हापुड़ की धौलाना तहसील में लेखपाल-तहसीलदार-एसडीएम का गठजोड़, नामांतरण के लिए 72 किसान पांच साल से काट रहे चक्कर
हापुड़ की धौलाना तहसील में नामांतरण के लिए 72 किसान पिछले पांच सालों से परेशान हैं। किसानों का आरोप है कि लेखपाल, तहसीलदार और एसडीएम की मिलीभगत से नामांतरण प्रक्रिया में देरी हो रही है, जिससे उनका शोषण हो रहा है। वे लगातार तहसील के चक्कर काट रहे हैं, पर समस्या का समाधान नहीं हो रहा।

प्रतीकात्मक तस्वीर।
अरुण सिंह, धौलाना। जमीन के वैध कागजात, हाईकोर्ट द्वारा भू-अभिलेख में नाम दर्ज करने के आदेश, डीएम द्वारा त्वरित कार्रवाई को लिखी गई टिप्पणी के बावजूद यदि आपको रोजाना दर्जनों किसान भटकते दिखाई दें, तो समझिए वह तहसील धौलाना है। यहां पर जमीन के सैकड़ों मामले वर्षों से लंबित हैं। अधिकारी हैं कि टरकाने से ज्यादा कुछ करने को तैयार नहीं है। हाईकोर्ट तक के आदेशों का पालन नहीं किया जा रहा है।
रिश्वत का भी प्रतिशत तय
आलम यह है कि रिश्वत का भी प्रतिशत तय किया हुआ है। जब तक सर्किंल रेट का एक प्रतिशत रिश्वत अधिकारी-कर्मचारी को नहीं मिल जाती है, तब तक वह किसान का काम करने को तैयार नहीं होते हैं। यही कारण है कि लगभग दो करोड़ रुपया रिश्वत देने के बाद भी किसान भगवत सिंह की जमीन का नाम हस्तांतरण नहीं किया गया। भगवत सिंह जैसे ही 72 अन्य किसान धौलाना तहसील में सालों से एसडीएम, लेखपाल व तहसीलदार के बीच चकरघिन्नी बनें हुए हैं।
कार्य कई महीने से लटका
राजस्व अभिलेख में संशोधन का एक कार्य कई महीने से लटका हुआ था। पीड़ित किसान ने डीएम से गुहार लगाई। डीएम ने त्वरित कार्रवाई के आदेश दिए। नियमानुसार यह कार्य तीन दिन में हो जाना चाहिए था। उसके बावजूद एसडीएम द्वारा एक महीने तक मामले को लटकाए रखा गया। इस मामले में डीएम ने स्पष्टीकरण मांगा, तब कहीं जाकर किसान का कार्य हो पाया।
दूसरी पीढ़ी अब पैरोकारी में उतरी
यह पहला मामला नहीं है। धौलाना तहसील क्षेत्र में जमीनों के ज्यादा मामले लंबित हैं। किसान अपनी जमीन के कागजात दुरुस्त कराने के लिए लगातार तहसीलों के चक्कर लगा रहे हैं। किसानों को लेखपाल, नायब तहसीलदार, तहसीलदार और एसडीएम-लिपिक तक सभी यहां से वहां भटकाते रहते हैं। कई किसानों की दूसरी पीढ़ी अब पैरोकारी में उतर आई है, लेकिन समाधान हाथ नहीं लग रहा है।
किसान पांच साल से चक्कर लगा रहे
हजारों रुपया रिश्वत में देने के बाद भी कर्मचारी काम नहीं करते हैं और अधिकारी उनका संरक्षण करते हैं। दरअसल, लेखपाल-तहसीलदार और एसडीएम के गठजोड़ ने कार्य करने का अपना नया तरीका निकाला हुआ है। वह किसानों की जमीन के सर्किल रेट का एक प्रतिशत रिश्वत के रूप में वसूल रहे हैं। रिश्वत का यह खुला खेल तहसील स्तर के अधिकारियों के संज्ञान में है, लेकिन मिलीभगत के चलते कार्रवाई नहीं होती है। अकेले धौलाना तहसील में ही ऐसे 72 किसान पांच साल से चक्कर लगा रहे हैं।
यह है मामला
2012 में तत्कालीन मुख्यमंत्री मायावती ने धौलाना तहसील का सृजन किया गया था। हालांकि नई तहसील बनने के बाद से ही यह क्षेत्र लगातार सुर्खियों में रहा है। कभी विकास कार्यों के कारण, तो अधिकतर भ्रष्टाचार और अवैध गतिविधियों को लेकर। बीते पांच वर्षों में तहसील क्षेत्र के अनेक गांवों में जमीनों के दामों में तेजी से बढ़ोतरी दर्ज की गई है।
जमीन की कीमतें बढ़ने के साथ ही भूमाफियाओं की सक्रियता भी तेजी से बढ़ी है, जिसका सीधा प्रभाव तहसील की कार्यप्रणाली पर पड़ा है। स्थानीय लोगों का आरोप है कि धौलाना तहसील में भ्रष्टाचार अब चरम पर पहुंच चुका है। यहां लगभग हर सरकारी कार्य के अपने फिक्स रेट तय हो चुके हैं। हाईकोर्ट के आदेशों के बावजूद एक करोड़ रुपये का हस्तांतरण 10 लाख रुपये से कम की रिश्वत के बिना नहीं किया जा रहा है।
यदि भूमि से संबंधित कोई विवाद हो, तो यह रकम और ज्यादा हो जाती है। इसी तरह, खेत की नाप-जोख करवाने में भी लेखपाल की जेब गर्म किए बिना काम आगे नहीं बढ़ता। खतौनी संशोधन हो या खाता बंटवारा किसी भी स्तर पर किसान सरलता से अपना कार्य नहीं करा पाता, जबकि बड़े भूमाफिया फोन पर अपना काम करवा लेते हैं।
शासन ने हर राजस्व कार्य के लिए स्पष्ट समय-सीमा निर्धारित की गई है, लेकिन धौलाना तहसील में अवैध वसूली के आगे समय-सीमा का कोई महत्व नहीं रह गया है। जनता का आरोप है कि जब तक रिश्वत न दी जाए, तब तक न फाइल चलती है, न ही न्याय मिलता है।
"किसानों की सुनवाई के लिए रोजाना आफिस में बैठ रहा हूं। यदि मामला न्यायसंगत है तो प्राथमिकता पर कार्य भी किया जा रहा है। किसानों के लिए अब अलग से एक घंटे का समय जमीन संबंधी मामलों के समाधान के लिए ही दिया जाएगा। किसी को परेशान नहीं होने दिया जाएगा।"
-मनोज कुमार, एसडीएम, धौलाना।
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