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    Nag Panchami 2025: कानपुर के हर घर में बनते नाग, गुड़िया पीटने की परंपरा अनोखी

    By Anurag Shukla1Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Tue, 29 Jul 2025 01:54 PM (IST)

    Nag Panchami 2025 कानपुर में नागपंचमी का उत्सव धूमधाम से मनाया जा रहा है। यहां पर नाग पंचमी के अवसर पर हर घर में नाग देवता की पूजा होती है। साथ ही यहां पर गुड़िया पीटने की भी परंपरा अनोखी है। बीच चौराहों में बच्चों का हुजूम देखा जा सकता है।

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    कानपुर में नाग पंचमी के अवसर पर अनोखी परंपरा।

    जागरण संवाददाता, कानपुर। कानपुर में नाग पंचमी पर्व का अलग ही महत्व है। यहां पर घरों की दीवारों ने नाग बनाकर पूजन किया जाता है। चौक चौराहों पर गुड़िया पीटी जाती हैं। साथ ही नाग देवता के नाम से मंदिर स्थापित है। इसका अलग ही धार्मिक महत्व है।

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    शहर में नागपंचमी का उत्सव इस वर्ष धूमधाम से मनाया जा रहा है। यह पर्व न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि क्षेत्रीय संस्कृति और परंपराओं का भी महत्वपूर्ण हिस्सा है। नाग देवता की पूजा के साथ-साथ यहां गुड़िया पीटने की अनोखी परंपरा भी देखने को मिल रही है। नागपंचमी के अवसर पर शहर के हर घर में नाग देवता की पूजा की जा रही है। लोग अपने घरों में कच्चा कोयला या गोबर से दीवारों पर नाग बनाकर पूजन करते हैं, जिसमें दूध, उबला चना और गेहूं और फूल अर्पित किए जाते हैं।

    ये है मान्यता

    नाग पंचमी के दिन किसान खेती किसानी का कार्य नही करते हैं। न किसी भी तरह लोहे से बना कृषि औजार का जमीन में उपयोग करते हैं। साथ ही राहु-केतु के दुष्प्रभाव से बचने के लिए भी दीवारों की आकृति उकेरकर उनकी पूजा की जाती है। मान्यता अनुसार घर के मेनगेट पर नाग देवता की आकृति बनाने से काल सर्प दोष का प्रभाव कम होता है। नाग घर में प्रवेश नहीं करते हैं।

    गुड़िया पीटने की परंपरा अनोखी

    शहर में नहर और जल श्रोतों के पास बच्चों के गुड़िया पीटने की परंपरा भी निभाई जाएंगी। बहने गुड़िया लेकर जल श्रोतों के पास पहुंचती हैं। वहां पर भाई डंडों से गुड़िया पीटते हैं। मान्यता है कि राजा परीक्षित की मृत्यु तक्षक नाग के विष से हुई थी। तक्षक की चौथी पीढ़ी की कन्या का विवाह राजा परीक्षित के वंशज से हुआ। विवाह के बाद इस कन्या ने अपने अतीत का रहस्य एक सेविका को बताया। सेविका ने यह सारी बात आगे किसी और को कह दी। बात नगर में फैल गई। क्रोधित होकर तक्षक राजा ने नगर की सभी स्त्रियों को इकट्ठा कर चौराहे पर कोड़ों से पिटवा दिया। तब से यह परंपरा प्रतीकात्मक रूप में गुड़िया पीटने की रस्म में बदल गई। कहा जाता है कि इस रस्म से बुरी शक्तियों का नाश होता है। इससे घर में सुख-समृद्धि आती है। बच्चों के उत्साह ने इस प्राचीन लोक परंपरा को आज भी जीवित रखा है।

    ये भी परंपरा खास

    नागपंचमी पर शहर में पतंग उड़ाने की काफी प्राचीन परंपरा है। पुराना कानपुर, छावनी, चमनगंज, बेकनगंज, इफ्तिखाराबाद, बाबूपुरवा, किदवई नगर, यशोदा नगर, बर्रा, खाड़ेपुर और गंगा बैराज में पतंगों के पेच लड़ाए जाएंगे। इन स्थानों पर आसमान में पतंग-पतंग ही दिखाई देती हैं। निराला नगर रेलवे ग्राउंड और बाबूपुरवा छह नंबर गेट पर पतंगों के इनामी पेच लड़ाए जाएंगे। यहां पर 11 हजार से लेकर एक लाख तक की शर्तें पतंगबाज लगाते हैं। पतंगों के पेच लड़ाने के लिए तैयारी की जाती है। विशेष रूप का मंझा प्रयोग में लाया जाता है। गुप्तार घाट स्थित पं.चंदिका गुरु अखाड़ा में नाग पंचमी पूजन के बाद कुश्ती होगी। अन्य अखाड़ों में भी पहलवान दांव-पेच दिखाएंगे। भगवतदास घाट पर सबसे बड़ी 21 हजार रुपये की कुश्ती होगी।