UP Politics: चुनाव नजदीक आते ही बगावती होने लगे निषाद पार्टी के सुर, संजय निषाद ने भाजपा से दो टूक शब्दों में कही ये बात
वर्ष 2027 का विधान सभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है वैसे ही भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी ने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। गठबंधन में सहयोगी अपना दल सोनेलाल भी पूर्व में नाराजगी जाहिर कर चुका है परंतु योगी सरकार में मत्स्य मंत्री व निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद के तेवर ज्यादा बगावती दिख रहे हैं।
राज्य ब्यूरो, लखनऊ। वर्ष 2027 का विधानसभा चुनाव जैसे-जैसे नजदीक आ रहा है, वैसे ही भाजपा के सहयोगी दल निषाद पार्टी ने दबाव की राजनीति शुरू कर दी है। गठबंधन में सहयोगी अपना दल सोनेलाल भी पूर्व में नाराजगी जाहिर कर चुका है, परंतु योगी सरकार में मत्स्य मंत्री व निषाद पार्टी के मुखिया संजय निषाद के तेवर ज्यादा बगावती दिख रहे हैं।
उन्होंने भाजपा से दो टूक कह दिया है...''यदि उसे लगता है कि छोटे दलों से फायदा नहीं है तो वह गठबंधन तोड़ दे।'' इससे पहले भी संजय निषाद मछुआ समाज की समस्याएं हल न होने व एससी आरक्षण के मुद्दे पर विधान भवन घेरने की बात कह चुके हैं। ऐसे में भाजपा पर भी सहयोगियों को सहेजे रखने का दबाव बढ़ गया है।
संजय निषाद काफी समय से अपने बयानों के माध्यम से निषाद पार्टी के मुद्दों को गंभीरता से लेने के लिए भाजपा को संकेत दे रहे थे। अब दिल्ली में पार्टी के स्थापना दिवस समाराेह में अपना दल एस और सुभासपा नेताओं के जुटने के बाद वह ज्यादा मुखर दिख रहे हैं। पूरी कोशिश गठबंधन में अपना महत्व बताने की हो रही है।
वर्ष 2022 का विधान सभा चुनाव निषाद पार्टी ने भाजपा के साथ मिलकर लड़ा था और उसे छह सीटों पर जीत हासिल हुई थी। हालांकि गठबंधन के लिहाज से निषाद पार्टी का योगदान इससे अधिक माना जाता है। प्रदेश में करीब 70 सीटें ऐसी हैं जिसमें निषाद समाज का खासा प्रभाव है। निषाद पार्टी का प्रभाव पूर्वांचल में सबसे अधिक है। इस प्रभाव के पीछे निषाद पार्टी के निषादों को अनुसूचित जाति का दर्जा दिलाने के वादे को भी अहम माना जाता है। पार्टी लगातार अपने वादों के सहारे आगे बढ़ रही है, परंतु अब उसे लग रहा है कि जिन वादों के आधार पर उन्होंने पिछले चुनाव में अपने समाज से वोट मांगे थे, सत्ता में शामिल होने के बावजूद अब भी अधूरे हैं।
अगले साल होने पंचायत चुनाव और उसके बाद विधानसभा चुनावों को पार्टी को इस स्थिति से नुकसान हाेने का भी डर सता रहा है। ऐसे में निषाद पार्टी अपने इन वादों को पूरा करने की दिशा में सरकार की तरफ से मजबूत कदम आगे बढ़ाने की उम्मीद रखती है, जिससे समाज में भरोसा कायम रखा जा सके। यही वजह है कि चुनावी मौसम नजदीक आते ही निषाद पार्टी ने साफ संकेत दिए हैं कि यदि भाजपा निषादों की मांगों को दरकिनार करती रही तो पार्टी को राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ सकती है। निषाद पार्टी यह भी दावा है कि वह प्रदेश में चुनावी परिणामों को प्रभावित करने की स्थिति में है और उनकी उपेक्षा भाजपा को भारी पड़ सकती है।
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