अंग्रेज तो चले गए..; तोप-गोला और सैन्य हथियारों के लिए कानपुर को बनाया था गढ़, पढ़ें- आयुध निर्माण का रोचक सफर
कानपुर में डिफेंस कारिडोर में हजारों करोड़ का निवेश होने के साथ मिसाइल से ड्रोन तक बनाए जाने की तैयारी तैयारी है लेकिन क्या आपको पता है अंग्रेजों के लिए भी यह शहर तोप-गोला और सैन्य हथियारों के निर्माण का गढ़ था।
कानपुर काफी पहले से तोप-गोला, हथियारों के निर्माण से लेकर आयुध भंडारण का बड़ा केंद्र रहा है। गंगा और यमुना नदियों के बीच बसे इस शहर में जल परिवहन की सुगम सुविधा थी, इसीलिए अंग्रेजों ने इसे अपना गढ़ बना लिया। सैन्य जरूरतों का सामान व आयुध बनाकर उन्हें जलमार्ग से एक से दूसरी जगह पहुंचाया जाता था। अपने जड़ें गहरी जमाने के लिए आजादी से छह साल पहले ही उन्होंने आयुध भंडारण को केंद्रीय आयुध डिपो यानी सीओडी की स्थापना की थी। अंग्रेज तो चले गए, लेकिन कानपुर की रक्षा उपलब्धियों का दायरा बढ़कर अब राष्ट्र को गर्व, गौरव और अभेद्य सुरक्षा का अहसास करा रहा है। शिवा अवस्थी और विवेक मिश्र की रिपोर्ट...
अंग्रेजों ने कानपुर में शुरू कराया था गोला-बारूद का निर्माण
अखिल भारतीय रक्षा लेखा कर्मचारी संघ के पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष आनंद अवस्थी बताते हैं, रक्षा क्षेत्र में कानपुर में पांच आयुध निर्माणियों में आयुध उपस्कर निर्माणी यानी ओईएफ, लघु शस्त्र निर्माणी अर्थात एसएएफ, आयुध पैराशूट निर्माणी मतलब ओपीएफ, आयुध निर्माणी कानपुर यानी ओएफसी व फील्ड गन फैक्ट्री की स्थापना अंग्रजों के शासनकाल से लेकर स्वाधीनता के बाद तक हुई। इनके संचालन के लिए अंग्रेजों को श्रमिकों व कच्चे माल की जरूरत पड़ी। इन जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्होंने कानपुर व आसपास के जिलों तक अपनी पकड़ बना ली।
आजादी के आंदोलन को कुचलने के लिए उन्होंने आयुध निर्माणियों में सैन्य रक्षा उपकरण, हथियार, गोला-बारूद का उत्पादन शुरू करा दिया था। आयुध एक जगह रखने के लिए वर्ष 1941 में केंद्रीय आयुध डिपो यानी सीओडी की स्थापना की थी। भारत से अंग्रेजों के जाने के बाद सेना ने सीओडी को अपने आधिपत्य में ले लिया। 81 साल के अंतराल में इस केंद्रीय आयुध डिपो की पहचान देश ही नहीं, पूरी दुनिया तक है।
पनकी-अर्मापुर नहर से होता था आयुध परिवहन
भारतीय मजदूर संघ के पूर्व राष्ट्रीय मंत्री सुखदेव प्रसाद मिश्र बताते हैं, कानपुर स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन का प्रमुख केंद्र और क्रांतिकारियों का गढ़ था। आंदोलन को कुचलने व क्रांतिकारियों का दमन करने के लिए ब्रिटिश अफसरों ने कानपुर को ठिकाना बनाया था। जलमार्ग से सीधा जुड़ाव होने से ब्रिटिश हुकूमत को यहां अपनी सेना को उतारने में आसानी रहती थी।
