मुस्लिम परिवार ने दावत के कार्ड पर लिखा हिंदू पूर्वज का नाम, सोशल मीडिया पर वायरल हुई तस्वीर
उत्तर प्रदेश के जौनपुर में एक मुस्लिम परिवार ने बहू भोज के निमंत्रण कार्ड पर अपने हिंदू पूर्वज का नाम लिखकर सामाजिक सौहार्द का परिचय दिया। यह कार्ड सो ...और पढ़ें

जौनपुर : केराकत क्षेत्र के डेहरी गांव निवासी नौशाद अहमद दूबे के भतीजे के विवाह का निमंत्रण पत्र। जागरण
जागरण संवाददाता, केराकत (जौनपुर)। डेहरी गांव में बहूभोज (दावते वलीमा) का निमंत्रण कार्ड को चर्चा ए खास हो गया है। इसमें मुस्लिम परिवार से संबंध रखने वाले नौशाद अहमद दूबे ने अपने हिंदू पूर्वज का नाम और आठवीं पीढ़ी का उल्लेख छपवाया है। तीन वर्ष पूर्व विशाल भारत संस्थान से जुड़ने के बाद नौशाद ने अपने नाम के आगे दूबे सरनेम लगाना शुरू किया था। पिछले वर्ष शादी के कार्ड पर भी उन्होंने यही सरनेम इस्तेमाल किया था, जिसके बाद वह चर्चा में आ गए थे।
बहूभोज कार्ड पर लिखा है कि श्री लालबहादुर दूबे 1669 ईस्वी के जमींदार के आठवीं पीढ़ी के वंशज खालिद दूबे की शादी एवं बहूभोज के शुभ अवसर पर आप सभी आमंत्रित हैं। नौशाद अहमद दूबे ने बताया कि पूर्वजों के बारे में विस्तृत खोजबीन के दौरान उन्हें पता चला कि उनके पुरखे लालबहादुर दूबे आजमगढ़ जिले के रानी की सराय क्षेत्र के रहने वाले थे। बाद में यहां आकर उन्होंने धर्म परिवर्तन किया और लाल मोहम्मद नाम से जमींदारी संभाली। नौशाद का कहना है कि अपनी जड़ों को सम्मान देने के लिए उन्होंने गांव की सड़क का नाम भी लालबहादुर दूबे मार्ग रखा है। सड़क पर लगा बोर्ड इसका प्रमाण है।
प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री को भी भेजा गया निमंत्रण पत्र
नौशाद अहमद दूबे ने बताया कि विशाल भारत संस्थान के माध्यम से बहूभोज का निमंत्रण प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री सहित कई प्रमुख व्यक्तियों को भेजा गया है। उन्हें उम्मीद है कि आमंत्रित अतिथि कार्यक्रम में आकर वर-वधू को आशीर्वाद देंगे।
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करीब तीन दर्जन लोग लगा चुके हैं पूर्वजों का सरनेम
यह पहली बार नहीं है कि किसी मुस्लिम परिवार ने अपने पूर्वजों का हिंदू सरनेम अपनाया हो। नौशाद का कहना है कि लगभग तीन दर्जन लोग अपने नाम के आगे पूर्वजों के सरनेम लिखते हैं। उनका मानना है कि यह अपनी ऐतिहासिक जड़ों को पहचान देने का तरीका है और इससे गांव में सौहार्द, साझा संस्कृति और एकता की भावना भी मजबूत होती है।
आज है शादी, बहिष्कार से नहीं पड़ता फर्क
आजगमढ़ जिले के असाउर गांव में नौशाद के भतीजे खालिद दूबे की 13 दिसंबर को शादी है। खालिद के पिता अबूशाद कतर में होने की वजह से नहीं पहुंच सकेंगे। कुछ लोग हमारा बहिष्कार कर रहे हैं, लेकिन हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।
अपने नाम के साथ दूबे सरनेम जोड़ना शुरू किया तो कुछ रिश्तेदारों ने विरोध जताया। कई ने तो रिश्तेदारी तक तोड़ ली। कुछ लोगों ने रिश्ते तय होने के बाद यह जानकर विवाह करने से इनकार भी किया। मैने अपने पूर्वजों का सरनेम अपनाया है, जबकि उनका इस्लाम धर्म में पूरा विश्वास है।
- नौशाद अहमद दूबे।
आपसी सौहार्द और सद्भाव बना रहे इसलिए हम लोग अपने पूर्वजों का सरनेम अपने नाम से जोड़ते हैं। इसमें किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
- शेख अब्दुल्ला दूबे।
हमारे पूर्वज शुक्ला थे। हमारे मित्र भी शुक्ला कहकर बुलाते हैं, लेकिन हम लोग अपने नाम के आगे इसे जोड़ते नहीं हैं।
- सेराज अहमद

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