बीआरडी त्रासदी : नौ आरोपितों के खिलाफ नामजद एफआइआर दर्ज
लखनऊ की हजरतगंज कोतवाली में बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य डॉ. राजीव मिश्र सहित नौ आरोपितों के खिलाफ नामजद एफआइआर दर्ज की गई है। ...और पढ़ें

लखनऊ (जेएनएन)। गोरखपुर के बाबा राघवदास मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौत के मामले में राजधानी की हजरतगंज कोतवाली में मेडिकल कॉलेज के निलंबित प्राचार्य डॉ.राजीव मिश्र सहित नौ आरोपितों के खिलाफ नामजद एफआइआर दर्ज की गई है। एक दिन पहले सिर्फ चार लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज कराए जाने की बात कही जा रही थी।
इस मामले की जांच रिपोर्ट में मुख्य सचिव राजीव कुमार ने चार आरोपियों पर आपराधिक कार्रवाई की संस्तुति की थी, लेकिन एफआइआर में उन सभी आठ लोगों को नामजद किया गया, जिन्हें गोरखपुर के डीएम ने घटना का जिम्मेदार माना था। प्राचार्य की पत्नी डा.पूर्णिमा शुक्ला को भी नामजद किया गया है। महानिदेशक चिकित्सा शिक्षा व प्रशिक्षण केके गुप्ता की ओर से कल शाम हजरतगंज कोतवाली में एफआइआर दर्ज करने के बाद मामले की विवेचना गोरखपुर के गुलरिहा थाने भेज दी गई है।
एफआइआर में डॉ.मिश्र, उनकी पत्नी डॉ.पूर्णिमा शुक्ला, पुष्पा सेल्स के संचालक मनीष भंडारी, ऐनिस्थीसिया विभागाध्यक्ष डॉ.सतीश व 100 बेड एईएस वार्ड के नोडल प्रभारी डॉ.कफील खान के अलावा चीफ फार्मासिस्ट गजानंद जायसवाल,कनिष्ठ सहायक लिपिक लेखा अनुभाग उदय प्रताप शर्मा, सहायक लिपिक लेखा संजय कुमार त्रिपाठी व सहायक लेखाकार सुधीर कुमार पांडेय को भी नामजद किया गया है। तहरीर में बताया गया कि 10 अगस्त को बीआरडी मेडिकल कॉलेज में बच्चों व अन्य की मृत्यु के संबंध में विभिन्न समाचार पत्रों में प्रकाशित रिपोर्ट में यह आपराधिक कृत्य सामने आए हैं। मेडिकल कॉलेज के विभिन्न वार्डों में लिक्विड ऑक्सीजन गैस की सप्लाई मेसर्स पुष्पा सेल्स प्रा.लि. द्वारा की जाती है लेकिन निर्बाध आपूर्ति में कंपनी ने अपने दायित्वों का सम्यक निर्वहन नहीं किया गया, जो आपराधिक न्याय भंग की श्रेणी में आता है। तीन अगस्त को मेडिकल कॉलेज के कर्मचारियों ने पुष्पा सेल्स संस्थान को यह बताया कि लिक्विड ऑक्सीजन खत्म हो रही है। यह जानते हुए भी लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई रोक दी गई। इस मामले में चिकित्सकों ने वैकल्पिक व्यवस्था के तहत ऑक्सीजन के जंबो सिलेंडर उपलब्ध करा लिए लेकिन, कंपनी का कृत्य आपराधिक प्रयास की श्रेणी में आता है।
बिना अनुमति ही चले गए
डॉ. सतीश के 11 अगस्त को बिना अनुमति मुख्यालय छोड़कर जाने से विपरीत परिस्थितियां उत्पन्न हुईं। तहरीर में कहा गया है कि उनकी जानकारी में यह तथ्य था कि लिक्विड ऑक्सीजन की सप्लाई बाधित होने से मरीजों के जीवन को संकट संभावित है। इन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन न करते हुए वरिष्ठ अधिकारियों को भी अवगत नहीं कराया।
अपने नाम का बोर्ड लगा चला रहे थे पत्नी का अस्पताल
