Road Safety With Jagran: मदद के नहीं बढते हाथ, सड़क दुर्घटना में टूट जाता है सांसों का साथ
सरकार के प्रयास के बाद भी लोग संजीदा नहीं हो रहे हैं। जागरूकता अभियान की भी खानापूरी हो रही है। यही वजह है कि सड़क दुर्घटनाओं में घायल लोगों की जान जा रही है। हादसे के बाद पुलिस व अन्य पूछताछ के भय सो लोग घालयों को अस्पताल नहीं पहुंचाते।

कुशीनगर, अजय कुमार शुक्ल। Road Safety With Jagran: सड़क दुर्घटनाओं में मृत्यु का अधिक आंकड़ा बहुत कम हो जाता यदि थोड़ी सी संवेदना जग जाती। दुर्घटनाओं में घायलों की मदद को लोगों के हाथ भी बढ़ जाते। सलेमगढ़ के पास बीते तीन जुलाई को मार्ग दुर्घटना में बाइक सवार दो युवकों की मृत्यु हो गई। एंबुलेंस पहुंचने तक घायल युवक सड़क पर तड़पते रहे और भीड़ तमाशबीन बनी रही। अस्पताल पहुंचने पर डाक्टर ने बताया कि लाने में देरी हो गई, पहले आते तो शायद बच जाते। ऐसी तस्वीर कई बार दुर्घटनाओं के समय देखने को मिली तो मानवीय संवेदना को लेकर सवाल भी उठे।
सरकार के प्रयासों के बाद भी नहीं हो रहा हालात में सुधार
दुखद पहलू यह है कि सरकार के तमाम प्रयासों के बाद भी इसमें सुधार नहीं हो रहा है। दुर्घटनाओं के शिकार लोगों की मदद को लोग पूरी तरह से खुलकर आगे नहीं आ रहे हैं। एक वजह कानूनी दांव पेच में फंसने की वजह से लोग मदद करने से दूर रहते हैं, लेकिन बड़ा कारण मानवीय संवेदना ही है। जागरूक करने की प्रशासनिक व विभागीय कोशिश भी पूरी तरह से अमली जामा पहनती नहीं दिखती। स्वयंसेवी संस्थाएं भी इसको लेकर सार्थक पहल करती सड़क पर नहीं दिखतीं। चिकित्सक डा. राजीव कुमार मिश्र, डा. संदीप अरुण श्रीवास्तव, डा. अजय कुमार शुक्ल आदि कहते हैं कि समय से घायल अस्पताल पहुंचे और समुचित उपचार मिल जाए तो मरने वालों की संख्या 70 प्रतिशत तक कम हो जाएगी।
पुलिस का रवैया भी है जिम्मेदार
दुर्घटना को लेकर मदद के हाथ नहीं बढ़ने के पीछे पुलिस का रवैया भी एक कारण है। मदद करने वालों को कानूनी लिखा पढ़ी के डर की बात सताती है तो पुलिस भी उनको यह नहीं समझा पाती कि इससे कोई परेशानी नहीं होती। दुर्घटनास्थल से लेकर अस्पताल तक मदद करने वाले को पुलिस की कागजी कार्रवाई से गुजरना पड़ता है।
मन: स्थिति को बदलने की जरूरत : डा. सीमा
बुद्ध पीजी कालेज में मनोविज्ञान विभाग में एसोसिएट प्रो. डा. सीमा त्रिपाठी कहती हैं कि सड़क दुर्घटनाओं में मदद को हाथ न बढ़ने का एक अहम कारण लोगों का मनोविज्ञान भी है।दुर्घटना के बाद लोग मदद करने को भय के रूप में लेते हैं, एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में इसे अपनी जिम्मेदारी समझें तो बहुत हद तक समस्या दूर हो जाएगी। इसके लिए लोगों को मनोवैज्ञानिक रूप से तैयार करने की भी जरूरत है तो लोगों को स्वयं भी इसके लिए मन को तैयार करने की आवश्यकता है। दुर्घटना देखें तो खुद पर उसको हावी न होने दें। मन को शांत कर मदद के लिए तैयार करें। ऐसा करने के बाद मन को सुकून मिलेगा तो आप औरों को भी प्रेरित कर सकेंगे। विदेशों में लोग इसके लिए मनोवैज्ञानिक रूप से अधिक तैयार दिखते हैं।
क्या कहता है मोटर वाहन अधिनियम
मोटर वाहन अधिनियम 1988 की धारा 134 (क) के अनुसार सम्मान सहित अधिकार देता है कि पुलिस को सूचित करने या सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को अस्पताल पहुंचाने की स्थिति में उसे पुलिस या अस्पताल द्वारा रुकने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। मदद करने वाले को जाति धर्म से ऊपर उठकर देखा जाए।
सड़क दुर्घटना में सबसे पहले क्या करना चाहिए
सबसे पहले आप स्थिति को समझें, घायल के चोट के निशान पर साफ कपडा बांधे। अस्पताल ले जाएं, पुलिस का इंतजार ना करें। यातायात व्यवस्था न होने पर एंबुलेंस को काल करें। कोई और आकार घायल को उठाएगा, इसका कतई इंतजार न करें। नजदीकी अस्पताल घायल को एडमिट कराएं। पुलिस को काल करें, घायल को छोड़कर तभी जाएं जब पुलिसकर्मी पहुंच जाएं।
सड़क दुर्घटना में घायल व्यक्ति को लेकर क्या है आम नागरिक की जिम्मेदारी
आपके सामने सड़क दुर्घटना होने पर वहां से भागने की जगह, घायल व्यक्ति की मदद करें। उससे संबंधित जो जानकारी मिल सकती है, इकट्ठा करें। प्राथमिक चिकित्सा कराएं और पुलिस को भी इसके बारे में सूचना दें।
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