Lockdown में प्रवासी हैं अब एकांतवासी, पढ़ें-जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्यजी की दिनचर्या और संदेश
चित्रकूट के तुलसीपीठ में एकांतवासी की तरह जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्यजी महाराज समय बिता रहे हैं।
चित्रकूट, [शिवा अवस्थी]। साल के 365 दिन में चातुर्मास छोड़कर बाकी समय चित्रकूट तुलसीपीठाधीश्वर जगद्गुरु रामानंदाचार्य स्वामी रामभद्राचार्यजी महाराज प्रवासी ही रहते हैं। देश-दुनिया में घूमकर दिव्यांग सेवा के लिए प्रवचन सुनाते हैं और शिष्यों से घिरे रहते हैं लेकिन, कोरोना वायरस से उपजे संकट की घड़ी में वह राष्ट्र के साथ खड़े होकर तुलसीपीठ में एकांतवासी हैं। मन में श्रीराम, माता सीता की छवि व लोक कल्याण की कामना है और अहर्निश (दिन-रात) मन में राष्ट्र कल्याण का भाव है। लेखन, स्वाध्याय, भारत व विश्वदर्शन की सीख देकर लाखों शिष्यों को घर पर रहने का संदेश दे रहे हैं।
मानस पाठ, स्वाध्याय और जप
उत्तराधिकारी आचार्य रामचंद्रदासजी महाराज ने बताया कि जगद्गुरु सुबह चार बजे उठते हैं। नित्यक्रिया के बाद तीन घंटे लोक कल्याण के लिए जप व राम चरित मानस पाठ करते हैं। बाकी समय चिंतन, सबको आशीर्वाद और नींद में गुजरता है।
संकल्प व संयम से जीत
स्वामी रामभद्राचार्यजी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की कोरोना के खिलाफ जंग की सराहना करते हैं। उनका कहना है कि भारत ने विकसित देशों की अपेक्षा बेहतर किया है।’ चित्रकूट से ज्यादातर समय बाहर रहने वाले जगद्गुरु रामभद्राचार्य हैं तुलसी पीठ में,लाखों शिष्यों को घर में रहने की सीख, मोदी व योगी के प्रयासों को सराहा
दैहिक, दैविक, भौतिक तापा..का करें जप
जगद्गुरु कहते हैं कि राम चरित मानस की चौपाई- ‘दैहिक, दैविक, भौतिक तापा.राम राज नहीं काहुहि ब्यापा’ को संपुट बनाकर घर पर नित्य रामचरित मानस पाठ करता हूं और अन्य लोगों को भी ऐसा करना चाहिए। बच्चों, युवाओं, बुजुगोर्ं व परिवार को शारीरिक दूरी बनाकर बैठाएं। मानस के आदर्श आत्मसात कर प्रेम बढ़ाएं। बच्चों में हनुमान चालीसा पाठ की आदत डालें।
प्रतिदिन नवाह्न्पारायण करें। आध्यात्म और शास्त्रीय कर्म से संकट दूर होगा। संकट की घड़ी में अदृश्य शत्रु से लड़ने को हर कोई घर पर रुके। बाहर निकलने की मूर्खता छोड़कर संजीदगी के साथ राष्ट्रधर्म निभाएं। बहुत काम किया है, कुछ स्वजन संग आराम भी करें। नवरात्र के नौ दिन की तरह लॉकडाउन के बाकी समय को भी व्रत समझ लें।