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    महोबा में रक्षाबंधन के दूसरे दिन बहनें बांधती हैं राखी, जानिए - सालों पहले क्यों पड़ी यह परंपरा

    By Shaswat GuptaEdited By:
    Updated: Mon, 23 Aug 2021 05:40 PM (IST)

    Unique Story of Rakshabandhan बात 839 साल पहले की है कीरतसागर के तट पर हुए भुजरियों के युद्ध में राजकुमारी चंद्रावल ने सखियों के साथ हाथों में तलवार लेकर आल्हा ऊदल की गैर मौजूदगी में ठीक रक्षाबंधन के दिन पृथ्वीराज चौहान से लोहा लिया था।

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    बुदंलेखंड की यह परंपरा अन्य जगहाें से कुछ अलग है।

    महोबा, [जागरण स्पेशल]। Unique Story of Rakshabandhan रक्षाबंधन आते ही चौहान और चंदेल सेनाओं के बीच हुए भुजरियों के युद्ध की यादें ताजा हो जाती थीं। रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी चंद्रावल अपनी सखियों के साथ युद्ध में जौहर दिखा रही थीं। जाकै दुश्मन सुख में सोवे उनके जीवन को धिक्कार, बड़े लड़ैया महुबे वाले उनसे हार गई तलवार... की पंक्तियां उस समय चरितार्थ होती थीं। तब आल्हा ऊदल को भुजरियां (अंकुरित गेहूं) देकर राजकुमारी सहित अन्य वीरांगनाएं रक्षा का वचन लेती थीं और आज भी बहनें यह परंपरा निभाती आ रही हैं। बुंदेलखंड की यह परंपरा अन्य जगहों से कुछ अलग है।

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    कैसे शुरू हुई यह परंपरा: बात 839 साल पहले की है, कीरतसागर के तट पर हुए भुजरियों के युद्ध में राजकुमारी चंद्रावल ने सखियों के साथ हाथों में तलवार लेकर आल्हा ऊदल की गैर मौजूदगी में ठीक रक्षाबंधन के दिन पृथ्वीराज चौहान से लोहा लिया था, युद्ध में विजय प्राप्त हुई और राखी के दूसरे दिन कजलियों का विसर्जन हो सका। यही कारण है कि समूचे बुंदेलखंड में रक्षाबंधन का त्योहार दूसरे दिन मनाया जाता है। देश भर में भले ही रक्षाबंधन के दिन बहनें भाइयों को रक्षासूत्र बांधती है, पर बुंदेलखंड में दूसरे दिन राखी बांधने की परंपरा है, जो आज भी चली आ रही है। वीरांगनाएं अंकुरित गेहूं देकर रक्षा का वचन लेती है। आज भी यह परंपरा जीवंत है और रक्षाबंधन के अगले दिन बहनें घर में अंकुरित गेहूं भाइयों को देकर रक्षा का वचन लेती है और कीरतसागर में उनका विसर्जन होता है। यहां विजयोत्सव का जश्न मनाया जाता है और एक सप्ताह तक लगने वाले मेले में हजारों लोग आते हैं, लेकिन कोरोना की वजह से इस बार भी मेले को स्थगित किया गया है।

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    निष्कासित किए गए थे आल्हा ऊदल: सन 1182 में उरई के राजा माहिल के कहने पर राजा परमालिदेव ने बुंदेली धरा के वीर सेनापति आल्हा और ऊदल को राज्य से निष्कासित कर दिया था। उसी समय रक्षाबंधन के दिन राजकुमारी चंद्रावल अपने सखियों के साथ शहर के ऐतिहासिक कीरतसागर तट पर कजलियों का विसर्जन करने गई थी। तभी दिल्ली के राजकुमार पृथ्वीराज चौहान ने कीरतसागर पर आक्रमण कर दिया और राजकुमारी चंद्रावल को घेर लिया। पृथ्वीराज चौहान ने राजा परमाल से युद्ध रोकने को बेटी चंद्रावल, पारस पथरी व नौलखा हार सौंपने की शर्त रखी। लेकिन यह सब दासता स्वीकार करने जैसा था, इसलिए चंदेल शासक परमाल ने इसे ठुकरा दिया और चौहान व चंदेल सेनाएं आमने-सामने हो गई और दोनों में भीषण संग्राम शुरू हुआ। जिसमें चंदेल सेना विजयी हुई।

    युद्ध की भनक लगने पर आए थे आल्हा ऊदल: आल्हा गायक वंशगोपाल यादव व इतिहासकार डा. एलसी अनुरागी बताते हैं कि आल्हा-ऊदल की गैरमौजूदगी में राजकुमारी चंद्रावल ने हाथों में तलवार लेकर सखियों के साथ जौहर दिखा पृथ्वीराज का डटकर मुकाबला किया। निष्कासित किए गए आल्हा ऊदल को भनक लगी तो वह भी साधु वेश में यहां आए और चौहान सेना का डटकर मुकाबला किया। भीषण युद्ध में राजकुमार अभई मारा गया। अंत में चंदेल सेनाओं ने चौहान सेना को धूल चटाकर घुटने टेकने को मजबूर कर दिया।