कानपुर में कंपनी की चूक से फंसी 10.2 किमी की एलीवेटेड रोड परियोजना, 900 से 1500 करोड़ पहुंचा बजट
कानपुर में एक एलीवेटेड रोड परियोजना कंपनी की लापरवाही के कारण अटक गई है, जिसके चलते इसकी लागत 900 करोड़ से बढ़कर 1500 करोड़ रुपये हो गई है। इस देरी के कारण परियोजना की वित्तीय स्थिरता पर सवाल उठ रहे हैं, और अब यह देखना होगा कि इसे पूरा करने के लिए क्या कदम उठाए जाएंगे।
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जीटी रोड पर जरीब चौकी चौराहे की फोटो ड्रोन कैमरे से खींची गई है। जागरण
जागरण संवाददाता, कानपुर। गोल चौराहे से रामादेवी चौराहे तक बनने वाली 10.2 किमी की एलीवेटेड रोड परियोजना व्यवस्था की कमजोरी का आईना बन गई है। डेढ़ हजार करोड़ रुपये की इस महत्वाकांक्षी परियोजना का डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) 21 माह में 20 बार बदला गया, लेकिन अभी तक डीपीआर स्वीकृति की प्रक्रिया फंसी हैं। पीडब्ल्यूडी एनएच के इंजीनियरों का दावा है, कि फाइनल सुधार के बाद डीपीआर को लखनऊ मुख्यालय भेज दिया गया है, जल्द ही स्वीकृति के लिए मंत्रालय फाइल भेजी जाएगी।
एलीवेटेड रोड के डीपीआर बनाने की प्रक्रिया जनवरी 2024 में शुरू हुई थी। हेक्सा कंपनी को नवंबर 2024 में पूरा करके इस सौंपना था, लेकिन विभागीय इंजीनियरों और कंपनी की लापरवाही और संशोधनों के चलते इस योजना को 15 माह पीछे धकेल दिया। अब आखिरकार 500 पन्नों की डीपीआर अब जाकर लखनऊ मुख्यालय पहुंची हैं।
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी फरवरी में कानपुर आए थे। इस दौरान स्थानीय जनप्रतिनिधियों ने उनसे डीपीआर में हो रही देरी की शिकायत की थी। केंद्रीय मंत्री ने दिल्ली पहुंचकर आनलाइन बैठक कर कंसल्टेंट कंपनी को कड़े निर्देश देते हुए 31 मार्च 2025 की समयसीमा तय की थी। बावजूद इसके कंपनी समय पर दस्तावेज नहीं दे सकी और सुधारों का सिलसिला इसके बाद भी चलता रहा। वहीं लगातार देरी के कारण एलीवेटेड रोड का बजट 900 करोड़ से फाइनल डीपीआर में 1500 करोड़ पहुंच गया है।
21 माह में यह होते रहे बदलाव
हेक्सा कंपनी को अलाइमेंट, रैंप डिजाइन और यातायात विश्लेषण को लेकर पिछले 21 माह में 20 बार बदलाव करने पड़े। सबसे ज्यादा संशोधन झकरकटी बस अड्डे, जरीब चौकी और सीओडी क्रासिंग पर बनने वाले रैंपों को लेकर हुए। कभी रैंप की ऊंचाई अनुपयुक्त मिली, कभी मोड़ तकनीकी रूप से असुरक्षित पाए गए, तो कभी जाम की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नए विकल्प तैयार करने पड़े। सुधार में इतना समय लगा कि पूरा प्रोजेक्ट ही अटककर रह गया।
छह मीटर ऊपर ले जाने का था प्रस्ताव
जरीब चौकी पर पहले एलीवेटेड रोड को सेतु निगम के ओवरब्रिज से छह मीटर ऊपर ले जाने का प्रस्ताव था, लेकिन बाद में यह योजना जोखिमपूर्ण और महंगी साबित हुई। जिसके बाद डिजाइन में फेरबदल कर एलीवेटेड रोड को सीधे सेतु निगम के ओवरब्रिज से जोड़ने का नया विकल्प लागू किया गया।
मंत्रालय की टीम ने जमीन नहीं अधिग्रहण करने के दिए निर्देश
दो माह पहले नौ सितंबर को फाइनल जांच के लिए मिनिस्ट्री आफ रोड ट्रांसपोर्ट के मुख्य अभियंता अमित उचेटी, पीडब्ल्यूडी एनएच के मुख्य अभियंता एके जैन के साथ हेस्का कंपनी के प्रतिनिधियों ने रामादेवी से आइआइटी तक निरीक्षण किया था। इस दौरान टीम ने डीपीआर में जरूरी बदलाव के निर्देश के साथ 30 दिनों में डीपीआर पुन: देने जमा करने के निर्देश दिए। उस दौरान मोर्थ के मुख्य अभियंता ने कहा था कि इसी वित्तीय वर्ष में एलीवेटेड रोड निर्माण को स्वीकृति मिलेंगी। इसके साथ ही तीन साल में यह रोड बनकर तैयार होगा। हालांकि केंद्रीय टीम के निर्देश के बाद भी एक माह देरी से डीपीआर लखनऊ मुख्यालय ही पहुंचा है। ऐसे में दिल्ली कब तक पहुंचेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं हैं।
यह होगा एलीवेटेड रोड का डिजाइन
एलीवेटेड रोड 10.200 किमी लंबी और लगभग 22 मीटर चौड़ी होगी। गोल चौराहे से 100 मीटर आगे इसका निर्माण शुरू होगा और रामादेवी चौराहे से 200 मीटर पहले यह उतरेगा। इसके साथ ही जरीब चौकी, झकरकटी और सीओडी क्रासिंग पर रैंप बनाए जाएंगे ताकि अन्य क्षेत्रों की सीधी कनेक्टिविटी मिल सके।
एलीवेटेड रोड का डीपीआर पीडब्ल्यूडी एनएच के लखनऊ मुख्यालय में तकनीकी परीक्षण के लिए भेजा जा चुका है। वहां से मंजूरी मिलते ही फाइलन स्वीकृति के लिए केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय भेजा जाएगा। इसी वित्तीय वर्ष में एलीवेटेड रोड निर्माण को स्वीकृति मिल सकती है।
अरविंद कुमार सिंह, अधीक्षण अभियंता, पीडब्ल्यूडी एनएच

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