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    Kanpur News: दावों के आगे दम तोड़ गई जिंदगी, जाम में दर्द से तड़पते दो मरीजों की गई जान

    Updated: Mon, 01 Sep 2025 11:23 PM (IST)

    Kanpur City Traffic Jams कानपुर में जानलेवा जाम ने फिर दो लोगों की जान ले ली। कौशांबी के बुजुर्ग और शुक्लागंज के युवक की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। मेडिकल कालेज के पास लगे जाम में फंसकर मरीजों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।

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    एलएलएल अस्पताल के पास जाम में फंसे आटो से मुन्ना को कार्डियोलाजी ले जाते स्वजन। वीडियो ग्रैब

    जागरण संवाददाता, कानपुर। एक बार फिर शहर में जाम में फंसकर जिंदगी ने दम तोड़ दिया। भले ही पुलिस प्रशासन और शहर की सरकार जाम हटाने के लाख दावें करती हैं लेकिन हकीकत सबके सामने हैं। एक बार फिर दो लोग जाम के आगे जिंदगी की जंग हार गए। एक बुजुर्ग ओर एक युवक की मौत हो गई।

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    जानलेवा हो चुके जाम ने सोमवार को दो और लोगों की जान ले ली। मेडिकल कालेज और एलएलआर अस्पताल के सामने रोजाना लगने वाले जाम में फंसकर कौशांबी निवासी बुजुर्ग और शुक्लागंज के युवक की अस्पताल पहुंचने से पहले ही मौत हो गई। 20 मिनट के अंतराल में हुईं दोनों घटनाओं ने लोगों को झकझोर दिया। कोई भी विभाग इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।

    यातायात पुलिस का तो यहां तक कहना है कि गाड़ी जाम में फंसी ही नहीं थी और सिपाहियों ने रास्ता साफ करके अस्पताल तक पहुंचाया था। पिछले माह 15 अगस्त की रात दादानगर पुल के पास जाम में फंसकर दबौली निवासी बरखा गुप्ता की मौत हो गई थी। इससे पहले 25 जून 2021 को तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द कानपुर आए थे तो उनकी विशेष ट्रेन को दिल्ली-हावड़ा रेलमार्ग से गुजारे जाने के दौरान गोविंदपुरी ओवर ब्रिज पर यातायात रोक दिया था, जिसमें फंसकर महिला उद्यमी वंदना मिश्रा की जान चली गई थी।

    यातायात विभाग खराब सड़कों का हवाला देकर ठीकरा नगर निगम पर फोड़ देता है, वहीं नगर निगम है कि उसने आंखें ही बंद कर ली हैं। नासूर बन चुकी इस समस्या के निदान के लिए कोई भी पहल करता हुआ नहीं दिखाई दे रहा है। सचेंडी थाना क्षेत्र की पीआरवी (पुलिस रिस्पांस ह्वीकल) में तैनात सिपाही मुकेश यादव व अजीत कुमार ने बताया कि भौंती में दीपू चौहान ढाबे के पास सोमवार दोपहर बाद पौने तीन बजे हाईवे पार करने के दौरान कंटेनर की चपेट में आने से बुजुर्ग घायल हो गए।

    पीआरवी से उन्हें एलएलआर अस्पताल ला रहे थे। 3.30 बजे वह मेडिकल कालेज पुल पर लगे जाम में फंस गए। करीब 15 मिनट तक वाहन रेंग–रेंगकर चलते रहे। पुलिसकर्मी किसी तरह से जाम खुलवाकर बुजुर्ग को लेकर एलएलआर इमरजेंसी में पहुंचे, जहां डाक्टरों ने बुजुर्ग को मृत घोषित कर दिया।

    तलाशी के दौरान उसके पास मिले आधार कार्ड से पहचान कौशांबी के ग्राम कुआंडीह पोस्ट पश्चिम सरीरा निवासी 61 वर्षीय रामदयाल के रूप में हुई। इस घटना के करीब 20 मिनट बाद ही सीने में दर्द होने पर उन्नाव के शुक्लागंज निवासी 40 वर्षीय मुन्ना के स्वजन उन्हें आटो से हृदय रोग संस्थान (कार्डियोलाजी) जा रहे थे। वे भी एलएलआर अस्पताल के पास आटो-ई-रिक्शा की अराजकता के कारण पुल के पास लगे जाम में फंस गए।

    स्वजन लोगों से जाम खुलवाने की मिन्नतें करते रहे लेकिन किसी ने नहीं सुना। वहां पर कोई यातायात सिपाही भी नहीं था। इसके बाद स्वजन ने किसी तरह आटो से खुद उतरकर जाम खुलवाया और कार्डियोलाजी लेकर पहुंचे, पर तब तक मुन्ना की सांसें टूट चुकी थीं। जाम में फंसे आटो का वीडियो भी प्रचलित है। , डीसीपी यातायात रवीन्द्र कुमार ने जाम से इन्कार किया है। एलएलआर के पास मौजूद ट्रैफिक कर्मियों ने रास्ता साफ कराते हुए पीआरवी को अस्पताल के अंदर पहुंचाया था।