डॉ.कफील खान ने लिक्विड ऑक्सीजन की कमी की जानकारी होते हुए भी इसे वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं बताया। तहरीर में कहा गया है कि उनके द्वारा सरकारी ड्यूटी को नजरअंदाज करते हुए उप्र मेडिकल काउंसिल में पंजीकृत न होने के बावजूद भी अपनी पत्नी शबिस्ता खान द्वारा संचालित नर्सिंग होम में अनुचित लाभ के लिए धोखा देने के इरादे से अपने नाम का बोर्ड लगाकर प्रैक्टिस की जा रही है। डॉ.कफील द्वारा मरीजों के अपेक्षित इलाज में सावधानी नहीं बरती जा रही थी। डॉ. कफील के द्वारा संचार एवं डिजिटल माध्यम से धोखा देने के इरादे से गलत तथ्यों को प्रसारित किया गया।
इन धाराओं में दर्ज हुई रिपोर्ट
सदोष मानव वध का प्रयास, आपराधिक न्यास भंग, धोखाधड़ी, षड्यंत्र, भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, इंडियन मेडिकल काउंसिल एक्ट 1956 व आइटी एक्ट।
दो दिनों तक एफआइआर दबाए रही पुलिस
हजरतगंज कोतवाली में मुकदमा 23 अगस्त की रात ही दर्ज कर लिया गया था, लेकिन उच्च स्तरीय दबाव के चलते यहां पुलिस चुप्पी साधे रही। एसएसपी दीपक कुमार से लेकर अन्य अधिकारी रिपोर्ट की बात से इन्कार करते रहे। ऐसे में सवाल यह भी उठ रहा है कि आखिर किस दबाव में रिपोर्ट को इस कदर गोपनीय रखा गया। वहीं एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने एफआइआर की जानकारी मीडियाकर्मियों को होने की बात को लेकर अधीनस्थों को खूब लताड़ा भी।
खास बात
चिकित्सा शिक्षा महानिदेशक ने जो एफआइआर दर्ज कराई है, उसके लिए मुख्य सचिव राजीव कुमार की अध्यक्षता में गठित चार सदस्यीय जांच समिति की रिपोर्ट के निष्कर्षों को आधार नहीं बनाया गया है। पुलिस को दी तहरीर में उन्होंने 10 अगस्त की घटना को लेकर अखबारों में प्रकाशित खबरों का हवाला दिया है।
कोई फरार तो कोई बीमार
बीआरडी मेडिकल कालेज प्रकरण में जांच रिपोर्ट आने के बाद मामले में जिन लोगों के नाम जुड़े हैं उनमें से दो लोगों का पता नहीं है। दो डाक्टर खुद को बीमार बताकर मेडिकल लीव पर चले गए हैं। कालेज परिसर सबसे पहले छोडऩे वालों में निलंबित प्राचार्य डा. राजीव मिश्र व उनकी पत्नी डा. पूर्णिमा शुक्ला शामिल हैं। दोनों का 18 अगस्त से ही कुछ पता नहीं है। आवास पर ताला लटक रहा है। फोन स्विच आफ मिल रहा है। डा. कफील खान भी बीमारी का बहाना बनाकर 14 अगस्त से ही मेडिकल लीव पर हैं। उनका निजी अस्पताल बंद है। कहां हैं किसी को पता नहीं। चिकित्सक व कर्मचारी सिर्फ इतना ही बता पा रहे हैं कि डा. कफील मेडिकल लीव पर हैं। फोन नहीं मिल रहा है। रिपोर्ट में दोषी पाए गए एक अन्य चिकित्सक व ऐनिस्थीसिया के विभागाध्यक्ष डा. सतीश कुमार की भी यही स्थिति है। ऐनिस्थीसिया विभाग में उनके कमरे में ताला तो नहीं लगा था, लेकिन बाहर से बंद था। जब प्राचार्य से बात की गई तो पता चला कि मेडिकल लीव पर हैं। हमेशा फोन पर उपलब्ध रहने वाले डा. सतीश कुमार का फोन बंद मिल रहा है।
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रिपोर्ट में दोषी पाए गए कर्मचारी संजय कुमार त्रिपाठी व उदयराज शर्मा ने निलंबित होने के बाद प्राचार्य कार्यालय पहुंचकर अपने निलंबन का आदेश रिसीव भी कर लिया।
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गजानन जायसवाल सुबह दिखाई पड़े लेकिन इसके बाद नहीं दिखे। निलंबित कर्मचारी सुधीर पांडेय न तो कालेज में नजर आए और न ही प्राचार्य कार्यालय में ही दिखे। नेहरू अस्पताल स्थित उनका कार्यालय भी बंद था।

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