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    Terror Attack Jammu: 15 दिन पहले ड्यूटी पर गए थे हाथरस के सुभाष, अब घर आएगी पार्थिव देह; 2016 में देश सेवा को पहनी थी वर्दी

    Updated: Wed, 24 Jul 2024 09:57 AM (IST)

    हाथरस के गांव नगला मनी निवासी मथुरा प्रसाद खेतीबाड़ी करते हैं। उनके तीन बेटों में सुभाष चंद्र सबसे छोटे थे। वर्ष 2016 में उन्हें भारतीय सेना में हवलदार के रूप में तैनाती मिली। वह बारामूला राजौरी समेत कई जगह पर तैनात रहे थे। उनकी बहादुरी के किस्से आज गांव में सुनाए जा रहे हैं। एक बार आतंकियों की गोली उनके हेलमेट पर लगी थी।

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    आतंकियों से मुठभेड़ में सहपऊ के जवान सुभाष चंद्र का बलिदान हुआ है।

    संसू , जागरण, सहपऊ (हाथरस)। करीब पंद्रह दिन पूर्व सीमा पर ड्यूटी के लिए घर से विदा होते समय सुभाष चंद्र में देश की सुरक्षा का जज्बा देखते बन रहा था। वहां हमारी टोली है। ड्यूटी पर पहुंचकर फोन करता हूं, कहते हुए उन्होंने हाथ में लगी दादी की तस्वीर को निहारा तो आंखें भर आईं।

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    दादी के निधन के चलते ही वह घर आए थे। एक महीने तक यहां रहते हुए उन्हें हर रोज ड्यूटी की चिंता रहती। सीमा का हाल और जवानों की वीरता के किस्से तो हर रोज बताए। जिनकी मंगलवार को गांव में हर ओर चर्चा रही। अंतिम दर्शन के लिए पार्थिव शरीर आने का इंतजार आसपास के गांव के लोग भी कर रहे हैं।  

    दादी के निधन के बाद आए थे घर

    सुभाष चंद्र की दादी का 30 मई को निधन हो गया था। इसके कारण वे गांव आए थे और सात जुलाई को वापस जम्मू गए थे। सुभाष के बड़े भाई बलदेव ने कहा कि पड़ोस के गांव में दूसरे जवान ने मंगलवार की सुबह 10 बजे फोन कर सुभाष के बलिदान की सूचना दी। यह सुनकर पैरों तले जमीन खिसक गई। 11 बजे करीब गांव में लेखपाल, कानूनगो और अन्य राजस्व कर्मी आए तो घर के अन्य सदस्यों को अनहोनी की जानकारी मिल गई। इसके बाद वहां चीखपुकार मचने लगी।

    सुभाष की मां और पत्नी को पहले गोली लगने की सूचना दी थी। रात होते-होते उन्हें सच्चाई का पता चल गया। दोनाें बदहवास हो गईं। रोते-राेते वह बेहोश हो गईं। उनके करुण क्रंदन को देख हर व्यक्ति की आंखों में आंसू थे। घर पर दिनभर लोगों की भीड़ लगी रही। 

    बहादुर थे सुभाष, पहले हेलमेट में  लगी थी गोली

    28 वर्षीय सुभाष चंद्र बेहद बहादुर थे। उनके भाई बलदेव ने बताया कि वह युद्ध के मैदान में डटकर मुकाबला करते थे। वर्ष 2021 में वह बारामूला सेक्टर में तैनात थे। तब भी आतंकियों ने घुसपैठ की कोशिश की थी। उन्होंने आतंकियों का डटकर मुकाबला किया। इस दौरान आतंकियों की गोली उनके हेलमेट में लगी थी। इसके बावजूद वह पीछे नहीं हटे और आतंकियों को वहां से खदेड़ दिया था।

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    अब कैसे देखूंगी लाल का चेहरा...

    सुभाष चंद्र के बलिदान पर उनके पिता मथुरा प्रlसाद के आंसू नहीं रुक रहे हैं। वह राेते हुए बोले कि देश के लिए बेटा बलिदान हुआ है। उसकी वीरगति पर गर्व है। 

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    आज पार्थिव शरीर आने की उम्मीद

    मां पुष्पा देवी के आंसू नहीं रुक रहे। वह रोते हुए बोलीं कि हे भगवान मेरा बेटा छीन लिया। 15 दिन पहले ही उसे हंसी खुशी भेजा था। अब उसका चेहरा कैसे देख पाऊंगी। उनकी पत्नी कांति देवी और डेढ़ साल की बेटी रितिका है। कांति देवी आठ महीने की गर्भवती हैं। सुभाष की बेटी को गोद में लिए उनके पिता मथुरा प्रसाद भी भावुक हैं।

    सीओ सादाबाद हिमांशु माथुर ने बताया कि आतंकियों से मुठभेड़ में सहपऊ के जवान सुभाष चंद्र शहीद हुए हैं। बुधवार की सुबह उनका पार्थिव शरीर गांव आने की उम्मीद है।