कानपुर पीएसआइटी की हर्बल टेबलेट देगी सिरदर्द से आराम, नहीं होगा साइड इफेक्ट
कानपुर पीएसआइटी के फार्मेसी विभाग ने सिरदर्द के लिए हर्बल टेबलेट बनाई है। यह एलोपैथिक दवाओं की ही तरह तेजी से असर दिखाएगी । विभाग ने 90 दिन तक चूहों और खरगोश पर यह परीक्षण किया है ।

कानपुर, [चंद्र प्रकाश गुप्ता]। अनिद्रा, थकान और तनाव आदि के कारण होने वाली सिरदर्द व माइग्रेन की समस्या दूर करने के लिए बाजार में हर्बल टेबलेट आने वाली है। इसे गिलोय, अश्वगंधा, नागरमोठा, लटजीरा व विलो की छाल से तैयार किया गया है। यह भी पानी में डालते ही घुल जाएगी और शरीर में पहुंचते ही 10 से 15 मिनट में सिरदर्द काफूर कर देगी। खास बात ये है कि एलोपैथिक दवाओं से अलग, इसका शरीर पर कोई नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा। 90 दिन चूहे और खरगोश पर परीक्षण करने के बाद इस हर्बल दवा को प्रणवीर सिंह इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलाजी (पीएसआइटी) के फार्मेसी विभाग के प्रोफेसरों ने शोधार्थियों के सहयोग से तैयार किया है। पेटेंट कराने के बाद अब आयुष मंत्रालय से स्वीकृति लेने की तैयारी है।
फार्मेसी विभाग की अध्यक्ष डा.अंकिता वाल ने बताया कि अमूमन सिरदर्द या माइग्रेन की समस्या होने पर लोग एलोपैथिक दवाएं लेते हैं। इन दवाओं से आराम भले ही मिल जाए, लेकिन इससे शरीर पर साइड इफेक्ट भी होने का डर रहता है। ज्यादा सेवन से दस्त, पेट व आंत संबंधी बीमारियां, अल्सर या श्वांस संबंधी समस्याएं होने का खतरा रहता है। यही नहीं, लंबे समय तक इस्तेमाल से लिवर और किडनी भी खराब होने का डर रहता है। इसी समस्या को ध्यान में रखकर जड़ी बूटियों से हर्बल पेन किलर बनाई गई है। इसमें गिलोय, अश्वगंधा, नागरमोठा, लटजीरा व विलो की छाल का इस्तेमाल किया गया है। परीक्षण के बाद संस्थान ने इस दवा को पेटेंट कराया है।
इसलिए होता है सिर दर्द
डा. अंकिता ने बताया कि हमारे शरीर में पाए जाने वाले प्रोस्टाग्लैंडिन हार्मोंस के कारण साइक्लो आक्सीजिनेस की मात्रा बढ़ती है तो सिरदर्द होता है। लगातार गंभीर सिरदर्द बना रहता है तो उसे माइग्रेन कहा जाता है। वर्तमान में बाजार में मिल रही दवाओं में एसिटिल सैलिसिलिक एसिड होता है, जो साइक्लो आक्सीजिनेस का असर कम करके सिरदर्द को कम करती हैं, लेकिन शरीर पर विपरीत असर डालती हैं।
22 खरगोश और 48 चूहों पर परीक्षण
परीक्षण के लिए 22 खरगोश और 48 चूहों में मानव की तरह सिरदर्द के लक्षण पैदा किए गए। उनके शरीर पर आकलन के बाद दवा इंजेक्ट की गई और फिर 15 मिनट बाद उसका परिणाम देखा गया। अंकिता ने बताया कि इस दवा के सकारात्मक परिणाम सामने आए। इसके लिए कमेटी आफ दि परपज आफ कंट्रोल एंड सुपरविजन आफ एक्सपेरीमेंट्स आफ एनिमल से भी इजाजत ली गई थी।
शुरुआत में बनाईं एक हजार टेबलेट
डा. अंकिता ने बताया कि जड़ी-बूटियों को जुटाकर उनमें मौजूद विभिन्न तत्वों को निकालकर दवा बनाने में अन्य दवाओं की अपेक्षा काफी कम लागत आई है। करीब तीन से चार सौ रुपये में एक हजार टेबलेट बनाई गई हैं। जिनका परीक्षण सफल रहा है। दवा बनाने में निदेशक डा. एके राय, डीन फार्मेसी डा. प्रणय वाल, एसोसिएट प्रोफेसर डा. आशीष श्रीवास्तव, शोधार्थी सोमेश शुक्ला का भी सहयोग रहा।
जड़ी-बूटियों में काफी गुण
फार्मेसी विभाग के डीन डा.प्रणय वाल ने बताया कि सफेद विलो की छाल में सैलिसिन ग्लाइकोसाइड नामक केमिकल और एंटी एनालजेसिक व एंटी इंफ्लेमेटरी गतिविधि होती है, जो एलोपैथिक दवा में मौजूद एसिटिल सैलिसिलिक एसिड की तरह काम करती है। गिलोय, जिसे अमृता भी बुलाया जाता है, वह शरीर की आंतरिक शारीरिक प्रक्रिया को स्थिरता देने में मदद करता है और मस्तिष्क के टानिक के रूप में काम करता है। अश्वगंधा की जड़ तनाव और सिरदर्द के कारण दूर करती है। नागरमोठा एक खरपतवार है, जो पूरे देश में पाई जाती है। यह भी माइग्रेन और सिरदर्द को खत्म करती है। लटजीरा के पौधे का इस्तेमाल हुआ है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।