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    खेत खलिहान... आलू और गेहूं की बोआई को लेकर किसान बरतें सर्तकता, तापमान पर रखें नजर

    Updated: Thu, 20 Nov 2025 09:18 PM (IST)

    आलू की बोआई कर रहे किसानों को तापमान के प्रति सतर्क रहने की सलाह दी गई है। उचित तापमान फसल के विकास के लिए महत्वपूर्ण है। किसानों को विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार बोआई का समय निर्धारित करना चाहिए और फसल को ठंड से बचाने के उपाय करने चाहिए। नियमित निगरानी से फसल को नुकसान से बचाया जा सकता है।

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    सीड ड्रिल मशीन से बोआई करते हुए किसान। जागरण

    जागरण संवाददाता, कानपुर। आलू की बोआई के लिए अक्टूबर मध्य से नवंबर का पहला सप्ताह सबसे उपयुक्त माना जाता है। हालांकि, इस साल मौसमी परिस्थितियां अलग हैं। देर तक बरसे मानसून और बदले मौसम की वजह से धान की कटाई अब तक हो रही है। ऐसे में आलू और गेहूं दोनों फसलों की बोआई देर से हो रही है। कृषि विज्ञानियों के अनुसार 20 नवंबर के बाद आलू की बोआई में किसानों को मौसम पर सतर्क नजर रखने की जरूरत है।

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    दिन का तापमान 18 डिग्री सेल्सियस और रात का तापमान नौ डिग्री के ऊपर रहने तक आलू की बोआई की जा सकती है। इसी तरह, गेहूं की बोआई भी 20 से 25 डिग्री के बीच के तापमान पर किया जाना अच्छा है। कम तापमान में भी गेहूं अंकुरित होता है लेकिन इससे फसल को पूरी बढ़वार का मौका नहीं मिल पाता है।

     

    धान की कटाई के बाद किसान अब अपने खेतों में आलू और गेहूं की बोआई में जुटे हैं। ज्यादातर किसानों ने अपनी आलू फसल की बोआई पूरी कर ली है लेकिन अब भी कुछ किसान खेत तैयार कर अंतिम दौर की बोआई कर रहे हैं। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के शाक-भाजी उत्कृष्टता केंद्र के आलू विज्ञानी डा. अजय यादव बताते हैं कि आलू की उन प्रजातियों की बोआई अभी की जा सकती है जो देर से उगाई जाती हैं। अभी मौसम आलू खेती के अनुकूल बना हुआ है। लगातार तीन से चार दिन तक अगर दिन का अधिकतम तापमान 18 डिग्री से नीचे और रात का तापमान नौ डिग्री से नीचे रहता है तब आलू की बोआई नहीं करनी चाहिए। यह मौसम आलू कंद बढ़ने का होता है।

     

    डा. अजय कुमार यादव के अनुसार कानपुर क्षेत्र के लिए कई उन्नत किस्में उपलब्ध हैं। चिप्स बनाना, सामान्य उपयोग या जल्दी तैयार होने वाली फसल और रोग प्रतिरोधक क्षमता के आधार पर प्रजातियों का चयन किया जा सकता है। इसमें कुफरी बहार, कुफरी पुष्कर, कुफरी सिंदूरी, कुफरी चिप्सोना की खेती सबसे अच्छी है।

     

    आलू की बोआई के लिए इन बातों का रखें ध्यान

    • बोआई के लिए मिट्टी को बिल्कुल भुरभुरी बना लें।
    • हरी खाद का प्रयोग जरूर करें।
    • बोआई के समय एक हेक्टेयर में डीएपी 2.25 क्विंटल, म्यूरेट आफ पोटाश 1.6 क्विंटल, 20 से 25 किलोग्राम बोरान और कैल्शियम इस्तेमाल करें।
    • ट्राइकोडर्मा चार से पांच किलोग्राम एक हेक्टेयर में देने से फंगस रोग नहीं होता।
    • कतार से कतार की दूरी 60 सेंटीमीटर और पौधे से पौधे की दूरी 20 सेंटीमीटर रखकर बोआई करें।

     

     

    आलू की प्रमुख प्रजातियां

    • कम समय वाली प्रजातियां: कुफरी सुख्याति, कुफरी मोहन, कुफरी गंगा, कुफरी ख्याति।
    • मध्य समय लेने वाली प्रजाति: कुफरी बहार, कुफरी पुखराज, कुफरी संगम, कुफरी पुष्कर, कुफरी भास्कर, कुफरी किरण, कुफरी तेजस।
    • प्रसंस्करण वाली प्रजातियां: कुफरी चिपसोना 1, 2, 3, 4, 5 और कुफरी चिपभारत 1, कुफरी चिपभारत 2, फ्राइसोना एवं फ्राइओम।
    • लाल रंग वाली प्रजातियां: कुफरी रतन, कुफरी लोहित, कुफरी उदय, कुफरी सिंदूरी, कुफरी मानिक, कुफरी ललित, कुफरी लालिमा।

