Updated: Sat, 26 Jul 2025 06:00 AM (IST)
हाथरस जिले के सादाबाद क्षेत्र के सत्यप्रकाश परमार ने कारगिल युद्ध में अद्वितीय वीरता का प्रदर्शन किया। उन्होंने राकेट लांचर से 18 दुश्मनों को मार गिराया और देश के लिए बलिदान दिया। उनके बेटे अमरदीप ने भी सेना में भर्ती होकर पिता के पदचिन्हों पर चलने का निर्णय लिया है। सत्यप्रकाश की पत्नी ने निजी खर्च से शहीद पार्क का निर्माण कराया है।
जागरण संवाददाता, हाथरस। सादाबाद क्षेत्र रणबांकुरों से भरा पड़ा है। देश की सीमाओं पर इस क्षेत्र के जवान सुरक्षा में लगे हुए हैं। सीमा की रक्षा करते हुए तीन दर्जन जवानों ने अब तक अपने प्राणों का उत्सर्ग किया है, जिनको बलिदानियों की संज्ञा दी जाती है।
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इनमें एक नाम सत्यप्रकाश परमार का भी शामिल है। उन्होंने राकेट लांचर संभालते हुए कारगिल युद्ध के दौरान 18 पाकिस्तानियों को ढेर कर दिया था। देश उनके इस हौसले को आज भी सलाम कर रहा है। यह शौर्यगाथा है, सादाबाद क्षेत्र के गांव बेदई के जवान सत्य प्रकाश परमार की।
स्व.लख्मी सिंह के पुत्र सत्य प्रकाश ने 11 अप्रैल 1988 को भारतीय सेना की महार रेजीमेंट ज्वाइन की थी। सागर (मध्य प्रदेश) में ट्रेनिंग के बाद उन्हें लेह में तैनाती मिली। उन्होंने 1999 में जब भारत पाकिस्तान के बीच में कारगिल युद्ध हुआ तो भारतीय सेना ने सीमा पर जांबाजी की मिशाल पेश की।
इसमें एक चैप्टर सादाबाद के सत्य प्रकाश का भी है जिसे कभी भुलाया नहीं जा सकता। सत्य प्रकाश परमार ने सहादत से पहले 18 दुश्मनों को ढेर किया। उसके बाद देश पर अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था।
कारगिल फतह में गौरवान्वित किया जिले का नाम
बुजुर्ग बताते हैं कि वर्ष 1999 में पाकिस्तानी सैनिकों ने कारगिल की पहाड़ी पर कब्जा किया था, उसे लेकर कई महीने तक युद्ध चला।
इसमें भारतीय सैनिकों ने दुश्मनों को पछाड़ते हुए फतह हासिल की। इस जीत में सादाबाद के जवानों का भी जिक्र आता है। कई ऐसे जवान हैं जिन्होंने कारगिल की पहाड़ी को जीतने का सपना लेकर अपने प्राणों को न्योछावर कर दिया।
ऐसे परिवार जिन्होंने अपने बेटे के बलिदानी होने का गौरव पाया। राकेट लांचर के साथ दुश्मनों पर टूट पड़े कारगिल युद्ध से पहले सत्य प्रकाश परमार लेह में तैनात थे।
सीनियर अफसरों के निर्देश पर लेह से जवानों की टोली को सीमा पर भेजा गया। इस टोली में परमार भी शामिल थे। बेहतर कद काठी का शरीर होने के कारण कमांडर ने उन्हें राकेट लांचर संभालने की जिम्मेदारी दी।
एके-47 और राकेट लांचर के साथ उनकी टोली ने सबसे ऊंची पहाड़ी पर मोर्चा संभाला। दुश्मनों की ओर से लगातार फायरिंग हो रही थी।
दोनों तरफ से फायरिंग का कोई नतीजा नहीं निकला तो सत्य प्रकाश ने राकेट लांचर संभाला और दुश्मनों पर टूट पड़े।
पिता से मिली प्रेरणा, पुत्र भी आर्मी में
परिवार के सदस्यों ने बताया कि सत्य प्रकाश के बड़े बेटे ने आर्मी ज्वाइन की थी मगर उन्होंने ट्रेनिंग के दौरान आर्मी छोड़ दी।
इसके बाद 2019 में छोटा बेटा अमरदीप पिता से प्रेरणा लेकर भारतीय सेना में भर्ती हुआ। उन्होंने पिता की तरह सागर में ही सेना का प्रशिक्षण लिया।
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सादाबाद के गांव बेदई में बलिदानी सत्यप्रकाश परमार का परिवार। जागरण
पत्नी के चेहरे पर खुशी की झलक आते हुए उन्होंने बताया कि सत्य प्रकाश काफी दिलेर थे। कहते थे जब भी मौका मिलेगा दुश्मनों को तबाह कर दूंगा और उन्होंने यह करके दिखाया। आज उनके बलिदान को सभी याद कर रहे हैं।
निजी खर्च पर बनाया पार्क व शहीद गेट
सत्य प्रकाश की पत्नी बताती हैं कि 18 दुश्मनों को ढेर करने के बाद सत्य प्रकाश को शहादत मिली। इससे उनकी छाती भी खुशी से चौड़ी हो गई क्योंकि उनके पति ने जो कहा वह करके दिखाया था मगर उन्हें इस बात का दुख है कि सरकार से कोई मदद नहीं मिली।
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सादाबाद के गांव बेदई में बलिदानी सत्यप्रकाश परमार की पार्क में लगी प्रतिमा। जागरण
ग्राम पंचायत में जमीन का टुकड़ा जरूर मिला था, जिस पर शहीद पार्क बनाकर उन्होंने खुद प्रतिमा लगवाई थी। इसके अलावा निजी खर्चे पर शहीद गेट का निर्माण कराया था। सरकार ने उस समय जो वायदे किए थे, उन वादों पर अमल नहीं किया।
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