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    बाढ़ में बह गई बिटिया की शादी की उम्मीद, सैकड़ों किसानों के सपने पूरी तरह हुए बर्बाद

    Updated: Tue, 16 Sep 2025 11:16 AM (IST)

    हापुड़ में एक महीने की बाढ़ ने किसानों के खेतों और सपनों को डुबो दिया है। धान गन्ना और सब्जियों की फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गई हैं जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति खराब हो गई है। कई परिवारों को अपनी बेटियों की शादी टालनी पड़ी है। किसान अब कर्ज चुकाने और रोजी-रोटी के लिए संघर्ष कर रहे हैं।

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    बाढ़ में बह गए हापुड़ के किसानों के सपने। जागरण

    ठाकुर डीपी आर्य, हापुड़। हापुड़ में एक महीने की बाढ़ ने इस बार सिर्फ खेत ही नहीं डुबोए, बल्कि कई घरों के सपनों को भी बहा दिया है। बाढ़ की चपेट में आईं फसलें किसानों की मेहनत और उम्मीद पर पानी फेर गईं। धान, गन्ना, सब्जी और मक्का जैसी प्रमुख फसलें पूरी तरह बर्बाद हो गईं।

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    वहीं, अब किसानों के सामने सिर्फ खाली खेत पड़े हैं और जेब भी खाली हैं। हफ्तेभर की लगातार बारिश ने जिले के अन्य क्षेत्रों में भी खेतों को तालाब बना दिया। धान की बालियां मिट्टी में समा गईं, गन्ने की फसल बह गई और सब्जी की पैदावार खेत से सीधे बाढ़ में जाकर बह गई।

    किसानों ने पूरे साल की उम्मीदें जिस मिट्टी में बोई थीं, उसी मिट्टी ने अब सब कुछ निगल लिया। फसल गई, तो शादी के सपने भी गए। गांव के कई परिवार अपनी बेटियों की शादी के लिए फसल पर ही टकटकी लगाए बैठे थे। अब बाढ़ ने खेत के साथ-साथ घर की चौखट पर सजे सपनों को भी बहा डाला। अब खेतों से धान की जगह धानुका (कर्ज) हाथ आएगा।

    गंगा के तटीय क्षेत्रों में खेती करने वाले किसान इस साल बेहाल हो गए हैं। लगातार एक महीने तक रही बाढ़ औने खेतों को तालाब बना दिया। धान की बालियां मिट्टी में समा गईं, गन्ने की फसल बह गई और सब्जी की पैदावार खेत से सीधे गंगा में जा मिली। किसानों ने पूरे साल की उम्मीदें जिस मिट्टी में बोई थीं, उसी मिट्टी ने अब सब कुछ निगल लिया।

    कई परिवार अपनी बेटियों की शादी के लिए फसल की पैदावार पर ही नजर जमाए थे, लेकिन बाढ़ ने खेत के साथ-साथ घर की चौखट से सजे शादी-आयोजनों के सपनों को भी बहा लिया। खाद्यान्न के साथ ही पशुओं का चारा भी पानी में बह गया। छोटे किसान अब बैंक और साहूकार के चक्कर लगाने को मजबूर हैं। जिनकी एक-दो बीघा जमीन थी, वह अब नंगे पांव खड़े हैं।

    गंगानगर के किसान ने बताया कि सालभर बेटी की शादी के लिए जोड़ा गया धान बेचकर दहेज और खर्च का इंतज़ाम करने का सपना देखा था। बाढ़ की धाराओं ने खेत ही लील लिए। धान बिकता तो बिटिया की विदाई धूमधाम से होती। किसानों ने बीज, खाद और सिंचाई के लिए साहूकारों और बैंकों से कर्ज़ लिया था। क्षेत्र के 99 प्रतिशत किसानों पर केसीसी का कर्ज है।

    उम्मीद थी कि फसल कटने पर सब चुकता हो जाएगा। मगर अब हालात उलटे हैं। गांवों में यही हाल लगभग हर किसान का है। पशुओं का चारा भी बह गया है। घरों में अब रोजी-रोटी का संकट सामने है। बच्चों की पढ़ाई, बेटियों की शादी और परिवार की दवा-इलाज तक सब अनसुलझे सवालों की तरह जीवन को उलझा रहे हैं।

    चक लठीरा के प्रधान निरंजन सिंह और गढ़ावली के प्रेमसिंह ने बताया कि गांव में दो दर्जन परिवारों को अपने शादी-विवाह के आयोजन टालने पड़े हैं। जिन परिवारों के बच्चे शहरों में पढ़ रहे हैं, उनकी सालभर की फीस पैदावार की बिक्री से ही जाती थी। सौ से ज्यादा परिवारों को अपने मकानों की मरम्मत पर लाखों रुपये खर्च करने होंगे।

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    वहीं, जलभराव रहने से क्षेत्र में बीमारियां फैल रही हैं। लोगों के पास उपचार के लिए भी धनराशि नहीं है। बैंकों ने केसीसी रिन्यू करने से इंकार कर दिया है। हालात यह हैं कि लो किसान कल तक साहूकार थे, आज उनकी हालत बदहाल है। बाढ़ ने गांवों की आर्थिक स्थिति को तबाह कर दिया है।

    अभी फसलों को होने वाले नुकसान का सही आंकलन नहीं हो सका है। हमारी टीम लगी हुई हैं। गंगा का जलस्तर कम होने के साथ ही फसलों की स्थिति का आंकलन किया जाएगा। उसकी रिपोर्ट शासन को भेजी जाएगी, जिसके बाद मुआवजा दिया जाएगा। वास्तव में फसलों में नुकसान बहुत ज्यादा है। - संदीप कुमार - अपर जिलाधिकारी