी खासियत है।

बहुपयोगी है पारिजात

पारिजात का उपयोग कई तरह से होता है। इसके फल में सफेद बीज होता है। इसे पीस कर पानी में घोल कर पिया जाता है। विदेश में इसके बीज से एनर्जी ड्रिंक तैयार किए जाते हैं। इसके औषधीय गुण भी हैं। चर्म रोगों के इलाज में वैद्य इसकी छाल का प्रयोग करते हैं। अफ्रीका में इसकी एक प्रजाति के वृक्ष में तो चाकू मारने पर पानी निकलने लगता है।

चमगादड़ से होता है पॉलीनेट

पारिजात के फूलों से फल और बीज बनने की रोचक प्रक्रिया है। वैज्ञानिकों के अनुसार, पारिजात पर चमगादड़ों का बसेरा रहता है। उससे पॉलीनेशन (परागण) होता है। इसके बाद फल आने की प्रक्रिया प्रारंभ हो जाती है। बाराबंकी के किंतूर और एनबीआरआइ परिसर समेत कई वृक्षों पर चमगादड़ नहीं आ रहे हैं या नहीं, रिसर्च का मुख्य बिंदु यह है। इसके अलावा पॉलीनेट के अन्य कारणों पर शोध किया जाएगा।

ये है पारिजात का पौराणिक महत्व

बाराबंकी शहर से करीब 38 किमी दूर बसे किंतूर गांव में दुर्लभ पारिजात है। बताते हैं कि पांडवों ने माता कुंती के साथ कुछ समय यहां बिताया था। पारिजात के सफेद पुष्पों से ही माता कुंती भगवान शिव की पूजा किया करती थीं। इसकी ऊंचाई करीब 45 फीट है। वहीं, सुलतानपुर के उद्योग केंद्र परिसर में प्राचीन पारिजात वृक्ष है। यह वृक्ष स्थानीय निवासियों की आस्था का केंद्र है। इसके अलावा लखनऊ के केजीएमयू परिसर, कानपुर, हमीरपुर और इलाहाबाद में दुर्लभ प्रजाति के पारिजात हैं। वहां भी ये वृक्ष लोगों की आस्था के प्रतीक हैं।

एनबीआरआइ के चीफ साइंटिस्ट डॉ. एसके तिवारी ने बताया कि मई-जून में पारिजात में फूल आते हैं। यही समय रिसर्च के लिए उपयुक्त होगा। एनबीआरआइ व बाराबंकी के किंतूर समेत अन्य वृक्षों पर रिसर्च कर उनका उपचार किया जाएगा।


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