फिल्म केसरी में खलनायक सईदुल्लाह पहुंचे कानपुर, बोले- फूलबाग का चौराहा मिनी मुंबई
फिल्म केसरी में खलनायक की भूमिका निभाने वाले अभिनेता राकेश चतुर्वेदी ओम ने कहा कि इंडस्ट्री में अच्छे लेखकों की कमी है। उन्होंने थिएटर को अभिनय की असली शिक्षा बताया जहां नसीरुद्दीन शाह उनके गुरु थे। राकेश फिलहाल नई फिल्मों पर काम कर रहे हैं और कानपुर पर आधारित कहानी को पर्दे पर लाने की योजना बना रहे हैं।

जागरण संवाददाता, कानपुर। फिल्म केसरी में खलनायक सईदुल्लाह की भूमिका से चर्चित हुए अभिनेता और लेखक राकेश चतुर्वेदी ओम का जुड़ाव कानपुर की गलियों से अब भी बरकरार है। बिरहाना रोड में पले-बढ़े राकेश कहते हैं, फूलबाग का चौराहा उन्हें मिनी मुंबई की झलक देता है। उन्होंने कहा कि इंडस्ट्री में अच्छे लेखक और कहानियों का अभाव है, जिसे वर्कशाप कर दूर करना होगा। थिएटर में नसीरुद्दीन शाह उनके गुरु रहे हैं और आज भी उनके साथ मंच साझा करते हैं। बीस साल की मेहनत के बाद केसरी ने उन्हें नई पहचान दिलाई। फिलहाल वह नई फिल्मों पर काम कर रहे हैं और कानपुर पर आधारित कहानी को भी परदे पर उतारने की योजना बना रहे हैं। जागरण संवाददाता रितेश द्विवेदी से हुई बातचीत के कुछ अंश...
- आपकी अभिनय यात्रा थिएटर से शुरू हुई, फिल्मों तक पहुंचने का सफर कैसा रहा?
- जी हां, मैंने दिल्ली के नेशनल स्कूल आफ ड्रामा से पढ़ाई की और वहीं से मेरी असली शुरुआत हुई। थिएटर ने मुझे सिखाया कि अभिनय सिर्फ संवाद बोलना नहीं, बल्कि जीना है। फिल्मों तक पहुंचना आसान नहीं था, छोटे-छोटे रोल करके पहचान बनाई। धीरे-धीरे मेहनत रंग लाई और आज दर्शक मुझे बड़े किरदारों में देख रहे हैं।
- एनएसडी में सीखी गई कौन-सी सीख आज भी आपके काम में सबसे ज्यादा मदद करती है?
- वहां हमें सिखाया गया कि एक्टर को हर हाल में सच्चा होना चाहिए। मंच पर हो या कैमरे के सामने जब तक आपकी सच्चाई दर्शक तक नहीं पहुंचती, तब तक कला अधूरी रहती है। यही सीख हर दिन काम आती है।पर्दे का खलनायक भी फिल्म का हीरो है।
- थिएटर और सिनेमा – दोनों में अभिनय करते समय आपको सबसे बड़ा फर्क कहां महसूस होता है?
- थिएटर में मेरे गुरू अभिनेता नसीरुद्दीन शाह हैं, आज भी उनके साथ थिएटर करके सीखता हूं। दर्शक सामने बैठा होता है, प्रतिक्रिया तुरंत मिल जाती है। सिनेमा में कैमरे से संवाद करना पड़ता है और दर्शक बाद में आपकी मेहनत को देखता है। दोनों ही चुनौतीपूर्ण हैं लेकिन थिएटर आत्मा गढ़ता है और सिनेमा उसे अभिव्यक्ति देता है।
- फिल्म केसरी में आपका किरदार बहुत चर्चा में रहा। उस भूमिका को निभाने की तैयारी आपने कैसे की?
- अक्षय कुमार जैसे बड़े स्टार के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा?
- प्रत्येक बड़े एक्टर के साथ काम करने का अनुभव बेहतर रहता है। अक्षय जी बहुत अनुशासित कलाकार हैं। वे सेट पर माहौल हल्का रखते हैं लेकिन काम के वक्त पूरी तरह गंभीर हो जाते हैं। उनसे यह सीखा कि प्रोफेशनलिज़्म कितना जरूरी है। सुबह-सुबह शूटिंग शुरू होती थी और वे हमेशा समय पर तैयार रहते थे।
- अभिनय आपके लिए पेशा है या साधना?
- मेरे लिए अभिनय साधना है। अगर इसे सिर्फ पेशा मान लूं तो उसमें भावनाओं की गहराई खत्म हो जाएगी। हर किरदार को निभाना मेरे लिए एक नई यात्रा है।
- आने वाले समय में दर्शक आपको किन नए प्रोजेक्ट्स में देखेंगे?
- फिलहाल मैं कुछ फिल्मों और वेब-सीरीज़ पर काम कर रहा हूं। जिनका अभी नाम लेना ठीक नहीं होगा। कानपुर को लेकर फिल्म जरूर बनाना चाहता हूं, उसके लिए काम कर रहा है।
- आज के युवा कलाकारों को आप क्या सलाह देना चाहेंगे?
- सबसे पहले थिएटर से जुड़ें। अभिनय की असली शिक्षा वहीं मिलती है। जल्दी प्रसिद्धि पाने की बजाय कला को आत्मसात करें। मेहनत और सच्चाई से किया गया काम ही लंबी दौड़ में पहचान दिलाता है। घर पर ही थियटर बनाकर अभिनय सीखें। इसके बाद मंजिल आसान हो जाती है। लोग आपकी कला देखकर खुद प्रोजेक्ट तैयार करें, तभी आप की सफलता है।
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