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    पारंपरिक नर्सरी पद्धति की जगह प्लग ट्रे विधि किसानों के लिए फायदेमंद, रोग रहित पौधे, उत्पादन भी अधिक

    By Anurag Shukla1Edited By: Anurag Shukla1
    Updated: Fri, 01 Aug 2025 06:48 PM (IST)

    बदलते पर्यावरण और सीमित संसाधनों को देखते हुए संरक्षित खेती ज़रूरी है। प्लग ट्रे तकनीक से रोगमुक्त और उच्च गुणवत्ता वाले पौधे तैयार किए जा सकते हैं। सीएसए विश्वविद्यालय के डॉ. राजीव के अनुसार किसानों को पारंपरिक नर्सरी पद्धति छोड़कर प्लग ट्रे विधि अपनानी चाहिए। इस तकनीक से कम समय और संसाधनों में अच्छी पौध तैयार होती है जिससे उत्पादन लागत घटती है और लाभ बढ़ता है।

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    संरक्षित खेती के लिए प्लग ट्रे तकनीक से तैयार करें नर्सरी।

    जागरण संवाददाता, कानपुर। बदलते पर्यावरणीय परिदृश्य, सीमित संसाधन तथा अधिक उत्पादन की आवश्यकता को देखते हुए संरक्षित खेती बड़ी जरूरत बन चुकी है। सब्जियों की संरक्षित खेती के लिए रोगमुक्त, समान वृद्धि वाली एवं उच्च गुणवत्ता के पौध की आवश्यकता होती है, जिसे प्लग ट्रे तकनीक से तैयार किया जा सकता है।

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    चंद्रशेखर आजाद कृषि एवं प्रौद्योगिक (सीएसए) विश्वविद्यालय के शाकभाजी अनुभाग के सस्यविद् डा. राजीव के अनुसार किसान पारंपरिक नर्सरी पद्धति से हटकर आधुनिक प्लग ट्रे विधि को अपनाएं, ताकि वे कम समय, स्थान में और संसाधनों के साथ उच्च गुणवत्ता की पौध तैयार कर सकें। यह तकनीक किसानों को उच्च गुणवत्ता के रोगमुक्त पौधे उपलब्ध कराती है, जिससे उत्पादन लागत घटती है और लाभ में बढ़ोत्तरी होती है। वैज्ञानिक विधियों से यदि नर्सरी तैयार की जाए, तो संरक्षित खेती का पूरा लाभ लिया जा सकता है।

    फल वाले पौधे की हल्की सिंचाई का समय

    सीएसए के उद्यान महाविद्यालय के डीन प्रो. वीके त्रिपाठी के अनुसार, इस सप्ताह में वर्षा बहुत कम हो रही है। किसानों ने पिछले सप्ताह या 15 से 20 दिन पूर्व जो आम, अमरूद, आंवला, नींबू, कटहल, इत्यादि फलों के पौधे रोपे थे। उनमें हल्की सिंचाई कर दें। पौधारोपण के समय यदि किसानों ने दीमक के प्रकोप को दूर रखने के लिए पहले किसी कीटनाशक का प्रयोग नहीं किया है और इस समय दीमक दिखाई पड़ रही है तो क्लोरपायरीफास का छिड़काव करें। पपीते के बीजों में जड़ें पनपने लगी होंगी। इसे सड़ने से बचाव के लिए डाइथेंन एम 45 या अन्य किसी कापर कवकनासी का प्रयोग करें।

    प्लग ट्रे तकनीक क्या है?

    प्लग ट्रे तकनीक में विशेष आकार की प्लास्टिक ट्रे के अलग-अलग छोटे छिद्रों में बीजों की बोआई की जाती है। इन छिद्रों में कोकोपीट आधारित पोषण वाला मीडिया यानी ऐसे माध्यम का प्रयोग किया जाता है जिसकी मदद से पौधों की जड़ें स्वतंत्र रूप से विकसित हो सकें। यह तकनीक विशेष रूप से संरक्षित खेती के लिए उपयुक्त पौध तैयार करने में कारगर सिद्ध हुई है।

    ऐसे बोएं बीज और करें ट्रे का रखरखाव

    प्रत्येक छिद्र में एक अथवा दो बीज बोएं। बोआई के बाद बीज के ऊपर हल्की परत मीडिया की डालें। फिर ट्रे को शेडनेट या पालीहाउस में रखें, जहां तापमान 25 से 28 डिग्री सेंटीग्रेड तथा आर्द्रता 70 से 80 प्रतिशत हो।

    उचित प्लग ट्रे का चयन

    टमाटर, बैंगन, शिमला मिर्च के लिए 98, खीरा, करेला के लिए 50 एवं ब्रोकली, लेट्यूस के लिए 128 छिद्रों (सेल संख्या) वाली अच्छी गुणवत्ता की ट्रे लें, जिसे बार-बार प्रयोग किया जा सके। प्रमाणित एवं रोगमुक्त बीजों को किसी विश्वसनीय संस्थानों अथवा प्रतिष्ठानों से खरीदें। हैंड स्प्रे अथवा फागर्स से सुबह-शाम हल्की सिंचाई करें।

    फसलवार पौध तैयार करने की अवधि

    प्लग ट्रे तकनीक के द्वारा टमाटर की 25-30 दिन, शिमला मिर्च की 30-35 दिन, खीरा की 15-20 दिन, ब्रोकली की 25-30 दिन तथा बैंगन की 25-30 दिन में पौध तैयार हो जाती है।

    संरक्षित खेती हेतु उपयुक्त सब्जियां

    टमाटर, शिमला मिर्च, खीरा, करेला, बैंगन, ब्रोकली, लेट्यूस आदि पत्तेदार सब्जियां।

    प्लग ट्रे तकनीक के प्रमुख लाभ

    • रोगमुक्त एवं स्वस्थ पौध तैयार होती है।
    • जड़ों को बिना क्षति के रोपाई संभव होती है।
    • नर्सरी स्थान की बचत होती है।
    • एकरूप पौधे तैयार होते हैं।
    • पेस्टीसाइड एवं पानी की बचत होती है।
    • फसल की समान वृद्धि एवं समय पर उत्पादन।