Delhi Blast: आतंकी फंडिग का कानपुर कनेक्शन, कई एनजीओ के संपर्क में थे डा. शाहीन के करीबी
दिल्ली में हुए धमाके के मामले में आतंकी फंडिंग का कानपुर कनेक्शन सामने आया है। डॉ. शाहीन के करीबी फंडिंग के लिए कानपुर के कई एनजीओ के संपर्क में थे। इन एनजीओ का इस्तेमाल आतंकी गतिविधियों के लिए फंडिंग जुटाने के लिए किया जा रहा था। सुरक्षा एजेंसियां इस मामले की गहराई से जांच कर रही हैं।

जागरण संवाददाता, कानपुर। दिल्ली धमाके के षड्यंत्र में शामिल डा. शाहीन के कई करीबी फंडिंग के लिए कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के संपर्क में चार माह से ज्यादा थे। वर्ष 2006 से 2013 तक जीएसवीएम मेडिकल कालेज में फार्माकोलाजी की प्रवक्ता व विभागाध्यक्ष रही शाहीन के लिए एनजीओ के माध्यम से विदेश से बड़े लेनदेन की बात जांच एजेंसियों को पता चली है। एनजीओ संचालकों से इनकी 70 व 30 प्रतिशत की डील होने व एनजीओ के बैंक खाते में एक करोड़ मंगाने पर उसमें 70 लाख आतंकी, जबकि 30 लाख एनजीओ संचालक को मिलने की बात बताई जा रही है। इस गिरोह के सदस्य मछरिया, बाबूपुरवा, बेकनगंज, चमनगंज व जाजमऊ, चकेरी समेत कई मुहल्लों में होने की जानकारी मिल रही है।
डा. शाहीन की गिरफ्तारी के बाद जांच एजेंसियों ने शहर में नजरें गड़ाई तो एक के बाद एक राज सामने आने लगे। एजेंसी की जांच में डा. शाहीन और संदिग्ध मिले तीन एनजीओ के बैंक खाते में कई संदिग्ध लेनदेन मिले। इसके बैंक खातों में विदेश से फंडिंग होने की बात सामने आई है। इस तरह से एनजीओ के माध्यम से पैसा मंगाने वाले गिरोह का नेटवर्क खाड़ी देश बहरीन, कुवैत, ओमान, कतर, सऊदी अरब व संयुक्त अरब अमीरात तक है, जिनके तार शाहीन व करीबियों से जुड़े होने की बात कही जा रही है।
एजेंसियां अब तक सामने आए तीन एनजीओ एनजीओ के दस्तावेज, बैंक खाते व इसमें काम करने वालों के पासपोर्ट, आधार आदि जानकारी इकट्ठा करने में लगी तो कई और जानकारियां सामने आईं। सूत्रों के अनुसार, इन एनजीओं में एक वर्ष 2009 में पंजीकरण हुआ था, जिसमें लगभग 11 सदस्य बताए जा रहे हैं। जबकि दूसरी एनजीओ वर्ष 2011 में पंजीकृत हुई है। इसमें सभी धर्मों के लोग शामिल थे।
एनजीओ से जुड़े लोगों की तलाश शुरू की गई, तो पता चला कि वे एनजीओ को काफी समय पहले ही छोड़ चुके हैं, लेकिन खातों में करोड़ों के लेनदेन मिले हैं। हालांकि सूत्रों के अनुसार यह भी पता चल रहा है कि ये खाते जिन एनजीओ के हैं। उनमें दो सदस्यों की मृत्यु भी हो चुकी है। अब जांच एजेसियां दोनों दिवंगतों के परिवार से संपर्क करने में जुटी है, जिससे मौत का कारण और एनजीओ से जुड़े अन्य लोगों के बारे में जानकारी जुटाई जा सके।
वहीं, जांच में यह भी सामने आया कि डा. शाहीन के कई करीबी इधर लगभग चार माह से विदेश से पैसों की फंडिंग के लिए कई गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) के संपर्क में ज्यादा थे। वह शहर के कई मुहल्लों में स्थानीय लोगों को लालच देकर एनजीओ तलाश करने और उनसे डील कराने पर आर्थिक लाभ का लालच भी देते थे।
इस तरह से आतंकी गतिविधियों के लिए एनजीओ का करते थे प्रयोग
सूत्रों के अनुसार, एनजीओ का पहले हर वर्ष नवीनीकरण होता था, लेकिन अब पांच साल में होता है। जो एनजीओ कई सालों तक सक्रिय नहीं होते थे। उनके संचालक व सदस्य उनका संचालन बंद कर देते थे, लेकिन आतंकी गतिविधियां करने वाले ऐसे ही एनजीओ का टारगेट करते हैं। इसके बाद रजिस्ट्रेशन आफिस में ये लोग संपर्क करते हैं और उन एनजीओ को पुन: चालू करा लेते हैं। अगर चालू न हो सके तो ये लोग उनके संचालकों से संपर्क कर आर्थिक लाभ देकर उसे उनके माध्यम से चालू कराते हैं। फिर उन्हें बताते हैं कि विदेश की कई कंपनियां काले धन को सफेद करने के लिए बड़ी रकम एनजीओ को देना चाहती है, लेकिन इसके लिए भेजी गई रकम में 70 प्रतिशत नकद वे खुद लेते हैं और 30 प्रतिशत एनजीओ को मिलेगी। लोग लालच में आकर लेनदेन को तैयार होते हैं। अगर इस दौरान किसी संचालक की मृत्यु हो जाती है कि संदिग्ध गतिविधियों में शामिल लोग इन खातों का संचालन करने लगते हैं।

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