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    काश! तीन साल पहले आता फैसला... कुत्तों के हमले में मारे गए बच्चे के पिता ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर क्या कहा

    Updated: Tue, 12 Aug 2025 02:35 PM (IST)

    सुप्रीम कोर्ट के आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में रखने के आदेश पर लखनऊ के शबाब ने अपने बेटे को खोने का दर्द साझा किया। 2022 में आवारा कुत्तों के हमले म ...और पढ़ें

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    काश...तीन वर्ष पहले आता फैसला तो बच जाती मेरे बेटे की जान

    संतोष तिवारी, लखनऊ। कुत्तों के हमले से बेटे रजा की मौत का गम मुसाहिबगंज निवासी शबाब का फिर से ताजा हो गया। उन्हें पता चला कि सुप्रीम कोर्ट ने आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया है।

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    उन्होंने कहा कि काश तीन वर्ष पहले यही फैसला पूरे देश के लिए आया होता तो शायद मेरे सात वर्ष के बेटे रजा की जान कुत्तों के हमले में न जाती। कहते हैं कि आज भी उस हादसे को याद कर रूह कांप जाती है।

    ठाकुरगंज के मुसाहिबगंज निवासी शबाब कहते हैं कि बेटे रजा और पांच वर्षीय बेटी जन्नत फातिमा पर दर्जन भर से अधिक आवारा कुत्तों ने हमला किया था। गंभीर रूप से घायल हुए रजा की किंग जार्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी में इलाज के दौरान मौत हो गई जबकि बेटी फातिमा को चिकित्सकों ने बचा लिया। आज भी उसके शरीर पर घावों के निशान हैं।

    छह अप्रैल 2022 की शाम मुसाहिबगंज स्थित नगर निगम के प्राथमिक विद्यालय में सात वर्षीय रजा अपनी बहन जन्नत फातिमा के साथ खेलने गया था। करीब दर्जन भर से अधिक आवारा कुत्तों ने दोनों पर हमला कर दिया। रजा की मौत हो गई थी जबकि उनकी बहन घायल हुई थी।

    सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली, गाजियाबाद और नोएडा की सड़कों पर घूम रहे आवारा कुत्तों को शेल्टर होम में रखने का आदेश दिया तो रजा के पिता शबाब के आंसू छलक पड़े। दैनिक जागरण से बात करते हुए शबाब ने फैसले का स्वागत किया और कहा कि यह फैसला पूरे देश के लिए आना चाहिए जिससे किसी की जान कुत्तों के हमले में न जाए।

    सिर्फ कुछ शहर ही नहीं बल्कि पूरे देश में यही व्यवस्था सख्ती से लागू की जाए। रजा की मां राजरानी बताती हैं कि उस दिन से लेकर आज तक इलाके के हालातों में कोई बदलाव नहीं आया। अक्सर कुत्ते छोटे बच्चों को दौड़ा लेते हैं। मैंने तो अपना बेटा खो दिया लेकिन किसी और के साथ ऐसा न हो इसलिए हर जगह आवारा कुत्तों पर लगाम लगाई जाए।

    आज भी मदद का इंतजार

    शबाब बताते हैं कि हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने इस घटना का स्वतः संज्ञान लिया था। इसके बाद बच्चे के निःशुल्क इलाज के आदेश भी दिए गए। परिवार ने मुआवजे और सरकारी नौकरी की मांग की लेकिन आज तक कोई सुनवाई नहीं हुई। घटना वाले दिन से लेकर आज तक कोई जिम्मेदार मिलने तक नहीं आया।