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    कानपुर में शिक्षा का उजियारा फैलाने वाला चिराग बुझा, जानिए- कैसी थी डॉ. नागेंद्र स्वरूप की शख्सियत

    By Abhishek AgnihotriEdited By:
    Updated: Mon, 24 May 2021 01:24 PM (IST)

    दयानंद शिक्षण समूह के सचिव व शिक्षाविद् डाॅ. नागेंद्र स्वरूप के निधन से शिक्षा जगत को बड़ी क्षति हुई है। कानपुर समेत आसपास के जिलों और देहरादून तक 27 ...और पढ़ें

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    डाॅ. नागेंद्र स्वरूप के निधन से शिक्षा जगत को बड़ी क्षति।

    कानपुर, जेएनएन। शिक्षा की अलख जगाने वाले स्वरूप परिवार का एक अौर चिराग बुझ गया। देश में आजादी के बाद से स्वरूप परिवार के प्रयासों से शहर ही नहीं बल्कि आसपास जिलों और राज्यों तक दयानंद एंग्लोवैदिक शिक्षण संस्थान से शिक्षा के उजियारा फैल रहा है। शिक्षाविद् एवं दयानंद एंग्लोवैदिक शिक्षण समूह के सचिव डॉ. नागेंद्र स्वरूप के निधन से शहर में शिक्षा के बढ़ते कारवां को एक झटका लगा है। वह शहर में डीएवी, दयानंद गर्ल्स कॉलेज, डीबीएस तथा महिला महाविद्यालय समेत कई काॅलेजों समेत लखनऊ, उन्नाव, बछरावां रायबरेली आैर देहरादून में संचालित 27 काॅलेजों की बागडोर संभाल रहे थे। इसके अलावा उन्होंने शहर को निजी शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. वीरेंद्र स्वरूप एजुकेशन सेंटर की शुरुआत करके स्कूलिंग के नए आयाम स्थापित किए। आज शहर के विभिन्न हिस्सों में डॉ. वीरेंद्र स्वरूप एजुकेशन की कई शाखाएं संचालित हो रही हैं। उनसे जुड़े करीबी शिक्षकों और परिचितों को निधन की जानकारी मिली तो उन्होंने अश्रूपूरित नेत्रों से कुछ इस तरह यादें साझा कीं...।

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    यह भी पढ़ें:- डीएवी शिक्षण संस्थान के सचिव नागेंद्र स्वरूप का निधन, शिक्षा जगत में शोक की लहर

    उनके अंदर दिखता था अपनापन

    डीएवी डिग्री काॅलेज के अंग्रेजी विभागाध्यक्ष डाॅ. अनुपम शुक्ला कहते हैं कि डाॅ. स्वरूप के असमय चले जाने से शिक्षा जगत को बड़ी क्षति हुई है। उनके अंदर हमेशा अपनापन रहता था। एक बार जब उनसे मैंने कहा कि परिवार के कुछ जरूरी कार्यों के कारण दो माह तक काॅलेज नहीं आ सकेंगे तो वह बोले कि परिवार पहले है। पहले आप परिवार देखिए उसके बाद काॅलेज ज्वाइन कर लीजिएगा। उनके अंदर शिक्षक, कर्मचारी व छात्रों के प्रति प्रेम था और हर सुख-दुख में साथ खड़े रहते थे। किसी शिक्षक के बीमार होने पर वह कहते कि पहले स्वास्थ देखिए फिर पढ़ाने आइएगा। वह परिवार के सदस्य की तरह इलाज से लेकर देखभाल की व्यवस्था तक कराते थे। प्रशासनिक कौशल उनसे सीखा जा सकता है।

    पिता के नाम से स्थापित किए कई स्कूल

    भूगोल विभागाध्यक्ष डाॅ. जीएल श्रीवास्तव बताते हैं कि वह शिक्षक और कर्मचारियों का काम पलक झपकते ही कर दिया करते थे। एनओसी, पेंशन व फंड जैसे कार्यों के लिए वह तुरंत संबंधित पेपर में हस्ताक्षर कर दिया करते थे फिर वह चाहें कितने भी व्यस्त हों। उच्च शिक्षण संस्थानों के संचालन के अलावा उन्होंने पिता डाॅ. वीरेंद्र स्वरूप के नाम से कई स्कूलों की स्थापना की। वह रोज सुबह आठ बजे से काॅलेज प्राचार्य, शिक्षक व कर्मचारियों की समस्याएं सुनते थे। एक दिन भी ऐसा नहीं होता जब वह उनके लिए अपने आवास पर न बैठें। अगर किसी को कोई समस्या होती तो उसके समाधान के लिए आगे आते।

    राष्ट्रपति व राज्यपाल को किया आमंत्रित

    डीएवी डिग्री काॅलेज के पूर्व प्राचार्य डाॅ. एलएन वर्मा ने बताया कि हर छोटे-बड़े आयोजन को लेकर बेहद उत्साहित रहते थे। वह यह नहीं सोचते थे कि इंतजाम कैसे होगा। अगर उनके पास कोई भी शिक्षक किसी कार्यक्रम का प्रस्ताव लेकर पहुंचता तो कहते कि आप इसकी रूपरेखा तैयार कीजिए इंतजाम मैं कर लूंगा। डीएवी डिग्री काॅलेज के सौ वर्ष पूरे होने पर फरवरी 2019 में उन्होंने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को आमंत्रित किया था। इससे पहले दिसंबर 2015 में उन्होेंने पूर्व राज्यपाल रामनाईक को भी आमंत्रित किया था।