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    लंका विजय के बाद अयोध्या जाते समय श्रीराम ने चित्रकूट में किया था पहला दीपदान, खास है यहां का दीपोत्सव

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Wed, 03 Nov 2021 01:20 PM (IST)

    चित्रकूट में दीपावली पर मनाये जाने वाले पांच दिन के उत्सव में शामिल होने देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु आते हैं। लंका विजय के बाद अयोध्या लौटते समय श्रीराम ने ऋषि-मुनियों के साथ मंदाकिनी नदी में दीपदान किया था।

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    चित्रकूट में दीपावली पर पांच दिन तक मनाया जाता उत्सव।

    चित्रकूट, [हेमराज कश्यप]। चित्रकूट में भी दीपावली का त्योहार आयोध्या की तरह खास होता है, यहां धनतेरस से भाई दूज तक पांच दिन का उत्सव मनाया जाता है। देश के कोने-कोने से आने वाले लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी नदी में दीपदान कर समृद्धि का वरदान मांगते हैं। मान्यता है कि वनवास काल में साढ़े 11 साल चित्रकूट में गुजारने वाले प्रभु श्रीराम अब भी यहां के कण-कण में हैं। उनके प्रसाद के रूप में कामदगिरि के चार प्रवेश द्वारों पर कामतानाथ स्वामी विराजमान हैं। लंका विजय के बाद भगवान ने ऋषि-मुनियों के साथ मंदाकिनी नदी में दीपदान कर सबका आभार जताया था, फिर अयोध्या गए थे।

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    दिगंबर अखाड़ा के महंत दिव्य जीवनदास के मुताबिक, मान्यता है कि आज भी प्रभु श्रीराम दीपावली को चित्रकूट में मंदाकिनी में दीपदान करते हैं। भगवान राम के साथ दीपदान की कामना लेकर ही श्रद्धालु आते हैं। दीपावली का पांच दिवसीय दीपदान मेला यहां का सबसे बड़ा आयोजन हैं जिसमें 30 से 40 लाख श्रद्धालु आते हैं। धनतेरस से दूज तक लगने वाले मेला में दीपदान का क्रम चलता रहता है। वाल्मीकि आश्रम के पीठाधीश्वर महंत भरतदास का कहना है कि 'चित्रकूट सब दिन बसत, प्रभु सिय लखन समेत', रामचरित मानस की यह चौपाई तपोभूमि का महात्म्य बताने के लिए काफी है। यहां पर प्रभु सब दिन रहते है। ऐसे में मंदाकिनी में दीपदान से उनका सानिध्य मिलता है।

    लोक संस्कृति और अनेकता में एकता की दिखती झलक

    उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की सीमा पर चित्रकूट तीर्थ क्षेत्र में आयोजित होने वाले पांच दिवसीय दीपदान मेला में लोक संस्कृति और अनेकता में एकता की झलक दिखाई पड़ेगी। मेला के दौरान होने वाले आयोजन लोक परंपराओं पर आधारित होंगे।

    इस साल फिर ये होंगे प्रमुख आकर्षण

    दिवारी नृत्य : इस साल भी दीपदान मेला में सांस्कृतिक रंग देखने को मिलेंगे। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध लोकनृत्य दिवारी की धूम रहेगी। दीपावली के दूसरे दिन पूरा मेला क्षेत्र मयूरी नजर आएगा। मौनियों की टोली मोर पंख और लाठी के साथ नृत्य करती जगह-जगह दिखेंगी। यह बुंदेलखंड का सबसे प्राचीन लोकनृत्य है।

    लाखों में बिकते गधे : दीपावली में मदाकिनी तट पर विशाल गधा मेला भी लगता है। इसमें उप्र, मप्र समेत अलग-अलग प्रांतों के व्यापारी गधों को बेचने और खरीदने आते हैं। पांच दिन में यहां पर गधों की खरीद-बिक्री में करोड़ों रुपये का व्यापार होता है। यह मेला सतना जिला की नगर पंचायत नयागांव लगवाती है।

    ग्रामश्री मेला : इस साल भी दीनदयाल शोध संस्थान की ओर से खेतीबाड़ी व स्वावलंबन पर आधारित ग्रामश्री मेला मुख्य आकर्षण रहेगा। रामनाथ आश्रमशाला पीली कोठी रोड में मेला में दिवारी नृत्य की प्रतियोगिता भी होगी।