     

     

    कड़ाके की सर्दी से पहले कर लें गेहूं की बोआई

    धान की देर से कटाई करने वाले किसान अब गेहूं की बोआई कर रहे हैं। मौसम विशेषज्ञ डा. एसएन सुनील पांडेय के अनुसार, गेहूं बीज अंकुरण का आदर्श तापमान 20 से 25 डिग्री सेल्सियस होता है। हालांकि, बीज 3.5 डिग्री सेल्सियस के कम तापमान में भी उग जाते हैं। गेहूं की अच्छी बढ़वार के लिए तापमान लगभग 16 से 20 डिग्री सेल्सियस के बीच होना चाहिए। ऐसे में कड़ाके की सर्दी शुरू होने से पहले ही गेहूं की बोआई करना बेहतर है। पछेती प्रजातियों की बोआई दिसंबर में भी की जाती है।

     

    मौसम में हो रहे बदलावों को ध्यान में रखते हुए कृषि विज्ञानी भी अब ऐसी प्रजातियों की खेती का सुझाव दे रहे हैं जो बेमौसम की बारिश, आंधी, तूफान, ओलावृष्टि को बर्दाश्त कर सकें। चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय में विकसित गेहूं की प्रजाति के-1317 में ये सभी गुण हैं। केवल एक सिंचाई पर भी इसका प्रति हेक्टेयर उत्पादन 40 क्विंटल से अधिक रहता है। दो से तीन सिंचाई में प्रति हेक्टेयर 55-60 क्विंटल तक उत्पादन मिलता है। सीएसए के विज्ञानी व निदेशक शोध व प्रसार डा. राजेन्द्र कुमार यादव ने बताया कि 120 से 130 दिन में तैयार होने वाली यह प्रजाति बुंदेलखंड के किसानों के लिए वरदान है।

     

    गेहूं की बोआई करते समय इन बातों का रखें ध्यान

    • गेहूं की बोआई से पहले एक बार मिट्टी पलटने वाले डिस्क हैरो और कम से कम दो बार कल्टीवेटर अथवा एक बार रोटावेटर से खेत की जोताई जरूर करनी चाहिए।
    • प्रत्येक जोताई के बाद पाटा भी लगाएं। जहां सिंचाई के साधन नहीं हैं वहां शाम को जोताई करके दूसरे दिन सुबह पाटा लगाने से खेत में नमी बनी रहती है।
    • यदि खाद एवं बीज एक साथ बोना है तो फर्टीसीड ड्रिल का प्रयोग करना चाहिए।
    • बोआई से पहले बावस्टीन या कार्वान्डाजिम की 2.5 ग्राम दवा को एक किग्रा में मिलाकर शोधित किया जाना चाहिए। इसी अनुपात में अगर 100 किलो बीज लिया जाता है तो 250 ग्राम दवा का प्रयोग करना चाहिए।
    • अच्छी उपज के लिए प्रति हेक्टेयर में 10 टन गोबर खाद का प्रयोग करना चाहिए। उवर्रकों का प्रयोग करने से पहले मिट्टी की उर्वरा शक्ति यानी मृदा परीक्षण जरूर कराएं। इससे खाद का बेवजह प्रयोग नहीं करना पड़ेगा।
    • सिंचित समय से बोआई करते हैं तो 150:60:40 और सिंचित विलंब से एवं उसरीली जमीन में बोआई पर 120:60:40 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से क्रमशः नाइट्रोजन, फास्फोरस एवं पोटाश और 25 किग्रा गंधक का प्रयोग करें।
    • अगर खेत में दलहनी फसलें बोई गयी है तो नाइट्रोजन की मात्रा 20 किग्रा प्रति हेक्टेयर कम करें।

     

     

    कब करें सिंचाई

    गेहूं में पहली सिंचाई बोआई से 20-25 दिन बाद, दूसरी सिंचाई बोआई से 40-45 दिन बाद कल्ले निकलते समय, तीसरी सिंचाई 60-65 दिन बाद गांठ बनते समय, चौथी सिंचाई 80-85 दिन बाद फूल आने पर और पांचवीं सिंचाई बोआई से 110-115 दिन बाद दुग्धावस्था पर करनी चाहिए ।

     

     

    गेहूं की प्रमुख प्रजातियां

     

    • असिंचित खेतों के लिए: के-1317 और के-1616
    • सिंचित खेतों के लिए: ममता (के-607), देवा (के-9107) और उन्नत हलना
    • ऊसर भूमि के लिए: प्रसाद (के-8434)