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    ब्रजघाट बनेगा डॉल्फिन टूरिज्म हब, गंगा की 'गाय' के लिए सुरक्षित आवास विकसित करने की प्लानिंग तैयार; बढ़ेगा ईको-पर्यटन

    Updated: Fri, 19 Dec 2025 10:16 PM (IST)

    उत्तर प्रदेश के ब्रजघाट को डॉल्फिन टूरिज्म हब के रूप में विकसित करने की योजना है। गंगा में डॉल्फिन के लिए सुरक्षित आवास विकसित किया जाएगा, जिससे ईको-प ...और पढ़ें

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    गंगा में अठखेलियां करती डाल्फिन।

    ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। डाॅल्फिन संरक्षण के लिए वन विभाग द्वारा संरक्षित रामसर साइट में ब्रजघाट शामिल है। मानव प्रेमी डाॅल्फिन यूं तो नेत्रहीन होती हैं, लेकिन उसकी अठखेलियां देखने के लिए यहां पर दूर-दूर से लोग आते हैं। वन विभाग, प्राणि उद्यान व सिंचाई विभाग ने गंगा में इस क्षेत्र को डाॅल्फिन के लिए संरक्षित किया हुआ है। अब इसे डाॅल्फिन के आवासीय और विचरण के लिए सुरक्षित साइट के रूप में विकसित किया जाएगा, जिससे मानव प्रेमी यह गंगा गाय आराम से रह सकेगी।

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    कई बार मोटर चालित नावों से यहां पर डाॅल्फिन घायल हो जाती हैं। अब इस क्षेत्र में केवल हाथ के चप्पू से चलने वाली नावों में ही भ्रमण किया जा सकेगा। गंगा में इस क्षेत्र को डाॅल्फिन के लिए रिजर्व किया जाएगा, जिससे डाॅल्फिन सुरक्षित रहेंगी और लोगों को उनकी अठखेलियां देखने में आसानी होगी। इससे यहां पर पर्यटन को भी बढ़ावा मिलेगा।

    स्थान डाॅल्फिन
    बिजनौर बैराज से सिरजेपुर  14 किमी
    सिरजेपुर से खड़कली  8 किमी
    खड़कली से ब्रजघाट  6 किमी
    ब्रजघाट से भगवानपुर  2 किमी
    भगवानपुर से अनूपशहर  17 किमी
    अनूपशहर से नरौरा बैराज  4 किमी

    किस वर्ष कितनी मिलीं डॉल्फिन?

    वर्ष मुजफ्फरनगर से नरोरा बैराज तक मिलीं डॉल्फिन
    2020 41
    2023

    50

    2024 52 व पांच बच्चे
    2025 गणना रिपोर्ट आने वाली है। इनकी संख्या 70 पहुंचने की उम्मीद है।

    देशभर में डॉल्फिन की संख्या

    क्षेत्र संख्या
    गंगा नदी 6,324
    सिंधु नदी 3
    देश में कुल संख्या 6,327
    उत्तर प्रदेश में डाॅल्फिन 2,397
    बिहार में डाॅल्फिन 2,220
    पश्चिम बंगाल में डाॅल्फिन 815
    असम में डाॅल्फिन 635

    शिकार और तस्करों पर रहेगा अंकुश

    गंगा की तलहटी में डाॅल्फिन अठखेलियां कर रही हैं। पिछले चार वर्षों में यहां डाॅल्फिन के कुनबे में 11 नए सदस्य जुड़े हैं। गंगा में डाॅल्फिन को प्राकृतिक आवासीय वातावरण उपलब्ध कराने में वन विभाग की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। मुजफ्फरनगर गंगा बैराज से नरोरा तक तस्करों पर शिकंजा कसा गया है। शिकार पर सख्ती के बाद गंगा में डाॅल्फिन का आवासीय क्षेत्र सुरक्षित किया जा रहा है, जिससे उनका कुनबा बढ़ता जा रहा है। नमामि गंगे अभियान के तहत नदी को प्रदूषण से मुक्त किया जा रहा है। गंगा के उथले पानी में डाॅल्फिन खूब अठखेलियां कर रही हैं।

    राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन एवं भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा डाॅल्फिन को बचाने के लिए ब्रजघाट में गंगेय डाॅल्फिन जलज सफारी के रूप में घोषित कर दिया गया है। इसके साथ ही गंगाधाम तिगरी में भी ग्रामीणों को जलीय जीव, प्रकृति मित्र डाॅल्फिन के संबंध में जानकारी दी जा रही है। डाॅल्फिन के संरक्षण के लिए गंगा प्रहरियों की तैनाती की जा रही है। डाॅल्फिन जलज सफारी में डाॅल्फिन संरक्षण के माध्यम से लोगों की आजीविका से जोड़ा जाएगा। इसके लिए स्थायी ईको-टूरिज्म बढ़ाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन और राज्य वन विभागों का संयुक्त प्रयास चल रहा है। वन विभाग ने 'मेरी गंगा मेरी सूंस' अभियान चलाया हुआ है।

    "डाॅल्फिन को गंगा की गाय कहा जाता है। सामान्य भाषा में इसको सूंस कहते हैं। यह मानव प्रेमी होती हैं और पर्यावरण के संतुलन में सहायक हैं। इससे ट्यूरिज्म को बढ़ावा मिलेगा। नेत्रहीन होने के बावजूद यह तरंगों के आधार पर लोगों की उपस्थिति को पहचानकर उनके आसपास अठखेलियां करने लगती हैं। हमारा प्रयास ब्रजघाट को डाॅल्फिन ट्यूरिज्म के रूप में विकसित करने का है।"

    -मुकेश कुमार कांडपाल- रेंजर वन विभाग व एक्सपर्ट डाॅल्फिन लाइफ।

    "डाॅल्फिन केवल जलीय जीव ही नहीं है। यह गंगा की स्वच्छता में योगदान करने वाला मानव प्रेमी जीव है। इसके संरक्षण को हमने अभियान चलाया हुआ है। हमने जल मित्र बनाकर डाॅल्फिन की सुरक्षा को लोगों को जागरूक करने और अपने स्तर से सहयोग करने को गोष्ठियों का आयोजन कर रहे हैं।"

    -भारत भूषण आर्य, वन्य जीव प्रेमी।

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