लखनऊ के प्रख्यात गुरुद्वारा यहियागंज में आए थे सिखों के अंतिम गुरु गोबिंद सिंह
Guru Gobind Singh Jayanti: गुरुद्वारे के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि जिस समय गुरु महाराज इस स्थान पर आए उस समय इस स्थान की सेवा उदासी संप्रदाय ...और पढ़ें

गुरुद्वारा यहियागंज में गुरु गोबिंद सिंह साहिब ठहरे थे
जागरण संवाददाता, लखनऊ: अयोध्या में भगवान श्रीराम के दर्शन व श्रीराम जन्मभूमि की रक्षा के लिए सिखों के दसवें व अंतिम गुरु गोबिंद सिंह पटना से अयोध्या आए थे। सिख धर्म के जानकार व साहित्यकार डा.एसपी सिंह ने बताया कि गुरु श्रीराम जन्म भूमि की रक्षा के लिए अयोध्या गए थे और वहां उन्होंने दर्शन के बाद बंदरों को चने भी खिलाए थे। इससे पहले लखनऊ में रुके थे।
गुरुद्वारा यहियागंज में शनिवार को दीवान सजाया जाएगा। यहां गुरु गोबिंद सिंह साहिब ठहरे थे। बिहार के पटना साहिब में जन्मे गुरु गोबिंद सिंह 1672 में छह वर्ष की आयु में अपनी माता गुजरी और मामा कृपाल जी महाराज के साथ आनंदपुर साहिब से पटना साहिब जाते समय दो महीने 13 दिन के लिए लखनऊ के गुरुद्वारा यहियागंज में ठहरे थे। यहीं नहीं इसी स्थान पर गुरु तेग बहादुर जी महाराज 1670 यहां आए थे और तीन दिन तक रुके थे। गुरु गोबिंद सिंह के हस्त लिखित गुरु ग्रंथ साहिब भी इस गुरुद्वारे में मौजूद है। हुक्मनामे भी गुरुद्वारे की शोभा बढ़ा रहे हैं।
गुरुद्वारे के सचिव मनमोहन सिंह हैप्पी ने बताया कि जिस समय गुरु महाराज इस स्थान पर आए उस समय इस स्थान की सेवा उदासी संप्रदाय के भाई संगतिया जी कर रहे थे। कायस्थ समाज इस स्थान के पास रहता था। कायस्थ समाज ने गुरु जी की सेवा कर आशीर्वाद प्राप्त किया था। गुरुद्वारे के अध्यक्ष डा.गुरमीत सिंह के संयोजन में देर शाम को प्रकाश पर्व मनेगा। वहीं माता गुजरी सत्संग सभा की ओर से चार साहिबजादों के बलिदान दिवस पर गुरुद्वारा नाका हिंडोला में दीवान सजाया गया।
रागी भाई सिमरन जोत सिंह,एकविंदर सिंह ने शबद सुनाए तो ज्ञानी जगजीत सिंह ने चार साहिबजादों की जीवनी पर प्रकाश डाला। आयोजन में लखनऊ गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के अध्यक्ष खालसा इंटर कालेज के प्रबंधक राजेंद्र सिंह बग्गा और गुरुद्वारे के अध्यक्ष अमरजोत सिंह समेत सिख समाज के लोगों ने मत्था टेका। महिलाओं ने लंगर बनाया और संगतों ने वितरण किया। गुरुद्वारा राजाजीपुरम के धार्मिक सचिव डा.सत्येंद्र पाल सिंह ने बताया कि चार साहिबजादों की याद में दीवान सजाया गया और लंगर के साथ समापन हुआ।

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