गोवंश सीरम तकनीक में आत्मनिर्भर बना यूपी: नर-मादा सीरम छंटनी की अमेरिकी तकनीक बंद, खर्च में 75% कमी
उत्तर प्रदेश गोवंश सीरम तकनीक में आत्मनिर्भर बन गया है। नर और मादा सीरम की छंटनी अब प्रदेश में ही होगी, जिससे अमेरिकी तकनीक पर निर्भरता खत्म हो गई है। ...और पढ़ें

प्रतीकात्मक तस्वीर।
ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। प्रदेश में गोवंशियों में नर-मादा के सीरम को अलग करने वाली अमेरिकी लैब बंद हो गई है। सरकार ने उसके टेंडर का नवीनीकरण नहीं किया है। ऐसे में अमेरिकी लैब एबीसी ने अपना सामान उखाड़ना आरंभ कर दिया है। वहीं, अब देश में बछिया-बछड़ा का सीरम अलग करने की तकनीक विकसित कर ली गई है।
व्यय भी होगा चार गुना कम
अब स्वदेशी तकनीक से हापुड़ के बाबूगढ़ में एनडीडीबी ( नेशनल डेयरी डेवलेपमेंट बोर्ड ) अपनी लैब स्थापित करेगी। इससे उत्तर प्रदेश के पशुपालकों को बछिया का सीरम फिर से मिलने लगेगा। वहीं स्वदेशी तकनीक से सीरम को अलग करने का व्यय भी चार गुना कम आएगा। इससे सरकार का अनुदान पर होने वाला व्यय कम हो जाएगा।
छह लाख सीरम यूनिट का उत्पादन कर रही
पशुपालक गांयों को दूध के लिए पालते हैं, लेकिन सांड़-बैल आजकल अनुपयोगी हो गए हैं। हल और गाड़ी किसी में भी बैलों का उपयोग नहीं किया जाता है। ऐसे में पशुपालक नर गोवंशियों को बेसहारा छोड़ देते हैं। सरकार ने पांच साल पहले बाबूगढ़ के अति हिमीकृत वीर्य उत्पादन केंद्र पर नर व मादा के वीर्य को अलग करने की लैब अमेरिका की मदद से लगाई थी। इस लैब का संचालन अमेरिका की कंपनी एबीएस- एनिमल ब्रीडिंग सर्विस, द्वारा किया जा रहा था। यह लैब हर साल बछिया के छह लाख सीरम यूनिट का उत्पादन कर रही थी।
टेंडर फंस गया था विवादों में
पिछले दिनों इसका टेंडर विवादों में फंस गया था। दरअसल, टेंडर प्रक्रिया में तीन कंपनियों का भाग लेना आवश्यक था। वहीं, यह तकनीक अमेरिका की एबीएस और एसटी जेनेटिक्स कंपनियां ही करती थीं। तीसरी कंपनी के सामने नहीं आने से सरकार ने इस लैब के टेंडर का नवीनीकरण नहीं किया। अब कंपनी ने अपनी लैब का सामान समेटना आरंभ कर दिया है। इसको पुणे में शोध के लिए स्थापित किया जाएगा।
अब स्वदेशी तकनीक होगी और सस्ता उत्पादन
अभी तक मेल-फीमेल सीरम को छांटने वाली तकनीक अमेरिका के ही पास थी। अमेरिकी लैब द्वारा सरकार से सीरम की एक डोज का 760 रुपया वसूला जा रहा था। हालांकि, पशुपालकों को यह सौ रुपये में ही दी जा रही थी। शेष धनराशि पर सरकार का अनुदान होता था।
अब मेल-फीमेल सीरम की छंटनी वाली भारतीय तकनीक तैयार हो गई है। सभी परीक्षण पर पूरी होने के बाद सरकार ने अमेरिकी तकनीक को अलविदा कहने का निर्णय लिया है।
एनडीडीबी ने अपनी तकनीक पर आधारित लैब तैयार करने की योजना बना ली है। अब बाबूगढ़ में भारतीय तकनीक वाली लैब स्थापित की जाएगी। यह लैब हर साल 20 लाख सीरम डोज तैयार करेगी। इस पर सरकार का खर्च भी मात्र 260 रुपये आएगा। एनडीडीबी की लैब का निर्माण फरवरी से आरंभ कर दिया जाएगा। यह तीन महीने में उत्पादन आरंभ कर देगी।
पिछले दिनों वरिष्ठ आइएएस और प्रमुख सचिव पशुपालन मुकेश मेश्राम ने अति हिमीकृत वीर्य अवशीतन केंद्र का निरीक्षण किया था। तब उन्होंने बहुत जल्द भारतीय तकनीक से तैयार सीरम का वितरण करने की जानकारी दी थी।
सीरम को छांटना सस्ता होगा
"अमेरिकी लैब की टेंडर प्रक्रिया में समस्या आ रही थी। वहीं उनकी तकनीक काफी महंगी पड़ रही थी। ऐसे में सरकार ने टेंडर का रिन्यूवल नहीं किया है। एबीएस कंपनी ने अपना सामान समेटना आरंभ कर दिया है। जनवरी से पशुपालन के डेयरी विभाग की अपनी लैब की स्थापना आरंभ हो जाएगी। भारतीय तकनीक से सीरम को छांटना सस्ता होगा और यह अपनी स्वदेशी तकनीक होगी।"
-डाॅ. संजीव कुमार, ज्वाइंट डायरेक्टर-वीर्य अवशीतन केंद्र।
एनडीडीबी स्वदेशी तकनीक
"एनडीडीबी स्वदेशी तकनीक है। इससे स्वदेशी को बढ़ावा मिलने के साथ ही राजस्व की बचत होगी और बेहतर गुणवत्ता का सीरम प्राप्त होगा। इसकी तैयारी कर ली गई है। कुछ औपचारिकता के बाद लैब का संचालन आरंभ कर दिया जाएगा।"
-धर्मपाल सिंह, पशुपालन एवं डेयरी मंत्री उत्तर प्रदेश।
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