बारिश में 5 गुना बढ़ जाती हैं सर्पदंश की घटनाएं, इन तीन महीनों में बरतें सावधानी; क्यों उग्र हो जाते हैं सांप?
बारिश के मौसम में सर्पदंश की घटनाओं में वृद्धि होती है जिनमें से अधिकांश मौतें हार्ट अटैक से होती हैं। कोबरा और करैत जैसे विषैले सांप इस मौसम में अधिक आक्रामक हो जाते हैं। सर्पदंश होने पर झाड़-फूंक के बजाय तुरंत डॉक्टर से इलाज कराना चाहिए और काटे गए स्थान को बांध देना चाहिए। स्वास्थ्य विभाग के अनुसार अस्पतालों में एंटी स्नेक वेनम का पर्याप्त स्टॉक उपलब्ध है।

संवाद सहयोगी, जौनपुर। बारिश के मौसम में विषधर उग्र हो जाते हैं। इस सीजन में आमदिनों की अपेक्षा सर्पदंश की घटनाएं पांच गुना बढ़ जाती हैं। सांपों के डसने पर दो तिहाई मौतें हार्ट अटैक से होती हैं।
जून का दूसरा पखवारा व जुलाई का महीना कोबरा, करैत आदि सांपों के प्रजनन का काल होता है। जब वह मादा के साथ जोड़े बनाते हैं तब आस-पास किसी का हस्तक्षेप बर्दाश्त नहीं करते। ऐसे में वह आक्रामक हो जाते हैं। इस स्थिति में तीन माह तक विशेष सावधानी बरतनी चाहिए।
पूर्वांचल में पाए जाने वाले कोबरा, करैत ही विषैले होते हैं। इनके अलावा धामिन, डेड़हा, दो मुंहा आदि सांप विषधर की श्रेणी में नहीं आते। आमतौर पर सांप खेतों में चूहों के बनाए गए बिल में रहते हैं। बारिश के सीजन में बिलों में पानी भर जाने के कारण वह चूहों का पीछा करते हुए घरों तक पहुंच जाते हैं। यह तभी काटते हैं जब कोई इन्हें छेड़ता है।
पक्षी विज्ञानियों के मुताबिक सांप बहरा होने के कारण सुनते भी नहीं हैं। आंखों के सहारे हिलती-डुलती चीज को देखकर और धरती के कंपन के अनुमान पर आक्रमण करते हैं। सांप जब हमलावर दिखें तो भागने की बजाए उनके ऊपर कपड़ा या रूमाल फेंकना चाहिए। जिससे वह उसमें फंस जाएं।
झाड़-फूंक की बजाय कराएं उपचार
जौनपुर: सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र नौपेड़वां के चिकित्सक डाक्टर आलोक रघुवंशी ने कहा कि विश्व में 216 सांप की प्रजातियां हैं। इनमें सिर्फ 52 प्रजातियां विषैले होती हैं। भारत विशेषकर पूर्वांचल में कोबरा, करैत व बाइपर ही विषैले होते हैं।
बताया कि देश में प्रतिवर्ष औसतन दो लाख लोग सर्पदंश के शिकार होते हैं। इनमें 35 से 50 हजार लोगों की मौत हो जाती है। मरने वालों में दो तिहाई का कारण हृदयाघात होता है। बताया कि कोबरा आमतौर पर दिन में काटता है। इसके दंश वाले स्थान पर सूजन आ जाती है तथा असहनीय दर्द होता है।
पीड़ित को आंखों से दिखना कम हो जाता है। बेहोश होने के साथ ही सांसों की गति कम हो जाती है और हृदय काम करना बंद कर देता है, जबकि करैत रात में काटता है। इसके काटने पर सूजन नहीं होती। लोग मच्छर आदि काटने की बात मानकर बेपरवाह हो जाते हैं। जब तक सर्पदंश का एहसास होता है तब तक हालत काफी बिगड़ जाती है। कहा कि सर्पदंश के बाद झाड़-फूंक के चक्कर में नहीं पड़ना चाहिए।
सर्पदंश पर क्या करें
सर्पदंश के बाद व्यक्ति को भागना नहीं चाहिए, क्योंकि इससे रक्त का संचार बढ़ने से जहर तेजी से फैलने लगता है। घटना के बाद तुरंत बैठ जाना चाहिए और काटे स्थान पर पांच से छह इंच ऊपर बांध देना चाहिए ताकि जहर आगे न बढ़े।
इसके बाद तत्काल ऐसे चिकित्सक के पास ले जाना चाहिए जहां एंटी स्नेक वेनम के अतिरिक्त सांस और दिल के सहायता संबंधी उपकरण उपलब्ध हों।
स्वास्थ्य विभाग का दावा, एंटी स्नेक वेनम का है पर्याप्त स्टाक
जौनपुर: बारिश के मौसम में सर्पदंश की बढ़ती घटनाओं को देखते हुए सरकारी अस्पतालों में बचाव की व्यवस्था पर्याप्त है। सबसे अधिक पीड़ित जिला अस्पताल में आते हैं, पिछले साल यहां 1923 वायल खर्च हुआ था। वर्तमान में यहां 450 वायल एंटी स्नेक वेनम का स्टाक है।
सीएमओ के सेंट्रल स्टोर में भी दो हजार वायल ही एंटी स्नेक वेनम है। विशेषज्ञों के अनुसार अगर जहरीले सर्प ने डंस लिया है तो एक पीड़ित को छह से आठ वायल लगानी पड़ती है।
वहीं सीएमओ डा. लक्ष्मी सिंह ने कहा कि जिले की 22 सीएचसी व 20 पीएचसी पर पांच से दस वायल एंटी स्नेक वेनम का स्टाक है। धर्मापुर व ट्रामा सेंटर हौज में एंटी स्नेक वेनम की उपलब्धता नहीं थी। वहां भी भेज दिया गया है।
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