    बरखा से वंदना तक... जाम से हार गई जिंदगी

    केडीए कहता है, बिना लेआउट प्लान के कालोनियां बस गईं, नेता कहते हैं योजना बनी है, जल्द सुधार होगा...हर विभाग और प्रत्येक जिम्मेदार समस्याओं को टालता रहा, मगर बरखा और वंदना जैसी महिलाएं इसकी कीमत समय पर इलाज न मिलने से अपनी जान देकर चुका रही हैं। चार साल पहले भी ऐसा ही एक हादसा हुआ था, जिस पर देश के तत्कालीन राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द ने दु:ख जताया। कानपुर पुलिस का वो ट्वीट जिसमें कहा गया कि हमें इस घटना पर खेद है और तीन पुलिसकर्मियों पर कार्रवाई कर मामले को खत्म कर दिया लेकिन सुधार के नाम पर कुछ पुल मिले, अतिक्रमण अभियान चले और बाकी जाम की स्थिति जस-तस बनी रही। 

    औद्योगिक शहर है, यहां लाखों लोग रोजाना कामकाज के लिए निकलते हैं। मगर सड़कें उनके लिए सहूलियत नहीं, बल्कि मौत का खतरा बन चुकी हैं। बरखा और वंदना की घटनाएं सिर्फ दो उदाहरण हैं, असलियत में हर दिन न जाने कितनी एंबुलेंस और कितने मरीज जाम में फंसकर वक्त पर इलाज से वंचित रह जाते हैं। अब सवाल यही है कि क्या प्रशासन, पुलिस, नगर निगम, केडीए और नेताओं में इतनी संवेदना है कि वे इस शहर की सांसें बचाने के लिए एकजुट होकर जिम्मेदारी निभाएं? या फिर हर बार मौत के बाद सिर्फ बयान दिए जाएंगे और सड़कें मौत का जाल बनी रहेंगी? 

    शहर के लोगों का दर्द यही है। ट्रैफिक अब सिर्फ परेशानी नहीं, बल्कि जिंदगी और मौत का खेल बन चुका है। बरखा से वंदना तक की कहानियां इस शहर की बेबसी की गवाही दे रही हैं। अब वक्त आ गया है कि जिम्मेदार जवाब दें। शहर में 21 किमी लंबे जीटी रोड पर सबसे ज्यादा जाम लगता है। यहां प्रत्येक 100 मीटर पर अतिक्रमण, अवैध निर्माण और गड्ढे राहगीरों के लिए अभिशाप बन चुके हैं। सुधार के नाम पर सालों से आश्वासन दिया जा रहा है। साथ ही फूलबाग, परेड, गुमटी, गोविंदनगर, नौबस्ता, बर्रा, फजलगंज, जरीबचौकी, टाटमिल, पी-रोड, मालरोड और कल्याणपुर जैसे क्षेत्रों के चौराहे अब लोगों के लिए दहशत बन चुके हैं। सुबह दफ्तर जाने वाले कर्मचारी, स्कूल जाते बच्चे, बीमार मरीज और हर आम-ओ-खास रोज सड़क पर जाम की गिरफ्त में फंसते हैं।

    बरसात में टूटी सड़कें, जगह-जगह खोदे गए गड्ढे, अवैध पार्किंग और फुटपाथों पर अतिक्रमण सब मिलकर शहर के कदमों को थाम देते हैं। ट्रैफिक पुलिस की मौजूदगी के बावजूद हालात काबू में नहीं आते। सड़कें किसी भी शहर की धड़कन होती हैं, लेकिन शहर में ये धड़कन अब जानलेवा साबित हो रही है। दबौली निवासी बरखा गुप्ता की मौत इस हकीकत का ताजा सबूत है। हार्ट अटैक के बाद उन्हें अस्पताल ले जाया जा रहा था, लेकिन शहर के जाम ने उनकी सांसें रोक दीं। एंबुलेंस हार्न बजाती रही, परिवारजन गुहार लगाते रहे, मगर ट्रैफिक की गिरफ्त ने उन्हें अस्पताल तक नहीं पहुंचने दिया।

    बरखा की मौत ने चार साल पुरानी एक और घटना को फिर ताजा कर दिया था। 25 जून 2021 को किदवई नगर की ब्लाक निवासी महिला उद्यमी वंदना मिश्रा की तबीयत बिगड़ी थी। कोरोना से उबरने के बाद अचानक उनकी हालत गंभीर हुई और परिवारजन उन्हें रीजेंसी अस्पताल ले जा रहे थे। मगर गोविंदपुरी पुल पर पहुंचते ही नीचे से राष्ट्रपति की ट्रेन गुजरने के नाम पर पूरा ट्रैफिक रोक दिया गया। वंदना वक्त पर इलाज नहीं पा सकीं, जिसके कारण उनकी मृत्यु हो गई थी। इन दोनों घटनाओं में चार साल का अंतर है लेकिन हालात नहीं बदले। फर्क सिर्फ इतना है कि नाम अलग हैं, चेहरे अलग हैं, मगर कहानी एक जैसी-सड़क पर जाम और जिंदगी का अंत।

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