Road Safety: कुशीनगर में सड़क दुर्घटनाओं के दर्द को समय से नहीं मिलता 'क्लेम का मरहम', जानें- क्या है बड़ी वजह
Road Safety With Jagran कुशीनगर जिले में सड़क दुर्घटनाओं के 2498 मामले लंबित हैं। ऐसे में पीड़ित दर-दर भटकने को मजबूर हैं। वाहन दुर्घटनाओं में क्षतिपूर्ति न मिलने की बड़ी वजह न्यायिक अधिकारियों की कमी व पैरवी भी है।

कुशीनगर, जागरण संवाददाता। Road Safety With Jagran: उधर सड़क दुर्घटनाएं जान ले रही हैं तो इधर राहत के लिए दुर्घटना क्षतिपूर्ति को न्यायालय में पहुंच रहे लोग भी परेशानी झेल रहे हैं। दुदही के पृथ्वीपुर निवासी अजीत सिंह के 30 वर्षीय भाई मुन्ना सिंह का मार्ग दुर्घटना में निधन हो गया। तब से वे दौड़ लगा रहे हैं। अब तक फाइल सुनवाई तक नहीं पहुंची है। कारण, पहली अगस्त से मोटर वाहन दुर्घटना न्यायाधिकरण के न्यायाधिकारी का पद रिक्त है। कानूनी दांव पेच में वाहन दुर्घटना के ऐसे 2498 मामले लंबित हैं। इसमें आधे से अधिक माले एक दशक से अधिक समय से चल रहे हैं।
न्यायाधिकरण न्यायालय के खाली चलने से प्रभावित है दावा
दरअसल, मार्च 2020 के पहले मोटर वाहन दुर्घटना संबंधी मामलों की सुनवाई जिला एवं सत्र न्यायालय के पांच से छह कोर्ट में होती थी, जिससे मामले तेजी से निस्तारित होते थे। अब केवल मोटर वाहन दुर्घटना दावा न्यायाधिकरण कोर्ट सुनवाई होने के कारण कार्य अपेक्षित तेजी से नहीं हो रहा है। चार महीने से दावा न्यायाधिकरण न्यायालय के खाली चलने से भी कार्य प्रभावित चल रहा है। दूसरी पहलू यह भी है कि जिले में दुर्घटना के बाद फोरेंसिक आदि वैज्ञानिक जांच की कोई व्यवस्था ही नहीं है। दुर्घटनाबहुल स्थलों को लेकर भी तकनीकी जांच की कोई व्यवस्था नहीं है जो यहां दुर्घटनाओं पर रोक लगा सके।
जाम के चलते भी होती हैं दुर्घटनाएं
जांच के बाद मिले तथ्य न्यायालय में मजबूत पैरवी में कारगर होते। जागरण के 300 किमी के रोड आडिट में यह देखने को मिला कि कसया का प्रमुख गांधी चौक हो या फिर पडरौना नगर का प्रसिद्ध सुभाष चौक, यहां ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी के बाद भी भयंकर जाम के चलते खड़ी दुर्घटना की संभावना खड़ी रहती है। यह ट्रैफिक पुलिस के प्रशिक्षित होने पर ही सवाल खड़ा करता है। इनके लिए जिले में उनके लिए कोई प्रशिक्षण केंद्र नहीं है।
कोर्ट खाली होने से नहीं हो रहा सुनवाई
दुदही पृथ्वीपुर निवासी अजीत सिंह ने बताया कि दावा न्यायाधिकरण न्यायालय खाली होने के कारण मामले की सुनवाई पूरी नहीं हो पा रही है। विजयपुर-दुर्गवलिया मार्ग पर वाहन की ठोकर से मरे भाई मुन्ना सिंह गंभीर रूप से घायल हो गए थे, उपचार के दौरान गोरखपुर मेडिकल कालेज में मृत्यु हो गई थी। वाद दायर करने के बाद भी सुनवाई में तेजी नहीं आ रही है।
क्या कहते हैं अधिवक्ता
- क्लेम अधिवक्ता वकील राव ने बताया कि पहले सिविल कोर्ट के अपर जिला जज कोर्ट में मामलों की सुनवाई होती थी, तो निर्णय भी जल्दी मिलते थे और वादकारी भी संतुष्ट रहते थे। अब कभी कर्मचारियों की कमी तो कभी कोर्ट खाली होने के कारण कार्य प्रभावित हो रहा है।
- क्लेम अधिवक्ता रामकेशव गुप्ता ने कहा कि एक न्यायालय होने का फायदा तो है, लेकिन कोर्ट खाली होने के कारण क्लेम के मामलों की सुनवाई समय से नहीं हो पा रही है, जिसकी वजह मामले लंबित हैं। कोरोना काल में कोर्ट बंद रहने से मामलों की सुनवाई पर असर पड़ा है। इसके कारण पीड़ितों को समय से न्याय नहीं मिल पा रहा है।
क्या होता है एक्सीडेंटल क्लेम
अधिवक्ता ओमप्रकाश तिवारी कहते हैं कि रोड एक्सीडेंट के लिए जो व्यक्ति जिम्मेदार है यदि उसकी पहचान हो जाए तो ऐसे में रोड एक्सीडेंट क्लेम बीमा कंपनी के द्वारा दिया जाता है, लेकिन हिट एंड रन मामले में यदि मारने वाला व्यक्ति फरार हो जाता है तो उस व्यक्ति को पीड़ित को हर्जाना राशि देनी पड़ती है। बताया कि दुर्घटना के पीड़ितों को अब बीमा कंपनी से 90 दिन में क्लेम मिलने की व्यवस्था है। इसके लिए पुलिस को अपनी एफआइआर 30 दिन में न्यायालय दाखिल करनी होती है। अगले 30 दिन में बीमा कंपनी को पूरा होम वर्क करके देना होगा।
पुलिस के चलते भी क्लेम मिलने में हो रही देरी
दरअसल, दुर्घटना के मामले में पुलिस को 30 दिन में एफआइआर के साथ पत्रावली संबंधित न्यायालय में प्रस्तुत करना होता है, लेकिन ऐसा होता नहीं। तकनीकी जांच के नाम पर कई महीने पीड़ित थाने का ही चक्कर काटता रह जाता है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।