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    भूतों से जुड़ा हैं दत्तियाना का लाल मंदिर का इतिहास, पढ़ें रोचक स्‍टोरी

    By Prateek KumarEdited By:
    Updated: Mon, 31 Aug 2020 04:10 PM (IST)

    मंदिर के पुरोहित राकेश स्वामी ने बताया कि वैसे तो इस मंदिर पर दूरदराज से भोले के भक्त श्रावण और फाल्गुन माह की शिवरात्रि पर जलाभिषेक करने के लिए आते हैं।

    भूतों से जुड़ा हैं दत्तियाना का लाल मंदिर का इतिहास, पढ़ें रोचक स्‍टोरी

    गढ़मुक्तेश्वर [प्रिंस शर्मा]। सिंभावली क्षेत्र के गांव दत्तियाना में लाल मंदिर के नाम से प्रसिद्ध शिव मंदिर में प्रतिदिन श्रद्धालु पूजा करने आते हैं। इस मंदिर में दूरदराज से आने वाले हजारों शिवभक्त फाल्गुन, श्रावण माह में भगवान शिव का जलाभिषेक करते हैं। मान्यता है कि इस मंदिर में मनोकामना लेकर आने वाले भक्त यदि पूर्ण आस्था के साथ भोलेनाथ की अर्चना करते हैं, तो उनकी मनोकामना अवश्य पूरी होती है। 

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    मंदिर का इतिहास

    गांव दतियाना दिल्ली-लखनऊ राष्ट्रीय राजमार्ग से लगभग आठ किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। यहां स्थापित शिव मंदिर गांव को एक अलग पहचान दिलाता है। लाल ईंटों से बने इस मंदिर की भव्यता व निर्माणकला को देख कर लोग दंग रह जाते हैं। ग्रामीणों के अनुसार, कई सौ वर्ष पुराने इस मंदिर को एक ही रात में भूतों ने बनाया गया था, लेकिन दिन निकलने तक मंदिर की चोटी का निर्माण नहीं हो पाया था। दिन निकलने के बाद भूत गायब हो गए, इस कारण यह अधूरा रह गया था। मंदिर की चोटी का निर्माण बाद में राजा नैन सिंह ने कराया था।

    मंदिर की विशेषता

    मंदिर की विशेषता यह है कि इसके निर्माण में किसी तरह की मिट्टी अथवा चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। इसके निर्माण में बड़ी ही महीन और उत्कृष्ट कारीगरी का प्रदर्शन किया गया है। तेज धूप और बरसात के पानी का भी मंदिर के भवन पर कोई असर नहीं होता है। ग्रामीणों के अनुसार, इस मंदिर की लगभग 600 मीटर की परिधि में कोई आपदा असर नहीं करती है। जब क्षेत्र में ओलावृष्टि होती है तो यह मंदिर पर इन आपदाओं का कोई प्रभाव नहीं होता है।

    मुख्य द्वार पर चारों धर्मों की झलक

    मंदिर के मुख्य द्वार पर हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई के प्रतीक चिह्न दिखाई देते हैं। इन्हें देखने के लिए उत्तर प्रदेश के विभिन्न जनपदों के अलावा दिल्ली, हरियाणा आदि प्रांतों के श्रद्धालु आते हैं।

    क्या कहते है मंदिर के पुरोहित

    मंदिर के पुरोहित राकेश स्वामी ने बताया कि वैसे तो इस मंदिर पर दूरदराज से भोले के भक्त श्रावण और फाल्गुन माह की शिवरात्रि पर जलाभिषेक करने के लिए आते हैं। सर्वप्रथम गांव के शिवभक्तों द्वारा भगवान शिव का जलाभिषेक कर मंदिर की चोटी पर झंडा चढ़ाया जाता है। उसके बाद पुरोहितों द्वारा विधिवत अन्य भोले के भक्तों का जलाभिषेक कराया जाता है।

    मंदिर कमेटी अध्यक्ष अजय त्यागी का कहना है कि गांव में स्थित इस शिव मंदिर पर शिवभक्तों के ठहराव के लिए विशेष व्यवस्था कराई जाती है। मंदिर में शिवभक्तों के जल चढ़ाने के लिए अलग लाइन लगाई जाती है। जबकि गांव की महिला पुरुषों को जल चढ़ाने के लिए अलग व्यवस्था कराई जाती है।