Year Ender 2025: हापुड़ की राजनीति में साल भर रही उथल-पुथल, चाय के प्याले से उठी राजनीति की दिल्ली से लखनऊ तक रही गूंज
हापुड़ में वर्ष 2025 राजनीतिक उठापटक और विवादों से भरा रहा। शहर विधायक विजयपाल आढ़ती चाय विवाद और पैसों के लेन-देन को लेकर चर्चा में रहे, यहां तक कि प ...और पढ़ें

ब्लाक में चाय पर विवाद के बाद डीएम को मामले की जानकारी देते विधायक विजयपाल आढ़ती।साथ में बीडीओ श्रुति सिंह और भाजपा प्रवक्ता सुयश वशिष्ठ।
ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। बीता साल हापुड़ में राजनीतिक उठापटक के नाम रहा। छोटा जिला होने के बावजूद पूरे साल विवादों में घिरा रहा। यों तो सपा, बसपा, कांग्रेस और भाजपा सभी में उठापटक रही, लेकिन सबसे ज्यादा विवादों में शहर विधायक रहे।
ब्लॉक में चाय पीने के मामले में उनसे बदसलूकी की गई। यह मामला लखनऊ से लेकर दिल्ली तक सत्ता के गलियारों में चर्चाओं में रहा। वहीं रुपयों के लेन-देन के विवाद में तहसील चौराहे पर जमकर गाली-गलौंच हुई।
वहीं विधायक जिले के प्रभारी मंत्री से विवाद के चलते समीक्षा बैठक को छोड़कर बाहर निकल आए। बसपा व भाजपा में जिलाध्यक्ष को लेकर पूरे साल उठापटक का दौर चलता रहा। सबसे ज्यादा विवाद कांग्रेस और सपा में जिलाध्यक्ष व उनके साथियों के साथ होता रहा। यह पार्टियां भी चर्चाओं में रही।
भाजपा में जिलाध्यक्ष का बदलाव भी चर्चा का विषय रहा
भाजपा में जिलाध्यक्ष का बदलाव भी चर्चाओं में रहा। इसके साथ ही ग्राम पंचायत व जिला पंचायत चुनावों को लेकर भी राजनीति गांव-गलियारे तक छा गई है।
राजनीतिक पृष्टभूमि पर विचार किया जाए तो हापुड़ इस मामले में अनोखी विशेषता संजोए हुए हैं। यह तीन विधानसभा क्षेत्र वाला छोटा सा जिला है। उस पर खासियत यह है कि तीन एमएलए के साथ ही जिले में तीन एमपी भी लगते हैं। यहां के तीनों विधानसभा क्षेत्र अलग-अलग तीन संदीय क्षेत्रों में आते हैं।
हापुड़ विधानसभा क्षेत्र के मतदाताओं के सांसद मेरठ लोकसभा सीट से अरुण गोविल हैं। वहीं गढ़मुक्तेश्वर विधानसभा क्षेत्र के मतदाता अमरोहा संसदीय क्षेत्र में और धौलाना विधानसभा क्षेत्र के मतदाता गाजियाबाद संसदीय क्षेत्र में आते हैं। ऐसे में हापुड़ में तीन लोकसभा क्षेत्र भी लगते हैं।
यह बात अलग है कि तीनों की संसदीय क्षेत्रों में हापुड़ के मतदाताओं के साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार किया जा रहा है। सांसद निधि के हिस्से में से अपनी विकास निधि भी उपलब्ध नहीं हो पाती है। उसके बावजूद हापुड़ राजनीतिक गलियारों में चर्चित रहता है।
चाय के प्लाले से उठा तूफान
चाय के प्याले में तूफान वाली कहावत भले ही छोटे मामले को बेवजह का तूल देने के लिए प्रयुक्त की जाती हो, लेकिन बीते साल हापुड़ से चाय के प्याले से उठे राजनीतिक तूफान की चर्चा दिल्ली से लेकर लखनऊ तक के राजनीतिक गलियारों में रही। शहर विधायक विजयपाल आढ़ती को सदर ब्लाक में मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था।
वह सरकार की उपलब्धियों की जानकारी देने के लिए बुलाए गए थे। पिछले दिनों आयोजित इस कार्यक्रम के बाद उनको चाय आफर की गई। काफी देर तक चाय नहीं आने पर विधायक ने विलंब होने के बारे में जानकारी की। इस पर एडीओ पंचायत ने उनसे बदसलूकी कर दी।
