अंतिम उड़ान के साथ मिग-21 को 'अलविदा' , भावुक हुए जांबाज पायलट; कही दिल की बात
लखनऊ से निशांत यादव की रिपोर्ट के अनुसार मिग-21 लड़ाकू विमान भारतीय वायुसेना से 62 वर्षों की सेवा के बाद रिटायर हो गया। जिला सैनिक कल्याण अधिकारी विंग कमांडर मुकेश तिवारी ने मिग-21 के साथ अपने अनुभव साझा किए। एयर चीफ मार्शल बीरेंदर सिंह धनोआ ने इसे ट्रेनिंग के लिए बेहतरीन विमान बताया। मिग-21 को उड़ता ताबूत कहना गलत है क्योंकि इसका सुरक्षा रिकॉर्ड अच्छा रहा है।

निशांत यादव, लखनऊ। मिग-21 वह लड़ाकू विमान जिसने न केवल मेरा करियर बनाया, बल्कि मुझे अनुशासन, टीम वर्क और सटीकता के साथ जीना सिखाया। ढेर सारी यादें, चुनौती और गर्व देने के लिए मिग-21 का बहुत-बहुत शुक्रिया। मिग-21 भारतीय वायुसेना की 62 साल की सेवा के बाद आप रिटायर तो हो सकते हो, लेकिन आपकी परंपरा उन लोगों के दिल में सदैव जीवित रहेगी, जिन्होंने आपके साथ काम किया। आप एक मशीन से बढ़कर थे।
भारत की ताकत और बदलाव के प्रतीक, जिला सैनिक कल्याण अधिकारी विंग कमांडर (अवकाशप्राप्त) मुकेश तिवारी की बहुत सी यादें मिग-21 के साथ जुड़ी हैं। बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन की 35 स्क्वाड्रन में रहते हुए भी उन्होंने मिग-21 के साथ कई ऑपरेशनों में हिस्सा लिया।
शुक्रवार मिग-21 चंडीगढ़ में अंतिम बार उड़ान भरा। मिग-21 की विदाई विंग कमांडर तिवारी को भावुक कर देने वाली है।
मिग-21 को 'उड़ता ताबूत' की संज्ञा दी गई, लेकिन वायुसेना में अपना करियर शुरू कर कई साल तक इससे जुड़े रहे पायलट इस बात को सिरे से नकारते हैं। स्वयं सेवानिवृत्ति से ठीक पहले मिग-21 की अंतिम बार उड़ान भरने वाले एयर चीफ मार्शल (अवकाशप्राप्त) बीरेंदर सिंह धनोआ इसे ट्रेनिंग के लिए सबसे अच्छा लड़ाकू विमान मानते हैं।
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक एयर चीफ मार्शल धनोआ मानते हैं कि भारतीय वायुसेना दुनिया के किसी अन्य देशों की अपेक्षा अधिक समय तक मिग-21 इसलिए उड़ा सकी, क्योंकि इसका अपग्रेडेशन आसान था, इसलिए यह एचएएल के आधारभूत ढांचे को भी सूट करता था।
मिग-21 को उड़ता ताबूत कहा गया, यह बिल्कुल गलत है। यदि आप इसके हादसों की उड़ान और उसके घंटे से तुलना करें तो मिग-21 का रिकॉर्ड बहुत अच्छा है। मिग-21 अपने समय के ही विमान एफ-104 स्टार फाइटर की तरह सुरक्षा कारणों से रिटायर या फेसआउट नहीं हो रहा है। यह तकनीकी आयु पूरा होने के कारण सेवानिवृत्त हो रहा है।
इसकी एवियोनिक्स चौथी पीढ़ी के लड़ाकू विमानों से मेल खाती थी। समस्या उड़ान योग्यता की नहीं, बल्कि ऑपरेशनल प्रासंगिकता की थी। मिग-21 के कुछ हादसे मानवीय चूक के कारण हुए हैं। मिग-21 से ट्रेनिंग ज्यादा आसान है। इसका रखरखाव सरल है।
हां, अब इसकी जगह तेजस लड़ाकू विमान लेंगे, लेकिन उसकी डिलीवरी को लेकर अब तक स्थिति साफ नहीं है। मिग-21 के हटने के बाद उसकी जगह खाली हुईं स्कवाड्रन को भरा जाना जरूरी है।
