सटीक गणना, ऊंची उड़ान, छह रॉकेटों ने छुआ सफलता का आसमान
कुशीनगर में नारायणी नदी के तट पर छह रॉकेटों का सफल प्रक्षेपण हुआ, जिससे युवा वैज्ञानिकों में उत्साह भर गया। इन-स्पेस मॉडल रॉकेट्री और कैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता में छात्रों ने अपनी तकनीक का प्रदर्शन किया। इसरो और इन-स्पेस के विशेषज्ञों ने डेटा का अध्ययन किया। इस आयोजन ने कुशीनगर को अंतरिक्ष उद्यमियों के लांच पैड के रूप में पहचान दिलाई, जिससे नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।

इन-स्पेस मॉडल राकेट्री और कैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता के दूसरे दिन भी शोध की चमक
अजय कुमार शुक्ल कुशीनगर। आसमान के नीले विस्तार में जैसे ही धधकते इंजनों की गर्जना गूंजी, नारायणी नदी का शांत तट विज्ञान के रोमांच से भर उठा। हवा में हल्की गंध और लांच पैड से उठते धुएं के बीच एक-एक कर छह राॅकेट सटीक गणनाओं, कोण और नियंत्रित समन्वय के साथ आकाश की ओर बढ़े, तो धरती पर खड़े युवा वैज्ञानिकों की आंखों में चमक और चेहरे पर उपलब्धि की आभा तैर उठी।
हर उड़ान के साथ टेलीमेट्री सिस्टम ऊंचाई, तापमान, दबाव और वेग का डेटा कंट्रोल रूम तक भेजता रहा। राकेट के हर माइक्रो-मोशन पर सेंसर की निगरानी थी। किस क्षण झुकाव बदला, कब आरोहण स्थिर हुआ, सब कुछ डिजिटल स्क्रीन पर सजीव हो उठा।
इन-स्पेस मॉडल रॉकेट्री और कैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता में शामिल छात्र अपनी तकनीक को साकार होते देख रोमांचित थे, मानो उनके विचार स्वयं राकेट की तरह अंतरिक्ष की ओर बढ़ रहे हों।
लांच..डिसेंट..इंसेट..रिकवरी जैसे अनुसंधान व विज्ञान से जुड़े शब्दों के बीच इन-स्पेस माडल राकेट्री और कैनसेट इंडिया स्टूडेंट प्रतियोगिता के दूसरे दिन मंगलवार को छह राॅकेटों का सफल प्रक्षेपण हुआ तो नव विज्ञानियों की सोच व खोज को मुकाम मिलता दिखा। सुबह 11 बजे से ही टीमें अपने लांच व्हीकल और पेलोड के परीक्षण में जुटी थीं।
दोपहर 12 बजकर 34 मिनट पर जैसे ही काउंटडाउन समाप्त हुआ, नियंत्रण कक्ष से मिला ‘लांच क्लीयरेंस’ संकेत, और लांचर से राकेट की गर्जना ने हवा को चीरते हुए आकाश का रुख किया। तालियों की गूंज के साथ पल-पल का लाइव टेलीमेट्री डेटा स्क्रीन पर उभरता गया। ऊंचाई, वायुदाब, तापमान और वेग के हर बदलाव को रिकाॅर्ड किया जा रहा था।
सेंसर लगातार राकेट के पिच, झुकाव व घुमाव पर निगरानी रख रहे थे, ताकि हर सेकंड का विश्लेषण सटीक हो। इसके बाद 12:38, 1:05, 2:10, 2:45 और 3:20 बजे तक कुल छह राॅकेटों ने उड़ान भरी। प्रत्येक राकेट के साथ नवाचार की एक नई परत खुलती गई। कंट्रोल रूम में बैठे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद (इसरो) और भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (इन-स्पेस) के तकनीकी विशेषज्ञ मानिटर पर बारीकी से डेटा का अध्ययन करते रहे, जबकि फील्ड पर छात्र अपनी बनाई तकनीक की परख होते देख सांसें थामे खड़े थे।
प्रत्येक टीम ने अपने कैनसेट पेलोड (लगभग एक किलोग्राम) को थ्रस्ट टेक द्वारा निर्मित माडल राकेट में जोड़ा था। कुछ तकनीकी अड़चनें आईं, पर सटीक कैलीब्रेशन और टीमवर्क ने उन्हें पार कर लिया। हर सफल प्रक्षेपण के बाद छात्रों में उत्साह दोगुना होता गया। एक-दूसरे को गले लगाकर बधाई देने का दृश्य नव विज्ञान की नई संस्कृति का परिचायक था।
यह केवल प्रक्षेपण नहीं था, यह उस पाठ्य सिद्धांत का प्रयोगात्मक रूपांतरण था, जो अब तक किताबों तक सीमित था। कुशीनगर के तमकुहीराज में पिपराघाट के पास देशभर के 70 संस्थानों से आए 600 से अधिक छात्र राकेट्री इंजीनियरिंग और नवाचार की वास्तविक दुनिया से जुड़ने के लिए जुटे हैं। इस आयोजन ने कुशीनगर को देश के नए अंतरिक्ष उद्यमियों के लांच पैड के रूप में पहचान भी दिलाई है, जिसने भविष्य की संभावनाओं की नई राह भी खोल दी है।
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युवा वैज्ञानिक के नवाचार व शोध को निखारना प्रमुख उद्देश्य : डा. विनोद
इन-स्पेस के डायरेक्टर डा. विनोद ने बताया कि, पहली बार उत्तर भारत में हो रही कैनसैट की सफल लांचिंग एक नया इतिहास लिखने जा रही है। कैनसैट का आकार 7000 से ज्यादा सेंटीमीटर क्यूब है, जिन्हें छात्रों ने खुद तैयार किया है। सफल लांचिंग के लिए मैं प्रतिभागी छात्रों, चेयरमैन डा.. पवन गोयनका व जूरी टीम को धन्यवाद देता हूं।
नवाचार की नया वातावरण तैयार करेगा यह आयोजन: सांसद
सांसद शशांक मणि ने बताया कि, यह आयोजन दर्शाता है कि से नवाचार की हवा बह चली है। यही मौका है, इस प्रतिभा को आगे बढ़ाते हुए विकसित भारत के सपने को साकार करने का। मुझे पूरा विश्वास है कि आने वाले कुछ सालों में यह लोकसभा क्षेत्र वैज्ञानिक और तकनीकी नेतृत्व कर्ता बनकर उभरेगा।

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