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    Kanpur News: तंत्र बेनकाब, रंगदारी, जालसाजी और फर्जी मुकदमों के साथ पुलिसिया कार्रवाई की पटकथा तय करता था अखिलेश

    By Jagran News Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Fri, 08 Aug 2025 02:32 PM (IST)

    कानपुर के अधिवक्ता अखिलेश दुबे रंगदारी जालसाजी और फर्जी मुकदमों के साथ-साथ पुलिसिया कार्रवाई की पटकथा तक खुद तय करता था। पुलिस की मदद के नाम पर जमीनों का साम्राज्य खड़ा किया। अपराधियों की फर्द और एनकाउंटर की स्क्रिप्ट तक में मंशा छिपी होती थी। इसी से कई जगह अवैध कब्जे कर रखे थे।

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    पुलिस कार्रवाई की पटकथा तय करता था अखिलेश।

    जागरण संवाददाता,कानपुर। अधिवक्ता अखिलेश दुबे अब केवल एक वकील के तौर पर नहीं, बल्कि अपराध और कानून के गठजोड़ की मिसाल के रूप में सामने आया है। खुद को सामाजिक न्याय का पैरोकार बताने वाला यह शख्स दरअसल शहर में रंगदारी, जालसाजी और फर्जी मुकदमों के साथ-साथ पुलिसिया कार्रवाई की पटकथा तक तय करता रहा।

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    दीप सिनेमा के पास दो दशकों तक एक ऐसा ‘दरबार’ सजता रहा, जो दिखने में तो वकील का दफ्तर था, लेकिन असल में कानून से ऊपर बैठा एक समानांतर तंत्र था। अधिवक्ता अखिलेश दुबे का नाम पुलिस की मददगार सूची में शामिल रहा, मगर धीरे-धीरे वही 'मदद' एक डर और दबाव का हथियार बन गई।

    एसआईटी और पुलिस की जांच में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं कि अखिलेश दुबे सिर्फ कोर्ट में केस नहीं लड़ता था, बल्कि पुलिस अधिकारियों को अपराधियों की फर्द तक लिखकर देता था। किसके खिलाफ क्या धाराएं लगानी हैं, कब किसे पकड़ना है, और यहां तक कि किसका एनकाउंटर किया जाना चाहिए, इसकी स्क्रिप्ट भी वह तय करता था। पुलिस और अभियोजन से नजदीकी का लाभ उठाकर वह थाना स्तर से लेकर उच्च अधिकारियों तक अपना प्रभाव जमाए बैठा था।

    कई मामलों में देखा गया है कि एफआइआर लिखने से पहले संबंधित अधिकारियों के मोबाइल में दुबे की भेजी गई फर्द कापी पहुंचती थी, जिसमें अभियुक्तों के नाम, पहचान, और धाराएं पहले से निर्धारित होती थीं। इतना ही नहीं, शहर और आउटर क्षेत्रों में हुए चर्चित एनकाउंटर मामलों में भी दुबे की भूमिका की होती थी। कुछ मामलों में उसने स्थानीय अपराधियों को अपने प्रभाव में लेकर पहले फर्जी मुकदमे दर्ज कराए और फिर उनकेएनकाउंटर को 'लॉजिकल एंड' देने का दवाब बनवाया।

    जांच में यह भी सामने आया है कि दुबे ने कई बार अपने निजी लाभ के लिए पुलिस को गुमराह किया। कुछ निर्दोष लोगों को फंसाने के लिए गढ़ी गई कहानियों के आधार पर न केवल एफआईआर दर्ज कराई गई, बल्कि उन्हें जेल तक भिजवाया गया। पुलिस के आपरेशन महाकाल के तहत अब ऐसे ही अपराधियों के पूरे नेटवर्क की परतें एक-एक कर खोली जा रही हैं। दुबे की फाइलों में न सिर्फ मुकदमों के ड्राफ्ट हैं, बल्कि आपराधिक योजनाओं की रूपरेखा, गवाहों की सूची, दबाव डालने के तरीके और पुलिस अधिकारियों के साथ संवाद के रिकार्ड भी मिले हैं।

    पुरानी शिकायतों की छानबीन में कई ऐसे पीड़ित सामने आए हैं जो सालों से आतंक के साए में जी रहे थे। व्यवसायियों, बिल्डरों, और राजनीतिक कार्यकर्ताओं को ब्लैकमेल करने के लिए वह अपने साथ नाबालिग लड़कियों को मोहरा बनाता था। इनसे फर्जी केस करवा कर फिर रुपये में समझौते की पेशकश की जाती थी।

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    वह अधिवक्ता होने का लाभ उठाकर न केवल अदालतों में केस दर्ज करता, बल्कि पुलिसिया कार्रवाई को दिशा देने के लिए अंदरूनी साजिशें भी रचता था। किसी मामले में एनकाउंटर जरूरी है या नहीं, यह तय करने का अधिकार सिर्फ पुलिस को है, लेकिन दुबे ने इस संवेदनशील प्रक्रिया में भी दखल देता था। अब जब पुलिस की जांच गहराई में जा रही है, तो कई अधिकारी भी सवालों के घेरे में हैं। कानपुर पुलिस के लिए यह मामला सिर्फ एक अपराधी की गिरफ्तारी नहीं, बल्कि पूरी व्यवस्था की आत्मा को झकझोरने वाला है।