मुलायम-सोनिया और बर्क सहित राजनीति के ये बड़े योद्धा 18वीं लोकसभा में नहीं आएंगे नजर, इनके टिकटों पर लगी टकटकी
Lok Sabha Election 2024 Special Story अरसे तक राजनीति के फलक पर चमकने वाले कई सितारों ने सत्रहवीं लोकसभा को भी रोशन किया। यह बात और है कि राजनीति में पराक्रम के बल पर पिछले आम चुनाव में जीत दर्जकर संसद पहुंचने वाले ऐसे कई सूरमा अब अठारहवीं लोकसभा में नजर नहीं आएंगे। पढ़ें विशेष संवाददाता राजीव दीक्षित की रिपोर्ट...

राजीव दीक्षित, लखनऊ। सात बार लोकसभा के सदस्य रहे राजनीति के पहलवान मुलायम सिंह यादव की कमी अठारहवीं लोकसभा में पक्ष-विपक्ष सभी को खलेगी। 10 बार विधानसभा के सदस्य निर्वाचित हुए मुलायम को अपने दीर्घ राजनीतिक जीवन में संसद में चार लोकसभा क्षेत्रों-मैनपुरी, संभल, कन्नौज और आजमगढ़ का प्रतिनिधित्व करने का गौरव प्राप्त हुआ।
'यारों के यार' मुलायम
‘यारों के यार’ कहे जाने वाले मुलायम ने इटावा में अपने पैतृक गांव सैफई की पगडंडियों से राजनीतिक सफर शुरू कर राजनीति की बुलंदियों को छुआ। तीन बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री और देश के रक्षा मंत्री पद को संभालने वाले मुलायम के खाते में समाजवादी पार्टी की स्थापना का श्रेय भी जाता है। उनकी छत्रछाया में फले-फूले सैफई के यादव परिवार की गिनती देश के सबसे बड़े राजनीतिक घरानों में होती है।
सत्रहवीं लोकसभा के सदस्य रहे मुलायम ने 10 अक्टूबर 2022 को दुनिया से विदा ली। भाजपा के दिग्गज नेता और लंबे समय तक बरेली और रुहेलखंड में पार्टी का पर्याय रहे संतोष गंगवार भी अठारहवीं लोकसभा में नजर नहीं आएंगे। लोकसभा में अपनी आठ पारियों के दौरान उन्होंने संसद में लगभग तीस वर्ष गुजारे। वर्ष 2009 में पंद्रहवीं लोकसभा के चुनाव में मामूली अंतर से हुई हार से पहले वह लोकसभा में एंट्री की डबल हैट्रिक लगा चुके थे। इसके बाद भी वह सोलहवीं और सत्रहवीं लोकसभा के सदस्य रहे।
पार्टी की ओर से तय की गई 75 वर्ष की आयुसीमा पार करने के कारण पूर्व केंद्रीय मंत्री गंगवार को अठारहवीं लोकसभा के चुनाव में पार्टी के टिकट से वंचित होना पड़ा। गांधी परिवार की बहू और 25 वर्षों तक कांग्रेस की बागडोर थामने वाली सोनिया गांधी को व्यावहारिकता के तकाजे से पार्टी की कुलमाता कहा जा सकता है। अठारहवीं लोकसभा में उनकी भी कमी महसूस होगी। लोकसभा से उनका रिश्ता 1999 में शुरू हुआ था जब दिवंगत पति व पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की अमेठी सीट के साथ कनार्टक की बेल्लारी सीट से चुनाव जीतकर उन्होंने संसद में दस्तक दी थी।
2004 से 2019 तक लगातार आम चुनावों में दर्ज की जीत
बाद में बेल्लारी सीट उन्होंने छोड़ दी थी। इसके बाद 2004 से 2019 तक लगातार चार आम चुनावों में रायबरेली सीट से जीतकर उन्होंने लोकसभा में उस संसदीय क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया कभी जिसकी नुमाइंदगी उनकी सास पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी किया करती थीं। उनके राज्यसभा का सदस्य निर्वाचित होने से यह साफ है कि अठारहवीं लोकसभा में अब वह नहीं दिखाई देंगी। हालांकि निगाहें इस पर भी लगी हैं कि उनके बाद रायबरेली सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव मैदान में उतरता है या कोई और।
बर्क भी थे राजनीति के बड़े योद्धा
