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    Teachers Day: कानपुर समाज को दिशा दे रहे शिक्षक, मूक बधिरों की आवाज बने, राजनीति में नई राह

    Updated: Fri, 05 Sep 2025 04:25 PM (IST)

    Teachers Day 2025 कानपुर के शिक्षक समाज को नई दिशा दे रहे हैं। बिठूर के ज्योति बधिर विद्यालय के रमेश चंद्र दीक्षित मूक बधिर बच्चों को आत्मनिर्भर बना रहे हैं। उन्होंने 69 बच्चों को सरकारी नौकरी दिलाने में मदद की। प्रो. एके वर्मा महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने के लिए मुफ्त वेबिनार और कार्यशालाएं आयोजित कर रहे हैं।

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    रमेश चंद्र दीक्षित और प्रो. एके वर्मा। जागरण

    जागरण टीम, कानपुर। 

    गुरु की करके वंदना बदल भाग्य के लेख, बिना आंख के सूर ने कृष्ण लिए थे देख...। वास्तव में गुरु या शिक्षक समाज के संवाहक हैं। कच्ची मिट्टी को गढ़कर जिस तरह कुम्हार उसे बर्तन का आकार देता है, उसी प्रकार गुरु भी छात्रों के व्यक्तित्व और भविष्य को गढ़ते हैं। वह गुरु ही हैं जो प्रकृति की सुंदरता, नीले आसमान में उड़ते आजाद पक्षी, सुनहरी धूप में गुनगुनाती मधुमक्खियां और पहाड़ के ढलानों पर खिलखिलाते जंगली फूलों की हंसी से हमारी पहचान कराते हैं। गुरु के इसी अमूल्य योगदान को सम्मान देने के लिए सर्वपल्ली डा. राधाकृष्णन के जन्मदिवस पर हर साल पांच सितंबर को शिक्षक दिवस मनाया जाता है। इसी कड़ी में पढ़िए कानपुर से अखिलेश तिवारी, बिठूर से प्रदीप तिवारी की ये रिपोर्ट जिसमें शहर के उन शिक्षकों के बारे में, जो अपने योगदान से समाज को नई दिशा दे रहे हैं...

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    मूक बधिर बच्चों की 'आवाज' रमेश चंद्र

    समाज में दिव्यांगता को कमजोरी के रूप में देखा जाता है। मगर, कुशल शिक्षक हो तो इस कमी को भी पीछे ढकेलकर सफलता की राह तय की जा सकती है। बिठूर का ज्योति बधिर विद्यालय और इसके संचालक रमेश चंद्र दीक्षित इसकी मिसाल हैं। रमेश चंद्र के मार्गदर्शन में सैकड़ों बच्चे, जो पहले हीनभावना से ग्रस्त थे, अब सफलता की नित नई कहानियां लिख रहे हैं। अपने शिक्षक भाई से प्रेरणा लेकर रमेश चंद्र ने अपना जीवन दिव्यांग बच्चों के लिए समर्पित कर दिया। ज्योति बधिर विद्यालय की स्थापना 1990 में स्वर्गीय डा. सरयू नारायण दीक्षित ने की थी। डाक्टर दीक्षित अमेरिका की एक यूनिवर्सिटी में प्रोफेसर थे। जब भी वह भारत आते, दिव्यांगता को देखकर दुखी होते। अंततः उन्होंने अपने जीवन का रुख मोड़कर दिव्यांग बच्चों के लिए काम करने का निर्णय लिया।

    शुरुआत में काकादेव से दो बच्चों के साथ यह सफर शुरू हुआ और बाद में बिठूर में विद्यालय की स्थापना की गई। वर्ष 2017 में डाक्टर दीक्षित की मृत्यु के बाद, विद्यालय की जिम्मेदारी उनके भाई रमेश चंद्र दीक्षित ने संभाली। रमेश चंद्र दीक्षित बताते हैं कि वह बच्चों को सामान्य शिक्षा के साथ-साथ स्पीच थेरेपी, कंप्यूटर प्रशिक्षण, पेंटिंग, डांस, सिलाई, इलेक्ट्रिशियन कार्य और अन्य व्यावसायिक कौशल सिखाते हैं। विद्यालय में आधुनिक उपकरणों का उपयोग किया जाता है ताकि बच्चे सामान्य जीवन जी सकें। विद्यालय में छात्रावास की सुविधा भी उपलब्ध है, जिसमें 166 से अधिक छात्र-छात्राएं निःशुल्क शिक्षा ग्रहण करते हैं। इनकी देखरेख के लिए 22 शिक्षक कार्यरत हैं।

