चीनी मिलों की राख से बनेंगी ईंट, प्लास्टर की नहीं होगी जरूरत; मजबूती ज्यादा और प्लास्टर की भी जरूरत नहीं
कानपुर के राष्ट्रीय शर्करा संस्थान (NSI) ने चीनी मिलों से निकलने वाली राख से ईंटें बनाने की तकनीक विकसित की है। यह तकनीक चीनी मिलों की आय बढ़ाने और प्रदूषण को नियंत्रित करने में मददगार है। इन ईंटों को बनाने के लिए राख पत्थर की रेत और सीमेंट का उपयोग किया जाता है। यह ईंटें मजबूत और सीलन मुक्त होती हैं साथ ही प्लास्टर की भी आवश्यकता नहीं होती।

अखिलेश तिवारी, कानपुर। चीनी मिलों से निकलने वाली राख वायु प्रदूषण की बड़ी वजह होती है, लेकिन अब इसका पर्यावरण अनुकूल और स्थायी समाधान तलाश लिया गया। राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन की अगुवाई में रिसर्चर टीम ने इससे खूबसूरत और टिकाऊ ईंटें तैयार करने का तरीका विकसित किया।
इस तकनीक का डालमिया शुगर इंडस्ट्रीज की कोल्हापुर महाराष्ट्र और यूपी के सीतापुर में रामगढ़ स्थित चीनी मिल में प्रयोग भी शुरू कर दिया है।
अब दोनों चीनी मिलों से निकलने वाली राख से ऐसी ईंट बनाई जा रही हैं जो पारंपरिक ईंटों के मुकाबले अधिक मजबूत और सीलन मुक्त हैं। इन ईंटों से बनी दीवारों पर प्लास्टर करने की जरूरत भी नहीं पड़ती है।
चीनी मिल से निकली राख से ईंट बनाते हुए श्रमिक। संस्थान
पांच हजार टन गन्ना की पेराई करने वाली चीनी मिल से प्रति दिन 20 टन तक राख का उत्सर्जन होता है। अभी तक इस राख का निस्तारण चीनी मिलों की ओर से गड्ढों के भराव में किया जाता रहा है लेकिन चीनी मिलों से निकली राख में विभिन्न रसायनिक पदार्थों की मौजूदगी से वह मिट्टी के स्वास्थ्य के लिए उपयुक्त नहीं माना जाती।
इसी कारण केंद्रीय और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डों की ओर से चीनी मिलों पर लगातार शिकंजा कसा जाता है। उनसे राख के उचित निस्तारण के बारे में सवाल-जवाब किए जाते हैं।
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के पूर्व निदेशक प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि चीनी मिलों के बायलरों से निकलने वाली राख से वायु प्रदूषण होता है और इसका निपटान मुश्किल है। लंबे समय से इसके सुरक्षित निपटान पर विचार किया जाता रहा है।
चीनी मिल में गन्ने की खोई जलने से निकली राख से तैयार ईंट। संस्थान
इस समस्या के समाधान पर काम शुरू किया गया तो बिजलीघरों से निकलने वाली राख की तरह इसके उपयोग का विचार आया। चीनी मिलों से निकलने वाली राख और बिजलीघरों की राख के गुण अलग हैं।
इससे ईंट बनाने में बड़ी समस्याएं आईं, लेकिन आखिरकार सफलता मिल गई। अब डालमिया समूह की दो चीनी मिलों में बायलर की राख से ईंट का निर्माण किया जा रहा है।
ऐसे बनती है ईंट
प्रो. नरेंद्र मोहन ने बताया कि ईंट बनाने के लिए जरूरी कच्चा माल बायलर की राख, पत्थर की रेत और सीमेंट है। इसे निर्धारित अनुपात में मिलाकर हाइड्रोलिक प्रेस से वांछित आकार की ईंट बनाई जा रही हैं। खोई की राख से बनी ईंटों को 21-30 दिनों तक पानी का छिड़काव कर मजबूत बनाया जाता है।
डालमिया भारत शुगर एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड के उप कार्यकारी निदेशक आसिफ बेग के अनुसार बायलर से प्राप्त राख का उपयोग करके ईंट, पेवर्स, टाइलें और ब्लाक का उत्पादन किया जा रहा है।
मजबूती अधिक, प्लास्टर की जरूरत नहीं
राष्ट्रीय शर्करा संस्थान के पूर्व निदेशक और डालमिया समूह के सलाहकार प्रो. नरेंद्र मोहन। संस्थान
प्रो. मोहन ने बताया कि गन्ने की खोई को चीनी मिलों के बायलर में जलाया जाता है। इस राख में मुख्य तौर पर सिलिकान, एल्युमिनियम, आयरन और कैल्शियम के आक्साइड होते हैं। मैग्नीशियम, पोटेशियम, सोडियम, टाइटेनियम और सल्फर की थोड़ी मात्रा भी होती है।
इससे ईंटों की मजबूती बढ़ गई और वह देखने में चमकदार हो गए। ये ईंट बाजार में उपलब्ध स्टोन डस्ट, फ्लाई ऐश (कोयले की राख) और सीमेंट से बनी ईंट से सस्ती और टिकाऊ है। इन ईंटों को बनाने की लागत प्रति ईंट पांच से सात रुपये तक आती है।
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