पिछले महीने ही अंतिम सांस लेने वाले सत्रहवीं लोकसभा के सबसे बुजुर्ग सदस्य शफीकुर्रहमान बर्क भी राजनीति के बड़े योद्धा थे। चार बार विधायक रहे बर्क को पांच बार लोकसभा का सदस्य चुने जाने का गौरव भी हासिल था। वह तीन बार मुरादाबाद और दो बार संभल से लोकसभा सदस्य चुने गए। सपा ने उनके सियासी दमखम पर भरोसा जताते हुए उन्हें अठारहवीं लोकसभा के चुनाव में संभल से अपना प्रत्याशी घोषित किया था, लेकिन होनी को यह मंजूर नहीं था। उनकी मृत्यु के बाद सपा ने उनके पौत्र और कुंदरकी के विधायक जियाउर्रहमान बर्क को संभल से पार्टी प्रत्याशी बनाया है।
भारतीय पुलिस सेवा से त्यागपत्र देकर राजनीति में पदार्पण करने वाले मुंबई के पूर्व पुलिस कमिश्नर सत्यपाल सिंह ने अपने सियासी सफर का आगाज धमाके से किया था। 2014 में भाजपा प्रत्याशी के रूप में उन्होंने बागपत सीट पर रालोद के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को हराते हुए तीसरे स्थान पर धकेल दिया था। चौधरी अजित सिंह को अपने गढ़ बागपत में 1998 में सोमपाल शास्त्री के हाथों मिली शिकस्त के बाद यह दूसरी हार थी। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में वह राज्य मंत्री भी रहे। सत्यपाल सिंह ने अगले यानी 2019 के लोकसभा चुनाव में चौधरी अजित सिंह के पुत्र जयन्त चौधरी को हराया।
इस बार भाजपा ने बागपत सीट रालोद को दे दी है, जिसने राजकुमार सांगवान को प्रत्याशी बनाया है। ऐसे में सत्यपाल सिंह का अठारहवीं लोकसभा में पहुंचने का रास्ता बंद हो गया है। कुछ ऐसा ही हाल गाजियाबाद से दो बार भाजपा सांसद निर्वाचित हुए केंद्रीय राज्य मंत्री जनरल वीके सिंह का है, जिन्हें पार्टी ने इस बार टिकट नहीं दिया। कभी मेरठ के भाजपा महानगर अध्यक्ष रहे राजेन्द्र अग्रवाल भाजपा सांसद के तौर पर वर्ष 2009 से लगातार तीन बार लोकसभा में मेरठ का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। इस बार पार्टी की ओर से उम्मीदवार न बनाए जाने के कारण वह अठारहवीं लोकसभा के चुनाव मैदान में ही नहीं हैं।
इनके टिकटों पर लगी टकटकी
अब तक छह बार लोकसभा की देहरी लांघ चुके ब्रजभूषण शरण सिंह को भाजपा कैसरगंज संसदीय सीट से फिर प्रत्याशी घोषित करेगी या नहीं, इस पर टकटकी लगी हुई है। ब्रजभूषण 1991 व 1999 में गोंडा से भाजपा सांसद चुने जा चुके हैं, जबकि उनकी पत्नी केतकी देवी सिंह 1996 में संसद में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। वह 2004 में बलरामपुर सीट से भी भाजपा के टिकट पर सांसद निर्वाचित हुए थे। 2009 का चुनाव उन्होंने कैसरगंज से बतौर सपा प्रत्याशी जीता और उसके बाद से अब तक लगातार दो आम चुनावों में इस सीट पर वह भाजपा का परचम लहराते रहे हैं। भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष रहते वह विवादों में घिरे और इस वजह से उन्हें फिर टिकट दिए जाने को लेकर ऊहापोह की स्थिति है।
पूर्व मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा की पुत्री डा. रीता बहुगुणा जोशी को सत्रहवीं लोकसभा के सदस्य के तौर पर पहली बार संसद पहुंचने का मौका मिला, लेकिन राजनीति से उनका पुराना नाता रहा है। वह प्रयागराज की महापौर, अखिल भारतीय महिला कांग्रेस और उप्र कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष रहने के अलावा योगी सरकार के पहले कार्यकाल में मंत्री भी थीं। भाजपा के 75 पार वाले फार्मूले की जद में आने के कारण इस बार इलाहाबाद से उनके टिकट को लेकर संशय है।
पिछले चुनाव में आजमगढ़ से जीतकर लोकसभा पहुंचे सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर भी निगाहें लगी हैं कि वह अठारहवीं लोकसभा के चुनाव संग्राम में उतरते हैं या नहीं। पिछला चुनाव जीतने के बाद अखिलेश ने 2022 में लोकसभा की सदस्यता से त्यागपत्र दे दिया था।
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