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    'राग दरबारी' ने पंडित श्रीलाल शुक्ल को बनाया हर वर्ग का पंसदीदा लेखक

    By Mahendra Pandey Edited By: Dharmendra Pandey
    Updated: Wed, 31 Dec 2025 01:38 PM (IST)

    100th Birth Anniversary of ShriLal Shukla: श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी 1968 में छपा। इसके बाद यह रचना इतनी विख्यात हुई कि राग दरबारी का 15 भारतीय भाषा ...और पढ़ें

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    युवा लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत: श्रीलाल शुक्ल

    जागरण संवाददाता, लखनऊ : प्रख्यात साहित्यकार श्रीलाल शुक्ल की आज यानी 31 दिसंबर 2025 को सौवीं जयंती है। महान साहित्यकार ने दस उपन्यास, चार कहानी संग्रह, नौ व्यंग्य संग्रह, दो निबंध और एक आलोचना पुस्तक लिखी, पर उनके कालजयी उपन्यास 'राग दरबारी' ने उन्हें हर वर्ग का पसंदीदा लेखक बना दिया।

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    श्रीलाल शुक्ल का राग दरबारी 1968 में छपा। इसके बाद यह रचना इतनी विख्यात हुई कि राग दरबारी का 15 भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। इस पर दूरदर्शन ने धारावाहिक भी बनाया और आज तक इस उपन्यास की लोकप्रियता बनी हुई है।

    पंडित श्रीलाल शुक्ल का जन्म 31 दिसंबर, 1925 को लखनऊ के अतरौली गांव में हुआ था। उनका कर्म क्षेत्र तीर्थराज प्रयागराज रहा। वर्ष 1947 में इलाहाबाद केंद्रीय विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद श्रीलाल शुक्ल ने 1949 में नौकरी राज्य सिविल सेवा से शुरू की। 1983 में भारतीय प्रशासनिक सेवा से निवृत्त हुए, लेकिन विधिवत लेखन 1954 से ही शुरू कर दिया था।

    उन्होंने सरकारी सेवा में रहते हुए राग दरबारी के माध्यम से व्यवस्था पर करारी चोट की थी। श्रीलाल शुक्ल ने ग्रामीण जीवन के अतरंगी अनुभव और पल-पल परिवर्तित होते परिदृश्य को बारीकी से विश्लेषित किया। एक उद्देश्य के साथ व्यंग्य लेखन किया और व्यंग्य लेखन का एक अलग ही मानक स्थापित किया। भारत के गांवों और ग्रामीण जीवन के यथार्थ को बयां करते उपन्यास राग दरबारी के लिए उन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया था।

    श्रीलाल शुक्ल को 2008 में पद्ममभूषण से सम्मानित किया गया। श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था 'राग विराग'। 'राग दरबारी' के अलावा 'मकान', 'पहला पड़ाव', 'अज्ञातवास' और 'विश्रामपुर का संत' भी उनकी उल्लेखनीय कृतियां रहीं। उनका पहला प्रकाशित उपन्यास 'सूनी घाटी का सूरज' और पहला प्रकाशित व्यंग्य 'अंगद का पांव' साहित्यकारों को बड़ी सीख देता है। उन्हें 1969 में साहित्य अकादमी पुरस्कार मिलने के बाद 42 वर्ष तक ज्ञानपीठ की प्रतीक्षा करनी पड़ी।

    इस बीच उन्हें बिरला फाउंडेशन का व्यास सम्मान, यश भारती और पद्म भूषण पुरस्कार भी मिले। लंबे समय से बीमार चल रहे शुक्ल को 18 अक्टूबर को तत्कालीन राज्यपाल बीएल जोशी ने अस्पताल में ही ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया था। उन्हें 16 अक्टूबर को पार्किंसन बीमारी के कारण अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 28 अक्टूबर 2011 को वह हमेशा के लिए इस दुनिया से दूर चले गए।

    युवा लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत

    श्रीलाल शुक्ल की कृतियां आज भी खासकर युवा लेखकों के लिए प्रेरणास्रोत बनी हैं। युवा व्यंग्यकार पंकज प्रसून की किताब द लंपटगंज में भी राग दरबारी की झलक दिखती है। श्रीलाल शुक्ल को याद करते हुए पंकज प्रसून कहते हैं, उन्होंने सिर्फ ग्रामीण नहीं, नगरीय जीवन को भी उधेड़ा। अपनी कृतियों के माध्यम से हमारे सामने यथार्थ रखा, जो हर किसी को पसंद आया। वह एक साहसी साहित्यकार के रूप में हमारी स्मृतियों में हमेशा जीवंत रहेंगे। हम जैसे कृतियकारों को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।