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    इतिहास बनी चीनी मिल को नजर-ए-इनायत की दरकार

    By JagranEdited By:
    Updated: Mon, 07 May 2018 09:01 PM (IST)

    जागरण संवाददाता, शाहगंज (जौनपुर) कभी किसानों की आय का मुख्य जरिया रहा शाहगंज की चीनी ि

    इतिहास बनी चीनी मिल को नजर-ए-इनायत की दरकार

    जागरण संवाददाता, शाहगंज (जौनपुर) कभी किसानों की आय का मुख्य जरिया रहा शाहगंज की चीनी मिल अब खंडहर के सिवा कुछ भी नहीं। आजादी से करीब डेढ़ दशक पूर्व वर्ष 1933 में नगर के फैजाबाद मार्ग पर स्थापित रत्ना शुगर के नाम से स्थापित यह पूर्वांचल की पहली चीनी मिल थी। इससे जहां एक ओर क्षेत्र का गौरव बढ़ा। वहीं व्यापार के तमाम अवसर भी पैदा हुए। शाहगंज को पूर्वांचल के व्यापार का हृदयस्थल कहा जाने लगा। किसानों की आय में वृद्धि होने लगी। एक तरह से इलाके की तो तस्वीर ही बदल गई। शाहगंज का तो मानों नक्शा ही बदल गया। पर समय का चक्र भी ऐसा बदला कि सब कुछ जैसे थे की दशा में आ गया। सरकारों की उदासीनता ने किसानों की कमर ही तोड़ दी। सरकार के हांथों में जाकर भी चीनी मिल अब निजी हांथों के हवाले कर दी गई। हालात बदल चुके हैं और चीनी मिल बंद पड़ी है। नगदी की फसल गन्ना की खेती करने वाले किसान भी व्यथित हैं। अब उनकी उनकी आंखों में सुनहरे सपने नहीं सजते। गन्ना की खेती को भी ग्रहण लग गया।

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    वाराणसी के व्यापारिक घराने ने स्थापित की थी चीनी मिल

    रत्ना शुगर मिल की स्थापना वाराणसी के व्यापारिक घराने से ताल्लुक रखने वाले राय प्रेमचंद्र ने की थी।इस मिल को पूर्वांचल की पहली चीनी मिल होने का गौरव प्राप्त है। यहां पर सड़क मार्ग के अलावा रेल मार्ग से भी पेराई के लिए गन्ना आता था। यहां क्षेत्र के अलावा आजमगढ, सुल्तानपुर और अंबेडकर नगर से गन्ना पहुंचता था। इस मिल को घाटे के बाद वर्ष 1986 में घाटे के बाद बंद करके संचालक चले गए। गन्ना किसानों और मजदूरों का बकाया था। बकाए के भुगतान के लिए आंदोलन चला और 24 अप्रैल 1989 को उत्तर प्रदेश सरकार ने इसका अधिग्रहण कर लिया। इसके बाद से मिल का संचालन एक बार फिर शुरु हुआ। मिल कभी चलती तो कभी रुकती रही। घाटा दर घाटा उठा रही। इस चीनी मिल को सरकार ज्यादा समय तक नहीं चला सकी। वर्ष 2009 में तत्कालीन बसपा सरकार ने पोंटी चड्ढा की कंपनी माएलो इंफ्राटेक को बेच दिया। तब से चीनी मिल बंद पड़ी है।

    अधिग्रहण पूर्व का किसानों के बकाए का नहीं हो सका भुगतान

    अधिग्रहण के पूर्व का करीब 70 लाख रुपया गन्ना किसानों का बकाया है। जिसका भुगतान आज तक नहीं हो सका। इस भुगतान को लेकर सरकार की मंशा साफ नहीं नजर आती। शायद यही वजह है कि अगर कहीं पर इस सवाल को उठाया जाता है तो इसको टालकर बात को आगे बड़ा दी जाती है। देखना होगा कि भुगतान भविष्य में हो पाता है या फिर भुगतान की आस अधूरी रह जाती है।

    मिल के सौदे का मामला हाईकोर्ट में लंबित

    चीनी मिल को प्रदेश सरकार द्वारा बेचे जाने के इस सौदे पर सवाल उठाते हुए मिल के मजदूर नेता प्रभानंद यादव ने इलाहाबाद हाई कोर्ट में रिट याचिका दाखिल की है। इस रिट पर अभी तक कोई अंतिम निर्णय नहीं हो सका है। प्रभानंद यादव कहते हैं कि इस खरीद-फरोख्त में तमाम अनियमितता बरती गई हैं।गन्ना किसानों और मजदूरों के हितों को लेकर उन्होंने न्यायालय की शरण ली है। उनका यह संघर्ष न्याय दिलाने तक जारी रहेगा।