विधायक के साथ ही मुख्यमंत्री और राष्ट्रपति तक के लिए अमर्यादित भाषा का प्रयोग किया गया। यह मामला राजनीतिक गलियारों में महीनों तक चर्चाओं में रहा। बाद में आरोपित एडीओ को सस्पेंड कर दिया गया।
विधायक पर लगे रुपये वापस न करने के आरोप
वहीं शहर विधायक विजयपाल आढ़ती के साथ तहसील चौराहे पर भी बदसलूकी की गई। वरिष्ठ भाजपा नेता जयभगवान शर्मा पिंटू के पांच लाख रुपये विधायक की ओर होने की बात कही गई। विधायक पर रुपया वापस नहीं करने का आरोप लगा।
इसको लेकर विधायक और पिंटू में जमकर गाली-गलौंच हुई। बाद में भाजपा नेताओं ने समझौता कराकर विधायक से रुपये वापस कराए और दोनों में समझौता कराया।
पिछले सप्ताह ही उपेक्षा का आरोप लगाकर शहर विधायक जिले के प्रभारी मंत्री कपिल देव अग्रवाल की समीक्षा बैठक को छोड़कर बाहर आ गए थे। यह मामला जोरदार चर्चाओं में रहा। वहीं गढ़ रोड पर नाले के शिलान्यास कार्यक्रम में विधायक के आमंत्रित होने के बावजूद सांसद अरुण गोविल द्वारा उनको नहीं बुलाने के आरोप लगाए गए।
वहीं पिछले दिनों एक सड़क के उदघाटन कार्यक्रम के पोस्टर-बैनर पर सांसद के साथ शहर विधायक का नाम नहीं होने पर जबरदस्त चर्चाओं का दौर जारी रहा।
सपा-कांग्रेस में भी रहा विवादों का दौर
सपा जिलाध्यक्ष बबलू प्रधान पर पार्टी पदाधिकारियों द्वारा बदसलूकी करने और धमकी देने के आरोप लगाए गए। इस मामले ने जबरदस्त तूल पकड़ा। वहीं पूरे साल भाजपा की ही तरह सपा की खेमेबंदी भी काबू में नहीं आ सकी। इसी प्रकार कांग्रेस में भी शहर व जिलाध्यक्ष राकेश त्यागी का विवाद जोरदार चर्चाओं में रहा। शहर अध्यक्ष ने इस मामले में खुलकर बयान भी दिया। हालांकि बाद में जिलाध्यक्ष की सूझबूझ के चलते मामले को संभाल लिया गया और पार्टी संगठन को एकजुट करके अभियान आरंभ कर दिए गए।
भाजपा में जिलाध्यक्ष के चयन को लेकर पूरे साल मामला गर्म रहा। बार-बार जिलाध्यक्ष्ज्ञ बदलने की चर्चाएं होती रहीं। जिले के 57 कार्यकर्ता जिलाध्यक्ष की दावेदारी करने वालों में शामिल रहे। हालांकि साल के अंत में पार्टी हाईकमान ने आरक्षित श्रेणी से कविता माधरे को जिलाध्यक्ष बनाकर चर्चाओं पर विराम लगाया। हालांकि पार्टी की गुटबाजी के चलते उनकी राह अासान नहीं हैं।
बसपा में चलता रहा विवाद
सबसे उठापटक बसपा में देखने को मिली। एक ओर जहां पूर्व मुख्यमंत्री मायावती ने अपने संबंधी व चेयरपर्सनपति श्रीपाल को ही पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। वहीं जिलाध्यक्ष डा. एके कर्दम को बदलकर एडवोकेट केपी सिंह को जिलाध्यक्ष बना दिया गया। इस दौरान जोरदार चर्चा रही कि केपी सिंह को श्रीपाल सिंह का समर्थन है। इसकी सूचना मिलते ही पार्टी सुप्रीमो मायावती आग बबूला हो गईं और दो सप्ताह बाद ही केपी सिंह को हटाकर दोबारा से डा. ऐके कर्दम को जिलाध्यक्ष बना दिया गया।
यह भी रहेगा दिलचस्प
- भाजपा जिलाध्यक्ष के सामने जिला कमेटी बनाना होगा अग्निपरीक्षा।
- विभिन्न राजनीतिक दलों में जिला पंचायत का टिकट लेने वालों की है लंबी लाइन।
- ग्राम पंचायत के चुनावों में भी पार्टीगत राजनीति पकड़ेगी तूल।
- आजाद समाज पार्टी जिले की राजनीति में जगह बनाने का कर रही है प्रयास।

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