पनकी-अर्मापुर नहर के माध्यम से आयुध निर्माणियों में बने उत्पाद ले जाए जाते थे। अंग्रेजों ने सबसे पहली फैक्ट्री किला व हार्नेस फैक्ट्री के नाम से भी पहचानी जाने वाली आयुध उपस्कर निर्माणी की स्थापना की थी। स्वाधीनता के बाद रक्षा मंत्रालय की निगरानी में आयुध निर्माणियों की संख्या बढ़ी और रक्षा क्षेत्र में शहर का गौरव देश-दुनिया ने जाना।
अंग्रेजों के घुड़सवारों के लिए बनता था सामान
सबसे पुरानी फैक्ट्री आयुध उपस्कर निर्माणी यानी ओईएफ में अंग्रेजों के जमाने में पहले उनके घुड़सवारों के लिए सामान बनता था। अंग्रेज ये सामान जल व रेल परिवहन के माध्यम से देश के कोने-कोने में ले जाने के साथ विदेश भी भेजते थे। घुड़सवारों की वस्तुओं के निर्माण से लेकर ओईएफ अब भारतीय सैनिकों को दुर्गम परिस्थितियों के लिए बूट, गरम वर्दी, मेडिकल आइसोलेशन टेंट, पीपीई किट आदि बनाकर भेज रही है।
गंगा के तेज प्रवाह के कारण ओईएफ की मोटी दीवार
ओईएफ के अधिकारी बताते हैं, 1859 में आयुध उपस्कर निर्माणी की स्थापना के समय गंगा का प्रवाह बहुत तेज था। इसीलिए गंगा तट की ओर दीवार मोटी बनाई गई थी। ब्रिटिश अफसरों ने यहां पहली निर्माणी बनाने का फैसला लिया था। यहां से जल परिवहन बेहद आसान था।
यूरोपीय व्यापारियों की रक्षा को अंग्रेज लाए थे छावनी
इतिहासकार बताते हैं, वर्ष 1778 में अंग्रेज हरदोई के बिलग्राम से छावनी हटाकर कानपुर लाए थे। छावनी को यहां लाने के पीछे उनका मकसद कानपुर क्षेत्र में तेजी से हो रही व्यावसायिक प्रगति थी। व्यवसाय की प्रगति के साथ यूरोपीय व्यापारियों, दुकानों और गोदामों की रक्षा के लिए फौज रखने की आवश्यकता महसूस हुई। उस समय के छावनी क्षेत्र की जानकारी कानपुर के 1840 के मानचित्र से मिलती है। उत्तर की ओर पुराने कानपुर की पूर्वी सीमा से जाजमऊ तक गंगा के किनारे-किनारे छावनी की सीमा थी।
पश्चिम में उत्तर से दक्षिण की ओर भैरोघाट से सीसामऊ और यहां से वर्तमान मालरोड (महात्मा गांधी मार्ग) के किनारे-किनारे पटकापुर तक सीमा हुआ करती थी। दक्षिण-पश्चिम की ओर कलक्टरगंज और नगर के दक्षिण-पश्चिमी भाग को घेरती हुई ये सीमा दलेलपुरवा तक थी। यहां से दक्षिण की ओर मुड़कर जीटी रोड के समानांतर जाजमऊ से आने वाली पूर्वी सीमा में मिलती थी।
छावनी के भीतर विशाल शस्त्रागार व यूरोपियन अस्पताल था। परमट के दक्षिण में अंग्रेजी सेना की बैरक व परेड का मैदान था। शहर के बीच में काली पलटन की बैरकें थीं, जो पश्चिम में सूबेदार के तालाब से लेकर क्राइस्ट चर्च तक फैली थीं। छावनी के पूर्वी भाग में बड़ा तोपखाना था, जिसमें अंग्रेजी रिसाला रहता था। 1857 के विद्रोह के बाद छावनी की लगभग सभी इमारतें नष्ट कर दी गई थीं। विद्रोह के बाद सीमा में फिर बदलाव करते हुए छावनी का बड़ा हिस्सा लोगों को आवासीय क्षेत्र के लिए दे दिया गया था।
अब छावनी की ये सीमा
