उत्तर प्रदेश में कमाई का नया जरिया बनी केले की खेती, मुनाफा कमाकर मालामाल हो रहे इस जिले के किसान
हरदोई में किसान अब परंपरागत खेती छोड़कर केले की नकदी फसल की ओर बढ़ रहे हैं। उद्यान विभाग के प्रोत्साहन और अनुदान योजनाओं से प्रेरित होकर पिछले दो वर्ष ...और पढ़ें

उपेंद्र अग्निहोत्री/रियाज हुसैन, हरदोई। परंपरागत खेती से इतर अब किसान नकदी फसलों की ओर तेजी से रुख कर रहे हैं। बेहतर उत्पादन, निश्चित बाजार और अच्छा मुनाफा मिलने के कारण जनपद में केले की खेती किसानों के लिए आय बढ़ाने का मजबूत विकल्प बनकर उभरी है।
उद्यान विभाग के प्रोत्साहन और अनुदान योजनाओं का असर यह है कि पिछले दो वर्षों में जहां जिले में केले की खेती करीब 100 हेक्टेयर क्षेत्रफल में सीमित थी, वहीं इस वर्ष इसमें 50 हेक्टेयर की वृद्धि दर्ज की गई है।
वर्तमान में जनपद में केले की खेती का कुल रकबा बढ़कर 150 हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जिससे किसानों में उत्साह और उम्मीद दोनों बढ़ी हैं।
उद्यान विभाग की ओर से केले की खेती को बढ़ावा देने के लिए एकीकृत बागवानी विकास योजना के अंतर्गत किसानों को दो वर्षों तक अनुदान दिया जा रहा है। पहले वर्ष प्रति हेक्टेयर करीब 1.05 लाख रुपये की लागत आती है, जिस पर किसानों को 42 हजार रुपये का अनुदान मिलता है।
दूसरे वर्ष प्रति हेक्टेयर लगभग 70 हजार रुपये की लागत पर 28 हजार रुपये का अनुदान दिया जा रहा है। विभागीय सहयोग और लगातार मार्गदर्शन के चलते बीते तीन वर्षों से जिले में केले की खेती का क्षेत्रफल लगातार बढ़ रहा है।
कोथावां के ग्राम अटवा, मुठिया, कछौना के ग्राम गौहानी, अहिरोरी के लालपुर व डिघिया, पिहानी के रजुआपुर, बावन के सधईबेहटा सहित मल्लावां और माधौगंज क्षेत्र के कई गांवों में किसान बड़े पैमाने पर केले की खेती कर रहे हैं।
परंपरागत खेती से कई गुना मुनाफा
मल्लावां क्षेत्र के ग्राम बाबटमऊ निवासी प्रगतिशील किसान सुधीर सिंह ने परंपरागत खेती छोड़कर वैज्ञानिक पद्धति से केले की खेती शुरू की है। वह पांच एकड़ भूमि पर केले की फसल उगा रहे हैं। उन्होंने जुलाई माह में महाराष्ट्र के भुसावल से मंगाई गई उन्नत किस्म के पौधों का रोपण छह गुणा छह फीट की दूरी पर किया है।
इस तकनीक से पौधों को पर्याप्त जगह मिलती है और उत्पादन बेहतर होता है। उन्होंने बताया कि केले की फसल लगभग 14 माह में तैयार हो जाती है और एक एकड़ में 300 से 350 क्विंटल तक उत्पादन संभव है।
वर्तमान में कच्चा केला एक हजार से 1200 रुपये प्रति क्विंटल बिक रहा है। दो वर्षों में करीब डेढ़ लाख रुपये की लागत आती है, जबकि साढ़े तीन लाख रुपये से अधिक की आय होने की संभावना रहती है।
खेत से ही बिक रही फसल
कोथावां के मुठिया गांव के किसान वेदप्रकाश बताते हैं कि केले की खेती में बाजार की चिंता नहीं रहती। फसल तैयार होते ही व्यापारी खुद खेत पर पहुंचकर एक हजार से 1200 रुपये प्रति क्विंटल के हिसाब से केले की खरीद कर रहे हैं, जिससे किसानों को अतिरिक्त मेहनत नहीं करनी पड़ती।
मिट्टी और पोषण का महत्व
किसानों के अनुसार केले की खेती के लिए दोमट मिट्टी सबसे उपयुक्त होती है। बेहतर उत्पादन के लिए समय-समय पर डीएपी, यूरिया, पोटाश, कैल्शियम, सल्फर, मैग्नीशियम और सूक्ष्म पोषक तत्वों का संतुलित प्रयोग जरूरी है।
लक्ष्य से अधिक क्षेत्रफल में खेती
जिला उद्यान अधिकारी सुभाष चंद्र ने बताया कि एकीकृत बागवानी योजनांतर्गत जनपद को 40 हेक्टेयर केले की खेती का लक्ष्य मिला था, लेकिन किसानों के बढ़ते रुझान के चलते 150 हेक्टेयर में खेती कराई गई है। किसानों को और अधिक लाभ दिलाने के लिए लक्ष्य बढ़ाने और बजट उपलब्ध कराने के संबंध में उद्यान निदेशालय को पत्र भेजा गया है।

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