जहां प्रभु श्रीराम ने बिताया था वनवास, वहां वर्षों से सूखी पयस्वनी नदी के उद्गम स्थल पर फूटे जल स्रोत और बह पड़ी धारा
चित्रकूट में जहां प्रभु श्रीराम ने वनवास काल बिताया था वहां पयस्वनी नदी में वर्षों बाद कामदगिरि के दक्षिण में स्थित उद्गम स्थल ब्रह्म कुंड में जलस्रोत फूट पड़े हैं और नदी में जलधरा बह निकली है ।

चित्रकूट, हेमराज कश्यप। साल की पहली वर्षा में ही वर्षों से सूखी पयस्वनी नदी के उद्गम स्थल ब्रह्म कुंड में जल स्रोत फूटने से जलधारा बह निकली है। इससे प्रभु श्रीराम की तपोभूमि चित्रकूट में तीन नदियों मंदाकिनी, सरयू व पयस्वनी का फिर से राघव प्रयाग घाट पर संगम होने की आस बंधी है। प्रकृति के साथ खिलवाड़, नदी किनारे पक्के निर्माण के कारण आस्था की प्रतीक पयस्वनी नदी पूरी तरह सूख चुकी थी। मध्य प्रदेश के सतना जिला प्रशासन की ओर से पांच माह से चलाई जा रही पयस्वनी पुनर्जीवन मुहिम से यह जल स्रोत फूटे हैं।
चित्रकूट में विलुप्त हो चुकी पयस्वनी व सरयू नदी को लेकर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) काफी सख्त है। अगस्त 2021 में मध्य प्रदेश के सतना जिला कलेक्टर को सख्त निर्देश दिए थे कि दोनों नदियों का सीमांकन कराकर अतिक्रमण हटाएं। कलेक्टर अनुराज वर्मा ने पयस्वनी नदी का सीमांकन करा मार्च 2022 में उद्गम स्थल में खोदाई शुरू कराई थी। करीब 10 फीट खोदाई के बाद ही जल स्रोत दिखने लगे थे।
कुंड में पानी भी भर गया था। इसलिए वहां 25 फीट ऊंचा चैकडैम निर्मित कराया गया था। अब वर्षा के बाद चेकडैम के ऊपर से जलधारा बह निकलने से प्रशासन के प्रयास सार्थक होते दिख रहे हैं। एसडीएम मझगवां पीएस त्रिपाठी के मुताबिक, खोदाई के दौरान ही इसकी उम्मीद थी कि पयस्वनी नदी पुनर्जीवित हो जाएगी। नदी तट पर 22 अतिक्रमण चिह्नित किए गए हैं। जल्द ही इनपर भी कार्रवाई की जाएगी। सरयू नदी को लेकर भी प्रयास शुरू हैं।
दैनिक जागरण ने उठाया था मुद्दा : दैनिक जागरण लगातार मंदाकिनी, उसकी सहायक नदियों पयस्वनी व सरयू को लेकर मुद्दा उठाता रहा है। वर्ष 2011-12 और 2018 से 2020 तक कई बार अभियान चलाया। इसमें चित्रकूट के गायत्री परिवार समेत अन्य जल संरक्षण में जुटे लोग भी शामिल हुए।
यहीं प्रभु राम ने बिताये थे वनवास के दिन : चित्रकूट गायत्री शक्तिपीठ आश्रम के व्यवस्थापक डा. राम नारायण त्रिपाठी कहते हैं, महर्षि वाल्मीकि रचित बृहद रामायण के चित्रकूट खंड में पयस्वनी नदी का उल्लेख है। पयस्वनी का अर्थ दूध जैसे सफेद पानी वाली नदी है। मान्यता है कि त्रेतायुग में इस नदी में दूध की धारा बहती थी। मंदाकिनी में मिलने वाली पयस्वनी का उद्गम कामदगिरि के दक्षिण में कुछ दूर स्थित ब्रह्मकुंड है, जो वर्तमान में भी है।
यहां से नदी की जलधारा संतोषी अखाड़ा के पास से होकर निर्मोही अखाड़ा के पीछे राघव प्रयाग घाट में मंदाकिनी से मिलती थी, जिसकी लंबाई करीब तीन किलोमीटर है। मंदाकिनी, पयस्वनी व सरयू नदियों का पौराणिक व धार्मिक महत्व है। इन्हीं नदियों के तट पर प्रभु राम ने अपने वनवास काल के साढ़े 11 साल व्यतीत किए थे।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।