Vinay Pathak Case: भ्रष्टाचार के आरोपी विनय पाठक को बड़ा झटका, प्राथमिकी खारिज करने से हाई कोर्ट का इन्कार
Prof Vinay Pathak Corruption Case भ्रष्टाचार के मामले में घिरे प्रो. विनय पाठक हाई कोर्ट के बड़ा झटका लगा है। प्राथमिकी को चुनौती देने वाली प्रो विनय ...और पढ़ें
लखनऊ, विधि संवाददाता। भ्रष्टाचार के केस में फंसे कानपुर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. विनय पाठक (Prof Vinay Pathak) को इलाहाबाद हाई कोर्ट (Allahabad High Court) की लखनऊ खंडपीठ ने तगड़ा झटका देते हुए उनके खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को रद करने की मांग वाली याचिका मंगलवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने कहा कि पाठक के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी एवं विवेचना के दौरान अब तक इकटठा किए गए सबूतों पर गौर करने से उनके खिलाफ प्रथमदृष्टया अपराध बनता है। अतः प्राथमिकी को खारिज नहीं किया जा सकता है।
यह निर्णय जस्टिस राजेश सिंह और जस्टिस विवेक कुमार सिंह की पीठ ने सुनाया। हाई कोर्ट ने मामले में पक्षों की बहस सुनने के बाद अपना निर्णय 9 नवंबर को सुरक्षित कर लिया था। हाई कोर्ट ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि इस निर्णय में की गई टिप्पणी से जांच एजेंसी और संबधित निचली अदालतें प्रभावित नहीं होंगी। प्रो. विनय पाठक अग्रिम जमानत के लिए निचली अदालत जा सकते हैं। यदि वह इसके लिए कोई अर्जी पेश करते हैं तो उसे बिना देरी किए निस्तारित किया जाएगा।
प्रो. विनय पाठक ने याचाकी में अपने खिलाफ दर्ज एफआइआर को रद करने व गिरफ्तारी पर तत्काल रोक लगाने की याचना की थी। पाठक व एक प्राइवेट कंपनी के मालिक अजय मिश्रा पर 29 अक्टूबर को इंदिरा नगर थाने में डेविड मारियो डेनिस ने एफआइआर दर्ज कराते हुए आरोप लगाया कि आगरा विश्वविद्यालय में कंपनी द्वारा किए गए कार्यों के भुगतान के लिए आरोपितों ने 15 प्रतिशत कमीशन वसूला। उससे कुल एक करोड़ 41 लाख रुपये की वसूली की जा चुकी है।
प्रो. विनय पाठक की ओर से दलील दी गयी थी कि एफआइआर में लगाए गए आरोपों के अनुसार उनके विरुद्ध आईपीसी की धारा 386 का मामला नहीं बनता। उन्होंने यह भी दलील दी थी कि मामले में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7 भी लगाई गई है जबकि इस अधिनियम की धारा 17 ए के तहत एफआइआर दर्ज करने से पूर्व नियुक्ति प्राधिकारी से संस्तुति लेना अनिवार्य है।
वहीं याचिका का विरोध करते हुए राज्य सरकार की ओर से विशेष तौर पर नियुक्त वरिष्ठ अधिवक्ता जेएन माथुर व वादी की ओर से आइबी सिंह ने दलील दी थी कि मामले में संज्ञेय अपराध बन रहा है।

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