गुरु नरसिंह की पाठशाला से तुलसीदास ने ली थी शिक्षा
कासगंज, संवाद सहयोगी: तुलसीदास तीर्थ नगरी सोरों में ही जन्मे थे। इसके एक नहीं अनेक प्रमाण हैं। यहां की धरोहरें साक्ष्य के रूप में मौजूद हैं। तुलसीदास ने गुरु नरसिंह की पाठशाला में शिक्षा ली। यह पाठशाला अभी भी साक्ष्य के रूप में सोरों में संरक्षित हैं। तमाम और भी अन्य धरोहर एवं प्रमाण है, लेकिन सबसे पहले हम प्रकाश डाल रहे हैं गुरु नरसिंह पाठशाला पर। तुलसीदास ने तीर्थ नगरी सोरोंजी की धरा पर जन्म लिया। इसके बाद उन्होंने गुरु नरसिंह की पाठशाला में शिक्षा हासिल की। यहीं गुरु हरिहर ने उन्हे संगीत की शिक्षा दी। गुरु नरसिंह की पाठशाला मोहल्ला चक्रतीर्थ में मौजूद है। यहां उनकी 20वीं पीढ़ी के वंशज रहते हैं। वंशजों के अनुसार बाल्यावस्था में ही तुलसीदासजी के माता-पिता की मृत्यु हो गई थी। चाचा जीवाराम और चाची चंपा उनकी देखभाल करते थे। कुछ समय बाद दोनों की मृत्यु हो गई। परिवार में आर्थिक संकट हो गया। परिवार के पोषण का जिम्मा उठाते हुए तुलसीदास जी ने भिक्षा मांगना शुरू किया। इसी दौरान संवत 1576 में आषाढ़ शुक्ल को राम और हनुमान के भक्त गुरु नरसिंह की नजर तुलसीदास जी पर पड़ी। द्रवित होकर गुरु उन्हें अपनी पाठशाला ले आए। गुरु नरसिंह ने संत तुलसीदास एवं उनके चचेरे भाई नंददास को शिक्षा देना शुरू कर दिया। कुछ समय के बाद दोनों भाइयों ने घाट शास्त्रों का अध्ययन किया। राम कथा भी सुनी। इसके अतिरिक्त सीताराम मंदिर में हरिहर स्वामी ने दोनों को संगीत की शिक्षा दी थी। पाठशाला के ही एक भाग में बाल रूप हनुमान का मंदिर था। वहां पाठशाला में आने वाले शिष्य गुरु के साथ पूजा करते थे। यहां तुलसीदास ने भी भगवान श्री राम और हनुमान की पूजा की। अभी भी पाठशाला का बाल रूप हनुमान मंदिर संरक्षित है। यहां तुलसीदास जी के गुरु के वंशज देखभाल करते हैं। वंशज कहते हैं कि तुलसीदास का विवाह हुआ फिर उन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। कुछ समय बाद बाल्यावस्था में ही पुत्र की मृत्यु हो गई तो तुलसीदास व्यथित होकर चले गए। उन्होंने राजापुर बसाया। क्या कहते हैं वंशज तुलसीदास के गुरु नरसिंह के वंशज योगेश चौधरी कहते हैं कि संत तुलसीदास ने गुरु नरसिंह की पाठशाला में वेद पुराण और व्याकरण शास्त्र की शिक्षा ली। इस पाठशाला को देखकर मन रोमांचित होता है तो प्राचीन समय में यह पाठशाला कितनी समृद्ध रही होगी। इसकी कल्पना स्वतः ही की जा सकती है। पाठशाला इस बात का साक्ष्य है कि तुलसीदासजी ने सोरोंजी में ही जन्म लिया और यहीं शिक्षा प्राप्त की।
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