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    दायित्व के निर्वहन से ही संवरता है जीवन

    By Edited By:
    Updated: Thu, 06 Oct 2016 11:34 PM (IST)

    फोटो-20 नई पीढ़ी को संस्कार दें, यही देश के कर्णधार हैं मेरा जीवन मेरा दायित्व का अर्थ अपने ज

    फोटो-20

    नई पीढ़ी को संस्कार दें,

    यही देश के कर्णधार हैं

    मेरा जीवन मेरा दायित्व का अर्थ अपने जीवन को संभालना हर किसी की अपनी व्यक्तिगत जिम्मेदारी है। अपने जीवन को हम अच्छे लोगों से प्रेरित होकर अच्छे कार्यों द्वारा गौरवान्वित भी कर सकते हैं और इसको गलत कार्यो से बिगाड़ भी सकते हैं। हमारे जीवन में हमारा दायित्व कई रूपों में होता है। शिक्षक के रूप हमारा दायित्व एक अनुशासित ईमानदार-कर्तव्य परायण संस्कार युक्त समाज की रचना करना है। माता-पिता के रूप में हमारा दायित्व अपने बच्चों में अपने देश के प्रति प्रेम व संस्कारी व जिम्मेदार नागरिक बनाना है। हर क्षेत्र में हमारे जीवन में हमारे दायित्व अलग-अलग होते हैं, जिनको हमें पूरी निष्ठा, जिम्मेदारी व ईमानदारी से निभाना चाहिए। जिनके जीवन में लक्ष्य नहीं होता है, वे पूरी ¨जदगी भटकाव में बिताते हैं। इसलिए बेहतर भविष्य के लिए युवाओं को लक्ष्य निर्धारित करके मंजिल तय करनी चाहिए। युवाओं को अपने जीवन में खुद के अलावा दूसरे लोगों के लिए भी बेहतर प्रयास करने चाहिए, ताकि गरीब और असहाय लोगों की मदद हो सके।

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    -अंजली मित्तल, उप प्रधानाचार्या,

    राजेंद्र लोहिया विद्या मंदिर इंटर कॉलेज, हाथरस।

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    शिक्षकों के बोल

    शिक्षिकों पर समाज का

    सबसे ज्यादा दायित्व

    जीवन संघर्षों व चुनौतियों से भरा हुआ है। सुख व दु:ख को संजोए हुए निरंतर आगे बढ़ना होता है। समाज में नारी का जीवन और उसका दायित्व अहं भूमिका निभाने वाला होता है। बेटी, बहन, बहू, पत्नी, माँ सब रूपों में नारी का दायित्व सबसे महत्वपूर्ण होता है। शिक्षिका के रूप में भी हम बच्चों में अपनापन दिखाते हुए उन्हें उनके रास्ते पर आगे बढ़ने को प्रेरित करते हैं। आज नारी प्रत्येक क्षेत्र में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर दिखाई देती है। 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' के नारे ने महिलाओं को और सशक्त कर दिया है जिसका उदाहरण ओलंपिक में साक्षी मलिक ने कांस्य मेडल जीतकर दिया है। 'अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आँखों में है पानी' की धारणा को तोड़कर नारी आज सबल बन चुकी है। इससे हमारा दायित्व भी निरंतर बढ़ रहा है। हमारे हृदय में ममता, प्यार, स्नेह के साथ-साथ कर्मठता भी है।

    आशा कोचर, शिक्षिका, राजेन्द्र लोहिया विद्या मंदिर।

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    आदर्श जीवन पद्धति

    सिखाना जरूरी है

    अध्यापन एक महत्वपूर्ण दायित्व है। हजारों विद्यार्थियों को आदर्श जीवन पद्धति को जीकर सिखाने का उत्तरदायित्व है। श्रेष्ठतम जीवन जीने के प्रति रुचि जागृत करनी है। उनमें सोई पड़ी क्षमताओं और संभावनाओं का उन्हें एहसास कराना है। भारत की सुन्दर सांस्कृतिक परंपराओं के बीज उनके मन में बोने है। भविष्य के नागरिकों को प्रबल और सबल बनाना हमारा ही दायित्व है।

    माया मधुर ¨सह, अध्यापक, राजेन्द्र लोहिया विद्या मंदिर।

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    श्रेष्ठ रचना मानव का

    दायित्व सबसे ज्यादा

    ईष्वर की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य का जीवन अधिकार और दायित्व से पूर्ण है। हमारे अधिकार सीमित हैं किन्तु दायित्वों का क्षेत्र असीमित है। अपने दायित्वों का निर्वाह हमें व्यक्तिगत रूप से करना होता है। हमारा दायित्व अपने स्वयं से लेकर परिवार, समाज, राष्ट्र और सम्पूर्ण विश्व के प्रति है। हमारा दायित्व एक शिक्षक के रूप में एक अनुशासित ईमानदार, कर्तव्यपरायण, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर एवं श्रेष्ठ समाज की रचना करना है। इसके लिए अपने बच्चों को जो कि देश का भविश्य हैं, उनमें बचपन से ही इन गुणों का समावेश करना ही हमारा सबसे बड़ा दायित्व है।

    वन्दना शर्मा, शिक्षिका, राजेन्द्र लोहिया विद्या मंदिर।

    विद्यार्थियों के बोल

    दायित्व से भागेंगे तो पाएंगे क्या?

    हमें अपने जीवन को सुधारने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और दूसरों को भी सिखाना चाहिए। उनको यह सीख देनी चाहिए कि अपने जीवन को अच्छा बनाने के लिए दायित्व निर्वहन जरूरी है।

    यश खुराना, छात्र, राजेन्द्र लोहिया विद्या मंदिर।

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    भटके लोगों को राह

    पर लाना जरूरी है

    जिस मनुष्य के जीवन में लक्ष्य नहीं होता है वह जीवन में कुछ नहीं कर पाता। जीवन का लक्ष्य निर्धारित करके उसे संवारना चाहिए। वहीं हमे अपने आसपास जो लोग भटक गए हैं, उन्हें सही राह पर लाना चाहिए।

    रूपाली सेंगर, छात्रा राजेंद्र लोहिया विद्या मंदिर।

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    देश की मजबूती के लिए

    नियमों का पालन करें

    देश को मजबूत बनाने के लिए हमें अपने जीवन में नियमों के मुताबिक कार्य करना चाहिए। वहीं जो लोग लक्ष्यविहीन होते हैं, वे कुछ नहीं कर पाते। अपने दायित्वों को समझते हुए गरीब और असहाय लोगों की मदद करनी चाहिए।

    प्रार्ची शर्मा, छात्रा, राजेंद्र लोहिया विद्या मंदिर।

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