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    ...जब कैप्टन मनोज पांडेय ने बनाया था कारगिल युद्ध में जीत का रास्ता, ग्रेनेड से बंकर को कर दिया था नेस्तनाबूद

    By Abhishek PandeyEdited By: Abhishek Pandey
    Updated: Mon, 03 Jul 2023 04:23 PM (IST)

    Captain Manoj Pandey 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन मनोज पांडेय ने अपना सर्वोच्च बलिदान देकर खालूबार पोस्ट पर कब्जा कर युद्ध का रुख बदल दिया था। भारत मां के इस वीर सपूत को सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया। कैप्टन मनोज पांडेय के नाम पर अंडमान-निकोबार में एक द्वीप भी है। देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले इस जांबाज के बलिदान दिवस पर खास...

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    ...जब कैप्टन मनोज पांडेय ने बनाया था कारगिल युद्ध में जीत का रास्ता

    जागरण संवाददाता, लखनऊ: सन 1999 के कारगिल युद्ध में पाकिस्तान ने ऊंचाई पर बने बंकरों पर कब्जा कर भारतीय सेना के लिए मुश्किल खड़ी कर दी थी। सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण खालूबार पोस्ट पर कब्जा करना भारतीय सेना के लिए बड़ी चुनौती थी। यहीं वह पोस्ट थी जहां से जांबाजों को आगे बढ़ने की सबसे बड़ी बाधा दूर हो सकती थी।

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    अल्फा कंपनी की कमान 24 साल के युवा अधिकारी कैप्टन मनोज कुमार पांडेय को सौंपी गई। मनोज पांडेय उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के रहने वाले हैं। मनोज को अपनी टुकड़ी के साथ खालूबार पोस्ट पर तिरंगा लहराने की जिम्मेदारी मिली। कैप्टन मनोज पांडेय अपनी कंपनी के साथ आगे बढ़ते रहे। बहादुरी के साथ उन्होंने खालूबार पोस्ट पर हमला किया। तीन बंकरों को नष्ट करते हुए वह चौथे बंकर पर पहुंचे ही थे कि उनको गोलियां लग गईं।

    परमवीर चक्र से किया गया सम्मानित

    घायल होने के बाद भी 24 साल के इस वीर ने हैंड ग्रेनेड से हमला कर खालूबार पोस्ट पर विजयश्री हासिल की। इस जांबाजी के लिए कैप्टन मनोज पांडेय को वीरता का सर्वोच्च पदक परमवीर चक्र (मरणोपरांत) प्रदान किया गया।

    मातृभूमि के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान देने वाले कैप्टन मनोज कुमार पांडेय के नाम पर जून 2023 में अंडमान-निकोबार के एक द्वीप का नाम रखा गया है।

    सीतापुर के एकमात्र परमवीर चक्र विजेता कैप्टन मनोज पांडेय का आज बलिदान दिवस है। कैप्टन मनोज पांडेय का जन्म 25 जून 1975 को सीतापुर के रूढ़ा गांव में हुआ था। आज लखनऊ का जो सैनिक स्कूल उनके नाम से जाना जाता है, उसी स्कूल में शिक्षा ग्रहण कर वह राष्ट्रीय रक्षा अकादमी में चयनित हुए।

    सियाचिन में हुई थी तैनाती

    पहले राष्ट्रीय रक्षा अकादमी और फिर इंडियन मिलिट्री अकादमी में प्रशिक्षण के बाद कैप्टन मनोज पांडेय को छह जून 1997 को 11 गोरखा राइफल्स में कमीशंड प्राप्त हुआ। उनकी पहली ही तैनाती उस समय आतंक प्रभावित क्षेत्र जम्मू के नौशेरा सेक्टर और फिर सियाचिन में 18 हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित पोस्ट पर की गई।

    यहां से कैप्टन मनोज पांडेय की पलटन को पुणे भेजने का आदेश दिया गया। पलटन के रसद और हथियार पहले ही भेजे जा चुके थे। उनकी पलटन पुणे के लिए सियाचिन से रवाना होने ही वाली थी कि कारगिल में दुश्मन के घुसपैठ करने की सूचना मिली थी। यहीं से कैप्टन मनोज पांडेय सीधे कारगिल पहुंचे थे।

    आज देश कर रहा याद

    कैप्टन मनोज पांडेय के बलिदान दिवस पर सोमवार को पूरा देश याद कर रहा है। गृहमंत्री अमित शाह, यूपी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत देश के कई नामचीन लोगों ने भारत मां के इस वीर सपूत के बलिदान दिवस पर श्रद्धांजलि अर्पित की।