उत्तर प्रदेश में जाति के ‘प्रदर्शन’ पर लगा प्रतिबंध, योगी सरकार के इस फैसले पर अखिलेश यादव ने पूछे पांच सवाल
योगी सरकार द्वारा जाति आधारित चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाने के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने सरकार से पांच सवाल पूछे हैं। उन्होंने पूछा कि 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा? उन्होंने जाति-प्रदर्शन नाम से पहले ‘जाति’ पूछने घर धुलवाने और झूठे आरोप लगाकर बदनाम करने जैसे जातिगत भेदभाव को समाप्त करने के उपायों पर भी प्रश्न उठाए।

डिजिटल डेस्क, लखनऊ। उत्तर प्रदेश में योगी सरकार द्वारा जाति आधारित चुनावी रैलियों पर प्रतिबंध लगाए जाने के बाद पूर्व मुख्यमंत्री व सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने इस फैसले पर प्रतिक्रिया दी और योगी सरकार से पांच सवाल पूछ डाले। अखिलेश यादव ने सोमवार काे एक ट्वीट के माध्यम से यह पांच सवाल किए।
सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर पोस्ट करते हुए अखिलेश ने लिखा,
- …और 5000 सालों से मन में बसे जातिगत भेदभाव को दूर करने के लिए क्या किया जाएगा?
- और वस्त्र, वेशभूषा और प्रतीक चिन्हों के माध्यम से जाति-प्रदर्शन से उपजे जातिगत भेदभाव को मिटाने के लिए क्या किया जाएगा?
- और किसी के मिलने पर नाम से पहले ‘जाति’ पूछने की जातिगत भेदभाव की मानसिकता को ख़त्म करने के लिए क्या किया जाएगा?
- और किसी का घर धुलवाने की जातिगत भेदभाव की सोच का अंत करने के लिए क्या उपाय किया जाएगा?
- और किसी पर झूठे और अपमानजनक आरोप लगाकर बदनाम करने के जातिगत भेदभाव से भरी साज़िशों को समाप्त करने के लिए क्या किया जाएगा?
दरअसल, उत्तर प्रदेश में जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए सरकार ने सार्वजनिक स्थानों पर जाति का उल्लेख करने पर रोक लगा दी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट के आदेश के बाद पुलिस रिकॉर्ड और सार्वजनिक स्थलों पर नाम के साथ जाति का उल्लेख नहीं किया जाएगा। जाति आधारित रैलियों पर भी प्रतिबंध रहेगा।
इस संबंध में कार्यवाहक मुख्य सचिव दीपक कुमार ने सभी अपर मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव, पुलिस महानिदेशक, अपर पुलिस महानिदेशक (कानून एवं व्यवस्था), अपर पुलिस महानिदेशक अपराध, पुलिस कमिश्नरों, सभी जिला मजिस्ट्रेटों, एसएसपी व एसपी को निर्देश जारी कर दिए हैं।
उन्होंने जारी निर्देशों में हाईकोर्ट के आदेशों का हवाला देकर स्पष्ट किया है कि उत्तर प्रदेश सरकार की घोषित नीति है कि राज्य में एक सर्वसमावेशी व संवैधानिक मूल्यों के अनुकूल व्यवस्था लागू हो। इसलिए एफआईआर व गिरफ्तारी मेमो में आरोपित की जाति नहीं लिखी जाएगी, बल्कि माता-पिता के नाम लिखे जाएंगे।
गौरतलब है कि 2023 के एक मामले में सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने निर्देश दिया था कि पुलिस थानों में लगे नोटिस बोर्ड पर भी आरोपियों के नाम के साथ जाति का जिक्र न हो। साथ ही सभी साइनबोर्ड या घोषणाएं, जो किसी क्षेत्र या संपत्ति को जाति विशेष से जोड़ती हैं तुरंत हटाई जाएं। भविष्य में ऐसे साइन बोर्ड दोबारा न लगें इसके लिए औपचारिक नियम बनाए जाएं।
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