    अब तक 69 बच्चों को मिली सरकारी नौकरी

    डाक्टर दीक्षित के अनुसार, विद्यालय से शिक्षा प्राप्त कई दिव्यांग छात्र समाज में आत्मनिर्भर बनकर जीवन यापन कर रहे हैं। 69 छात्र-छात्राएं सरकारी सेवाओं में हैं, जबकि सैकड़ों की संख्या में सरकारी योजनाओं के माध्यम से स्वरोजगार से जुड़ चुके हैं।

    राजनीतिक जागरूकता के गुरु प्रो. एके वर्मा

    एक शिक्षक सदैव शिक्षक रहता है। यह बात क्राइस्ट चर्च कालेज के पूर्व शिक्षक प्रो. एके वर्मा पर अक्षरश: खरी उतरती है जिन्होंने सालों-साल तक कक्षाओं में छात्र-छात्राओं को राजनीतिक विज्ञान का सिद्धांत पढ़ाया और सेवानिवृत्ति के बाद देश के नागरिकों को जागरूक और सचेत करने का संकल्प ले लिया। लक्ष्य है अगले लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक तौर पर महिलाओं को सशक्त बनाना, ताकि जब लोकसभा और विधानसभा की 33 प्रतिशत सीटों पर महिलाएं चुनी जाएं तो उन्हें अपने परिवारीजनों का सहारा न लेना पड़े। अपने लक्ष्य को पूरा करने के लिए निश्शुल्क वेबीनार और कार्यशालाओं का आयोजन भी कर रहे हैं। महिलाओं को प्रशिक्षित करने के लिए विशेष कार्यक्रम भी तैयार किया है। सेंटर फार द स्टडी आफ सोसाइटी एंड पालिटिक्स की स्थापना की है, जिस पर रवींद्र नाथ टैगोर विश्वविद्यालय भोपाल के साथ मिलकर काम कर रहे हैं।

    अंतरराष्ट्रीय स्तर पर राजनीतिशास्त्र के अकादमिक विशेषज्ञ की पहचान रखने वाले प्रो. वर्मा से जब पूछा गया कि सेवाकाल के बाद भी कार्यशालाएं और प्रशिक्षण सत्र क्या आपको थकाते नहीं हैं तो उनका जवाब था कि ज्ञान को बांटना और दूसरों को सिखाना ही एक शिक्षक का धर्म है। क्राइस्ट चर्च कालेज से 2015 में सेवानिवृत्त हुआ तो भी राजनीतिक शिक्षण-प्रशिक्षण की धारा बहती रही। इसकी भी एक अलग कहानी है। वह बताते हैं कि 2005 में कांग्रेस का कार्यकर्ता प्रशिक्षण कार्यक्रम चित्रकूट में आयोजित हुआ और राजनीतिक प्रशिक्षण के लिए आमंत्रित किया गया। कुछ दिनों बाद गोरखपुर में आयोजित कार्यक्रम में भी बुलाया गया। इसके बाद भाजपा ने भी कानपुर में पांच हजार कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण वर्ग को प्रशिक्षित करने के लिए आमंत्रित किया। 2008 में हावर्ड यूनिवर्सिटी ने भी लेक्चर के लिए आमंत्रित किया। इसी दौर में राजनीतिक प्रबंधन पर शिक्षा के कार्यक्रम की रूपरेखा बनी।

    महिलाओं को सशक्त बनाने का संकल्प

    प्रो. वर्मा कहते हैं कि आजादी के इतने सालों के बाद भी राजनीतिक चेतना और जागरूकता की समाज में कमी है और ज्यादातर कड़ियां बिखरी हुई हैं। केंद्र की वर्तमान सरकार ने नारी शक्ति वंदन विधेयक पारित किया है। अभी लोकसभा में 74 महिला सांसद हैं लेकिन 2029 के लोकसभा चुनाव में 33 प्रतिशत आरक्षण लागू होने पर 181 महिलाएं निर्वाचित होकर पहुंचेंगी। पंचायतों में लागू आरक्षण व्यवस्था से अच्छे बदलाव देखने को मिले हैं लेकिन प्रधान पति या पार्षद पति जैसी व्यवस्था भी बन गई है। यह सब कुछ लोकसभा और विधानसभा में न देखने को मिले, इसलिए महिलाओं को राजनीतिक तौर पर जागरूक व सशक्त बनाने की जरूरत है।

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