2004 से 2008 तक बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन से मिग-21 की उड़ान भरने वाले ग्रुप कैप्टन कृष्णन सूर्य नारायन कहते हैं कि इसकी तेज लैंडिंग और फायर पावर रोमांच खड़े कर देने वाली होती थी। भुज में 37 स्कवाड्रन में तैनाती मिलते ही वर्ष 2003 में पहली बार लड़ाकू विमान को उड़ाने का मौका मिला।
यह विमान फाइटर पायलट, फाइटर कंट्रोलर के सीखने के लिए सबसे बेहतर था। एयर डिफेंस कालेज मेमौरा के फाइटर कंट्रोलरों की ट्रेनिंग में भी मिग-21 ने अहम भूमिका निभायी। घने कोहरे में भी मिग-21 अपना रास्ता ढूंढ ही लेता था।
लखनऊ में मिग-21 के जाने के बाद तेजस की तैनाती न होने तक उसकी कमी जरूर खलेगी। बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन के पूर्व चीफ ऑपरेशन ऑफिसर विंग कमांडर मुकेश तिवारी कहते हैं कि उन्होंने अपने करियर में कई लड़ाकू विमान उड़ाए, मिग-21 की कुल 150 घंटे की उड़ान ने यह जरूर बताया कि यह ऐसा विमान है, जो गलती करने पर पायलट को माफ नहीं करता। इसे उड़ता ताबूत कहना गलत है।
भारतीय वायु सेना अपने बेड़े में नए विमानों का स्वागत कर रही है, ऐसे में मिग-21 भले ही पीछे हट रहा हो, लेकिन यह हमारे दिलों में हमेशा के लिए जगह बनाए रखेगा। इसके योगदान को केवल उड़ान मिशनों या बिताए गए घंटों के आधार पर नहीं मापा जा सकता है।
मिग-21 भले ही सेवानिवृत्त हो रहा हो, लेकिन इसकी विरासत वायु योद्धाओं की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी। इस शानदार विमान ने यह सुनिश्चित किया कि भारत का आसमान दशकों तक सुरक्षित रहे।
अपने करियर में 800 घंटे में से मिग-21 की 500 घंटे की उड़ान भरने वाले स्कवाड्रन लीडर अंकुर नाईक अपने अनुभवों के आधार पर कहते हैं कि इसकी गति ट्रेनिंग विमानों से बहुत ज्यादा है। मिग-21 आम नहीं, सुपरसोनिक लड़ाकू विमान है। इसके जेट इंजन की ताकत केवल 10 से 15 सेकेंड में टेक आफ करा देती है।
इस एयरक्राफ्ट को छूने से पहले इसकी तकनीक को लेकर अध्ययन करना होता है। बरेली की मिग-21 की स्कवाड्रन को लखनऊ के बख्शी का तालाब लाकर यहां की स्कवाड्रन में शामिल करने का मुझे मौका मिला। बरेली की स्थिति अलग थी और लखनऊ की चुनौती अलग, लेकिन मिग-21 हर तरह के रोल निभाने में सक्षम रहा।
मध्य उत्तर प्रदेश की बढ़ाई ताकत
मिग-21 की फुल स्क्वाड्रन ने बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन को ऑपरेशनल की दिशा में और मजबूत किया। 1966 में बख्शी का तालाब वायुसेना स्टेशन की स्थापना केयर व मेंटेनेंस यूनिट के रूप में हुई थी। 1983 में हाफ स्क्वाड्रन तैनात की गई।
वहीं, 2001 में 35 स्क्वाड्रन को लखनऊ में तैनात किया गया। 2005 में बरेली की स्क्वाड्रन को यहां की 35 स्क्वाड्रन के साथ मिला दिया गया। 2019 तक मिग-21 ने लखनऊ में उड़ान भरी थी।
मिग से बलिदानी हुआ था शहर का लाल
पाकिस्तान से सटे जैसलमेर के पास 24 दिसंबर 2021 में मिग-21 के दुर्घटनाग्रस्त होने से लखनऊ के रहने वाले विंग कमांडर हर्षित सिन्हा बलिदानी हो गए थे।
विंग कमांडर हर्षित की तैनाती उन दिनों श्रीनगर में थी। वह विंग कमांडर अभिनंदन सिंह के बैचमेट थे। दोनों ने साथ में ट्रेनिंग ली थी और एक साथ कई वायुसेना स्टेशनों में अपनी सेवाएं दी थीं।
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