वर्तमान में छावनी की सीमा उत्तर में गंगा नदी, दक्षिण में जीटी रोड, पूर्व में जाजमऊ है। पश्चिम में लखनऊ जाने वाली रेलवे लाइन के किनारे-किनारे माल रोड पर नहर के पुल से होकर फूलबाग के उत्तर से गंगा किनारे ओईएफ तक चली गई है। यहां चर्च, कानपुर क्लब और लाट साहब की कोठी यानी सर्किट हाउस हैं।
कब किसकी स्थापना
- 1859 आयुध उपस्कर निर्माणी
- 1941 आयुध पैराशूट निर्माणी
- 1941 केंद्रीय आयुध भंडार
- 1942 आयुध निर्माणी कानपुर
- 1949 लघु शस्त्र निर्माणी
- 1971 फील्ड गन फैक्ट्री।
डिफेंस कारिडोर में बनेंगे ये उत्पाद
डिफेंस कारिडोर में निवास करने वाली कंपनियां बुलेट प्रूफ जैकेट, ड्रोन, लड़ाकू विमान, हेलीकाप्टर, तोप और उसके गोले, ब्रह्मोस समेत अन्य मिसाइलें, अलग-अलग तरह की बंदूकें, टैंक, पनडुब्बी, युद्धपोत, सैनिकों के लिए बूट, पैराशूट, ग्लब्स आदि। कानपुर के साथ ही बुंदेलखंड के चित्रकूट, झांसी, लखनऊ, आगरा व अलीगढ़ में डिफेंस कारिडोर नोड्स बनने हैं।
रक्षा उत्पादन में आत्मनिर्भरता
डिफेंस इंडस्ट्रियल कारिडोर रक्षा उत्पादन के क्षेत्र में देश को आत्मनिर्भरता देंगे। इनकी स्थापना जिन क्षेत्रों में हो रही वहां उद्योगों के विकास के साथ ही रोजगार के अवसर भी बढ़ेंगे। उद्योग रक्षा उत्पादन के लिए ग्लोबल सप्लाई चेन से जुड़ सकेंगे।
डिफेंस कारिडोर की खास बातें
- 526 एकड़ यानी 213 हेक्टेयर में होनी है स्थापना
- 499 एकड़ यानी 202 हेक्टेयर के दो भूखंड अदाणी डिफेंस एंड एयरोस्पेस ने खरीदे हैं।
- 1500 करोड़ रुपये का शुरुआती निवेश करेगी अदाणी डिफेंस।
- 05 अन्य कंपनियों ने भी यहां पर खरीदी है जगह।
रक्षा क्षेत्र के लिए ये भी
- 24 जवानों के एक साथ बैठने के लिए टेंट का निर्माण, इसके अंदर तापमान सामान्य रखने के लिए स्पेस हीटिंग डिवाइस बुखारी भी बनाई गई।
- 400 ग्राम का पोचो बैग ग्लेशियर जैसे बर्फीले स्थानों पर फौजियों को गर्मी का अहसास कराता है।
- 6140 लीटर क्षमता की पानी की टंकियां विशेष कपड़े की बनाई जा रहीं, जो गर्म वातावरण में भी पानी को ठंडा रखेंगी।
-रक्षा उत्पाद के क्षेत्र में कानपुर का स्वाधीनता के पहले से ही अहम योगदान रहा है। अब डिफेंस कारिडोर से रोजगार के साथ ही औद्योगिक विकास को नए आयाम मिलेंगे। आने वाले कुछ वर्षों में कानपुर का खोया गौरव फिर से लौटेगा। -विशाख जी, जिलाधिकारी
-ब्रिटिशकाल से ही कानपुर की आयुध निर्माणियों का गौरवमयी इतिहास रहा है। आजादी से अब तक गुणवत्तायुक्त हथियारों ने सेना को देश की रक्षा करने को लेकर अहम योगदान दिया है। सरकार ने रक्षा क्षेत्र में विदेश पर निर्भरता खत्म कर देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए आयुध निर्माणियों का निगमीकरण किया है। ये पहल आने वाले समय निश्चित तौर पर काफी प्रभावी साबित होगी। भारत में बनने वाले सैन्य रक्षा उपकरण व हथियार की गुणवत्ता पूरे विश्व में अपनी धमक पैदा करेगी। -आरके सागर, महाप्रबंधक, ओएफसी, कानपुर