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    Abbas Ansari फिर बने विधायक, विधायकी बहाली के लिए अब्बास ने हाई कोर्ट में दाखिल की थी याचिका

    Updated: Mon, 08 Sep 2025 09:50 PM (IST)

    मऊ विधानसभा सीट से सुभासपा विधायक अब्बास अंसारी की सदस्यता बहाल हो गई है। उच्च न्यायालय ने एमपी-एमएलए कोर्ट के दोषसिद्धि आदेश को निलंबित किया जिसके बाद विधानसभा सचिवालय ने सदस्यता बहाल की। चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण देने के कारण उन्हें दोषी ठहराया गया था। न्यायालय के फैसले के बाद सीट रिक्त घोषित की गई थी जिसे अब रद्द कर दिया गया है।

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    अब्बास अंसारी फिर बने विधायक।- फाइल फोटो

    राज्य ब्यूरो, लखनऊ। सुभासपा के टिकट पर मऊ से विधायक निर्वाचित होने के बाद विधान सभा सदस्यता गंवाने वाले अब्बास अंसारी ने अपनी विधायकी बहाल करने के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दाखिल की है। इसमें उन्होंने राज्य सरकार, प्रमुख सचिव विधान सभा सचिवालय, भारत निर्वाचन आयोग और जिला मजिस्ट्रेट/जिला निर्वाचन अधिकारी मऊ को पक्षकार बनाया है। उधर विधान सभा सचिवालय ने उनकी विधान सभा सदस्यता बहाल कर दी है। प्रमुख सचिव विधान सभा प्रदीप कुमार दुबे की ओर से सोमवार को जारी की गई अधिसूचना के माध्यम से एक जून को उनकी सीट को रिक्त घोषित करने की अधिसूचना को निरस्त कर दिया है।

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    गौरतलब है कि हाई कोर्ट ने उनके विरुद्ध एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट द्वारा पारित दोष सिद्ध के आदेश को निलंबित कर दिया था। अब्बास मऊ के पूर्व विधायक और माफिया मुख्तार अंसारी के पुत्र हैं।वर्ष 2022 के विधान सभा चुनाव के दौरान भड़काऊ भाषण और चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के मामले में एमपी-एमएलए स्पेशल कोर्ट ने अब्बास को दोषी करार देते हुए दो साल की सजा सुनाई थी।

    अब्बास वर्ष 2022 में जब मऊ सीट से विधान सभा चुनाव जीते थे, तब सुभासपा व सपा का चुनावी गठजोड़ था। सीट वितरण समझौते में सपा के अब्बास अंसारी को सुभासपा ने अपने टिकट पर चुनाव लड़ाया था। एमपी-एमएलए कोर्ट की ओर से 31 मई को उन्हें दोषी ठहराने और दो वर्ष के कारावास की सजा सुनाने के बाद एक जून को रविवार को विधान सभा सचिवालय खोलकर उनकी सीट रिक्त घोषित की गई थी। मऊ सीट पर उप चुनाव कराने की तैयारी थी।

    अब्बास ने अपनी सजा के खिलाफ इलाहाबाद हाई कोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने अब्बास के विरुद्ध पारित दोष सिद्ध के आदेश को 20 अगस्त को निलंबित कर दिया था। विधान सभा सचिवालय ने हाई कोर्ट के निर्णय पर विधिक राय ली। 18 दिन बाद उनकी सदस्यता उसी तिथि से बहाल कर दी गई है। विधान सभा सचिवालय ने उनकी सीट रिक्त करने की एक जून की अधिसूचना को निरस्त कर दिया है।

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