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    महामंडलेश्वर विवादः आदि शंकराचार्य का सपना तार-तार

    By Nawal MishraEdited By:
    Updated: Wed, 05 Aug 2015 11:25 PM (IST)

    सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा, उसके निरंतर प्रचार-प्रसार के लिए आदिगुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों की नींव रखी थी। यहां रहने वाले संन्यासी सिर्फ धर्म के निमित्त कार्य करें, भोग- विलास से दूर रहें, इसके मद्देनजर अखाड़ों में प्रवेश का कड़ा नियम बना। वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद संन्यासी

    लखनऊ। सनातन धर्म एवं संस्कृति की रक्षा, उसके निरंतर प्रचार-प्रसार के लिए आदिगुरु शंकराचार्य ने अखाड़ों की नींव रखी थी। यहां रहने वाले संन्यासी सिर्फ धर्म के निमित्त कार्य करें, भोग- विलास से दूर रहें, इसके मद्देनजर अखाड़ों में प्रवेश का कड़ा नियम बना। वर्षों की कड़ी तपस्या के बाद संन्यासी का ही दर्जा दिए जाने की बात थी, पर मौजूदा दौर में अखाड़े उद्देश्य से भटक गए हैं। आदि शंकराचार्य का सपना तार-तार हो चला है। शायद इसीलिए पैदा हो जाते हैं सचिन दत्ता उर्फ सच्चिदानंद गिरि तथा स्वामी नित्यानंद।

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    आदि शंकराचार्य ने दक्षिण दिशा में श्रृंगेरी मठ, पूर्व में गोवर्धन मठ, उत्तर में केदारनाथ मठ एवं पश्चिम दिशा में द्वारका स्थित शारदा मठ की स्थापना की थी। अपने विद्वान शिष्यों को यहां पीठाधीश्वर बनाया। मठों में रहने वाले संन्यासियों को वेद, वेदांग, उपनिषद का अध्ययन कर धर्म-प्रचार की जिम्मेदारी दी गई। महामहोपाध्याय डॉ. रामजी मिश्र कहते हैं कि आदि शंकराचार्य को लगा कि धर्म सिर्फ विद्वता से नहीं बढ़ेगा, दुष्टों को उन्हीं की भाषा में जवाब देना आवश्यक है, तब उन्होंने अखाड़ों की नींव रखी। अखाड़ों के सदस्य समूह में रहें इसके लिए उन्हें अखंड की संज्ञा दी गई। वहां संन्यासियों को अस्त्र-शास्त्रों के संचालन व मल्ल विद्या की शिक्षा दी जाती थी। कालांतर में अखंड शब्द 'अखाड़ा' हो गया। साथ ही संन्यासाश्रम को शास्त्रानुमोदित एवं सुनियमों से संगठित कर 10 पद (नाम) देकर दशनामी संन्यासियों की संप्रदाय परंपरा प्रारंभ हुई। यह संप्रदाय थे क्रमश: गिरि, पुरी, भारती, वन, अरण्य, पर्वत, सागर, तीर्थ, आश्रम और सरस्वती। आगे चलकर संन्यासियों के छह अखाड़े जूना, निरंजनी, महानिर्वाणी, आनंद, अटल और आह्वान के रूप में सामने आए। अग्नि अखाड़ा ब्रह्मचारियों का बना। वैष्णवों का निर्वाणी अनी, दिगंबर अनी व निर्मोही अनी अखाड़ा हुआ। उदासीन संप्रदाय का बड़ा पंचायती उदासीन, नया उदासीन और एक सिख समुदाय का निर्मल अखाड़ा हुआ। महिलाओं का एकमात्र परी अखाड़ा है। समय के साथ अखाड़ों में संन्यासियों की संख्या तो बढ़ी, परंतु वह अपने उद्देश्य से भटक गए। हर अखाड़ा के आश्रम भव्यता का केंद्र बने हैं। अखाड़ा परिषद में अध्यक्ष को लेकर वर्षों से चल रही रार अभी भी कायम है। आपसी लड़ाई एवं एक-दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ में वह धार्मिक कृत्यों से दूर होते जा रहे हैं।

