Gopal Chaturvedi : प्रख्यात व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी नहीं रहे, पत्नी निशा का छह दिन पहले हुआ था निधन
Famous Satirist Gopal Chaturvedi गोपाल चतुर्वेदी का जन्म 15 अगस्त 1942 को लखनऊ में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल ग्वालियर में हुई थी। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया और फिर भारतीय रेल सेवा में अधिकारी के रूप में चयनित हुए। वर्ष 1965 से 1993 तक रेल सहित कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया।

जागरण संवाददाता, लखनऊ : पत्नी निशा चतुर्वेदी के निधन के छह दिनों बाद गुरुवार देर रात व्यंग्यकार गोपाल चतुर्वेदी का भी देहांत हो गया। केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क विभाग में आयुक्त रहीं निशा चतुर्वेदी का देहावसान गत 18 जुलाई को हुआ था।
गोपाल चतुर्वेदी का अंतिम संस्कार बैकुंठ धाम में किया गया। भारतीय रेल सेवा में अधिकारी रह चुके गोपाल चतुर्वेदी करीब दो दशक से स्वतंत्र लेखन कर रहे थे। उन्हें प्रदेश सरकार ने यश भारती और केंद्रीय हिंदी संस्थान ने सुब्रमण्यम भारती पुरस्कार से सम्मानित किया था।
गोपाल चतुर्वेदी का जन्म 15 अगस्त 1942 को लखनऊ में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा सिंधिया स्कूल, ग्वालियर में हुई थी। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में परास्नातक किया और फिर भारतीय रेल सेवा में अधिकारी के रूप में चयनित हुए। वर्ष 1965 से 1993 तक रेल सहित कई मंत्रालयों में उच्च पदों पर काम किया।
गोपाल चतुर्वेदी गद्य और पद्य दोनों विधाओं के लेखक थे। उनके कविता संग्रह कुछ तो हो और धूप की तलाश प्रकाशित होते ही काफी चर्चा में आ गए। व्यंग्य संग्रह में प्रमुख रूप से धाँधलेश्वर, अफ़सर की मौत, दुम की वापसी, राम झरोखे बैठ के, फ़ाइल पढ़ी, आदमी और गिद्ध, कुरसीपुर का कबीर, फार्म हाउस के लोग और सत्तापुर के नकटे काफी लोकप्रियता रहे। उन्हें 2001 में हिंदी भवन का लोकप्रिय व्यंग्य श्री सम्मान दिया गया। 2015 में उत्तर प्रदेश सरकार से यश भारती सम्मान मिला। केन्द्रीय हिंदी संस्थान से सुब्रह्मण्यम भारती पुरस्कार भी मिल चुका था।
हिंदी साहित्य में उनकी पहचान उत्कृष्ट व्यंग्यकार के रूप में थी। वह गद्य और पद्य दोनों विधाओं में लिखते थे। उनके कविता संग्रह ‘कुछ तो हो’ और ‘धूप की तलाश’ प्रकाशित हुए। उनके व्यंग्य संग्रह में ‘धांधलेश्वर’, ‘अफसर की मौत’, ‘दुम की वापसी’, ‘राम झरोखे बैठ के’, ‘फाइल पढ़ी’, ‘आदमी और गिद्ध’, ‘कुरसीपुर का कबीर’, ‘फार्म हाउस के लोग’ और ‘सत्तापुर के नकटे‘ रचनाएं काफी लोकप्रिय रहीं।
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