22 साल बाद पूरी तरह मिटा पाकिस्तान के लिए जासूसी का दाग..., अब जज बनेंगे कानपुर के प्रदीप
पाकिस्तान के लिए जासूसी के आरोप से बरी होने के 22 साल बाद प्रदीप कुमार अब न्यायाधीश बनेंगे। इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना कि अदालत से बरी होने के बाद उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए। प्रदीप के परिवार ने लंबे संघर्ष के बाद जीत हासिल की है। प्रदीप ने कहा उन्हें अभी भी समाज का सामना करने में डर लगता है।

जागरण संवाददाता, कानपुर। पाकिस्तान के लिए जासूसी करने के आरोप से बरी हो चुके प्रदीप कुमार अब न्यायाधीश (हायर ज्यूडिशियल सर्विस कैडर) बनेंगे। जासूसी का दाग हटे तो कई साल हो चुके थे, लेकिन उत्तर प्रदेश उच्चतर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में अंतिम चयन के बावजूद नियुक्ति पत्र न मिलने से उनकी बेगुनाही सवालों के घेरे में थी।
अब इलाहाबाद हाई कोर्ट ने माना है कि अदालत से बरी होने के बाद उनके साथ सम्मानजनक व्यवहार होना चाहिए। प्रदीप का परिवार अब तक उस घटना के अंधियारे से भयग्रस्त है, मगर उनका मानना है कि जिंदगी इम्तिहान लेती है। 22 साल के संघर्ष ने ऐसा दर्द किया कि परिवार को अभी भी समाज का सामना करने में डर लगता है। वह कहते हैं कि वह सफल हुए हैं, मगर अभी उन्हें झिझक मिटाने के लिए कुछ समय चाहिए।
जून 2002 में किया गया था गिरफ्तार
चौक सर्राफा बाजार के राजेंद्र मोहाल निवासी निवासी प्रदीप कुमार को खुफिया इनपुट के बाद 13 जून, 2002 को एसटीएफ के साथ संयुक्त अभियान में गिरफ्तार किया गया था। आरोप था कि पैसा कमाने की चाहत में प्रदीप ने फैजान इलाही नामक व्यक्ति की मदद से कानपुर छावनी की संवेदनशील जानकारियां पाकिस्तान भेजी थीं। इलाही फोटो स्टेट की दुकान चलाता था।
वर्ष 2014 को कानपुर की स्थानीय अदालत ने प्रदीप को आरोपों से बरी कर दिया था। वर्ष 2016 में प्रदीप ने यूपी उच्चतर न्यायिक सेवा (सीधी भर्ती) परीक्षा में भाग लिया और सफल भी हुए, लेकिन अंतिम चयन के बावजूद उन्हें नियुक्ति पत्र नहीं दिया गया। इसके खिलाफ प्रदीप इलाहाबाद हाई कोर्ट पहुंच गए।
सरकारी वकील की ओर से दलील दी गई कि प्रदीप स्वयं जासूसी के आरोपित हैं और इनके पिता जगदीश प्रसाद को भी वर्ष 1990 में रिश्वतखोरी के आरोपों के कारण अतिरिक्त न्यायाधीश की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था।
कोर्ट ने प्रदीप को किया बरी
न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह और न्यायमूर्ति दोनादी रमेश की खंडपीठ ने पिछले दिनों मुकदमे का निस्तरण करते हुए कहा कि ‘राज्य के पास ऐसा कोई साक्ष्य मौजूद नहीं है जिससे यह निष्कर्ष निकाला जा सके कि याची ने किसी विदेशी खुफिया एजेंसी के लिए काम किया है। मुकदमे में उसे बरी किया जाना सम्मानजनक है। बरी किए जाने से उस पर लगा कलंक मिट जाना चाहिए था। उसे किसी भी निराधार संदेह से मुक्त होकर अपने जीवन और करियर में आगे बढ़ने की अनुमति मिलनी थी।’
शनिवार को दैनिक जागरण की टीम प्रदीप कुमार के घर पहुंची तो वह नहीं मिले। परिवार में बड़े भाई संजय से मुलाकात हुई, जो घर में ही सराफा की दुकान चलाते हैं। पहले तो उन्होंने बात करने से ही मना कर दिया। बोले, 22 साल से जो चल रहा है, उसे कुरेदने की हिम्मत अब उनके परिवार में नहीं है। उन्हें कुछ समय चाहिए, ताकि वह अंधेरे से उजाले की ओर आ सकें।
काफी अनुरोध के बाद संजय ने ही प्रदीप से फोन पर बात कराई। प्रदीप ने बताया कि इस दिनों के संघर्ष ने उन्हें समाज का सामना करने से भी डरा दिया है। ये जिंदगी इम्तिहान लेती है। अगर लड़ेंगे तो जीतेंगे भी। अब तक की उनकी लड़ाई ऐसी ही रही है।
कमेंट्स
सभी कमेंट्स (0)
बातचीत में शामिल हों
कृपया धैर्य रखें।