    नासिक गए नरेंद्र गिरि, मोबाइल बंद

    सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि बनाने वाले निरंजनी अखाड़ा के सचिव महंत नरेंद्र गिरि नासिक चले गए हैं। विवाद तूल पकड़ता देख उन्होंने आज सुबह से अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया। मठ बाघंबरी गद्दी बताया गया कि महाराज जी नासिक चले गए हैं। दिन भर कई प्रयास के बावजूद उनसे संपर्क नहीं हो पाया। गुरु पूर्णिमा को सचिन दत्ता को संन्यास दिलाने के साथ-साथ भव्य समारोह में नरेंद्र गिरि ने उन्हें महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि के रूप में प्रतिष्ठित कर दिया था। दैनिक जागरण में सर्वप्रथम सचिन दत्ता का स्याह अतीत सामने आया तो मामला अंतरराष्ट्रीय सुर्खी बन गया और महंत घिर गए आरोपों से। आरोप तो यहां तक लगा कि सचिन को महामंडलेश्वर बनाने के लिए मोटी रकम ली गई है। नरेंद्र गिरि के धुर विरोधी अखाड़ा परिषद अध्यक्ष महंत ज्ञानदास ने पूरी प्रक्रिया को ही सवालों में ला दिया और दावा किया कि सचिन महामंडलेश्वर हैं ही नहीं। विवाद तूल पकडऩे पर महंत नरेंद्र गिरि ने अपनी सफाई में कहा कि उन्होंने अग्नि अखाड़ा के महामंडलेश्वर कैलाशानंद की गुजारिश पर सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर बनाया है। साथ ही दूसरे दिन सच्चिदानंद को नासिक कुंभ में जाने एवं उनके किसी धार्मिक कृत्य में शामिल होने पर पाबंदी लगा दी। इतना ही नहीं चार महंत गुप्तचरों को भी तथ्यों की जानकारी के लिए लगा दिया। बावजूद इसके विरोध का स्वर थमा नहीं।

    कहां हैं सचिन

    एक संत ने बताया कि विवाद खड़ा होने पर सचिन दत्ता पहले हरिद्वार गए। वहां से देहरादून पहुंचे। फिर देहरादून से आठ किलोमीटर दूर स्थित नवचंडी अखाड़े में चले गए। अब वहीं पर रह रहे हैं। यह अखाड़ा भी निरंजनी अखाड़े के एक महामंडलेश्वर का है। ध्यान रहे कि गुरु पूर्णिमा पर सचिन दत्ता को सच्चिदानंद गिरि नाम का महामंडलेश्वर पद पर पट्टाभिषेक हुआ था। कैलाशानंद के सानिध्य में संन्यास लेने की बात भी कही गई थी। मीडिया में यह मामला आने से महामंडलेश्वर बनने पर विवाद खड़ा हो गया था।

    कैलाशानंद के साथ सचिन!

    सचिन दत्ता को महामंडलेश्वर सच्चिदानंद गिरि बनवाने वाले मुख्य सूत्रधार महामंडलेश्वर कैलाशानंद ने सबसे अपना संपर्क काट लिया है। सूत्रों का तो यहां तक दावा है कि महामंडलेश्वर के रूप में पट्टाभिषेक होने के बाद सच्चिदानंद, कैलाशानंद के साथ हरिद्वार स्थित उनके आश्रम चले गए। यह भी चर्चा है कि सचिन उर्फ सच्चिदानंद अब महामंडलेश्वर पद से न हटाएं, इसके लिए सत्ता पक्ष के कुछ नेताओं के जरिए महंत नरेंद्र गिरि पर दबाव भी डलवाया जा रहा है।

    महामंडलेश्वरों की जांच हो

    चरित्रहीन, अयोग्य व पाखंडियों के संन्यास लेने से सनातन धर्म की छवि धूमिल हुई है। अखाड़े बिना योग्यता को जांचे, परखे किसी को भी महामंडलेश्वर जैसे गरिमामय पदवी पर आसीन कर धर्म का क्षरण कर रहे हैं। इससे सनातन धर्मावलंबियों की भावनाएं आहत हो रही है, साथ ही त्याग, तपस्या की परंपरा भी खत्म होती जा रही है। इस पर तत्काल रोक लगाने की जरूरत है। यह कहना है गंगा महासभा के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती का। दैनिक जागरण से बातचीत में उन्होंने कहा कि सारे महामंडलेश्वरों की जांच के लिए एसआइटी (स्पेशल इनवेस्टीगेशन टीम) बनाई जानी चाहिए। इसके लिए उन्होंने केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से मांग भी की है। जितेंद्रानंद सरस्वती ने कहा कि सनातन मतावलंबी इस सवाल का जवाब चाहते हैं कि अखाड़ों में महामंडलेश्वरों की बाढ़ सी क्यों आ गई है? बोले, भ्रष्टाचार में लिप्त अपराधी संन्यास लेकर रातोंरात बड़े पद पर आसीन होकर ज्ञान बांटने लगते हैं। जिस व्यक्ति को स्वयं धर्म की सही परिभाषा का पता नहीं है, उन्हें दूसरों को उसका पाठ पढ़ाने का सार्टिफिकेट मिल जाता है। उन्होंने इस बात को दुर्भाग्यपूर्ण बताया कि साईं बाबा की पूजा का विरोध करने वाले मामले में मौन हैं।