देखा है कहीं 103 साल का जवान, अकेले ही बना डाला तालाब
जिंदगी के मायने कोई इनसे सीखे जोश इतना कि अकेले दम पर तीन एकड़ का तालाब खोद डाला, चुस्ती-फुर्ती इतनी कि अच्छा खासा जवान भी मात खा जाए।
हमीरपुर (राजीव त्रिवेदी)। मन में जज्बा और जिगर में हौसला होना चाहिए। उम्र की क्या मजाल कि बाधा डाले। आज अंतर्राष्ट्रीय वृद्ध दिवस है। आइये मिलते हैं 103 साल के ब्रजनाथ राजपूत से। तमाम वृद्धजनों के लिए ये एक शानदार मिसाल हैं। एक जीवंत प्रेरणास्नोत।
जिंदगी के मायने कोई इनसे सीखे। जोश इतना कि अकेले दम पर तीन एकड़ का तालाब खोद डाला। चुस्ती-फुर्ती इतनी कि अच्छा खासा जवान भी मात खा जाए। क्या है इनकी सेहत का राज? जीने का वह जज्बा जिसने इन्हे 103 की उम्र में भी मानो जवान बनाए रखा है। आइये जानते हैं।
कौन हैं ये बुजुर्गवार: उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले में एक छोटे से गांव बरहारा में रहते हैं ब्रजनाथ राजपूत। यहीं 1914 में इनका जन्म हुआ था। न तो ये योगी हैं। न ही सन्यासी। कभी होमगार्ड थे। अब ठेठ किसान हैं। खेत में कुटिया बनाकर रहते हैं। खुद ही खेती करते हैं। जल संचय के तमाम जुगाड़ करने में माहिर हैं। बागवानी इनका शौक है। और गौ-सेवा भी मन लगाकर करते हैं।
खुद तैयार किया तालाब: पांच वर्ष से की मेहनत के बाद उन्होंने तीन एकड़ का तालाब खुद ही तैयार किया है। भरा-पूरा परिवार है। लेकिन खेती और बागवानी का इतना शौक है कि खेत में ही कुटिया बनाकर रहते हैं। पिछले 40 साल से यही कुटिया इनका आशियाना है। कहते हैं, टीवी-मोबाइल और दुनियादारी की चिंताओं से दूर यहां एकांत में बहुत सुकून मिलता है।
ये है इनकी दिनचर्या: ब्रजनाथ पूरे इत्मीनान से कहते हैं, इन बूढ़ी हड्डियों में अभी इतनी ताकत बाकी है कि मनमुताबिक जीता हूं। जो चाहता हूं करता हूं। खेती और बागवानी मेरी जिंदगी में शामिल है। यह काम मुझे भरपूर आनंद देता है। मैं सुबह पांच बजे से पहले उठ जाता हूं। तालाब, खेत और बाग में काम करता हूं। गौ सेवा करता हूं। दोपहर में थोड़े आराम के बाद शाम होने तक यही सब काम करता हूं। बाग में आंवला, नींबू, करौंदा और फलों के पेड़ लगाए हैं। बेचने के लिए नहीं हैं। फलों को गांव वालों में बांट देता हूं। बागवानी के लिए पानी की समस्या हो रही थी, इसलिए तालाब तैयार किया है।
सधा हुआ खानपान: ब्रजनाथ कहते हैं, मेरी सेहत का राज मेरी नियमित दिनचर्या, सधा हुआ खानपान और मन से की गई मेहनत-मशक्कत है। मैं किसी बात की चिंता कभी नहीं करता। सुबह उठने के बाद सबसे पहले पानी पीता हूं। नित्यक्रिया के बाद देसी गाय का दूध पीता हूं। दिन के भोजन में केवल दूध-रोटी व दलिया ही लेता हूं। दोपहर में कुछ देर आराम करता हूं। शाम को बाग में साफ-सफाई करता हूं। रात में घर से पूरा खाना आता है। खाना खाकर कुछ देर में सो जाता हूं। सुबह जल्दी उठता हूं।
कभी करते थे पहलवानी: ब्रजनाथ बताते हैं कि जवानी में उन्हें पहलवानी का शौक था। तभी से वे सेहत का खयाल रखते आए हैं। वह कहते हैं, जब तकरीबन 35 वर्ष का था, तब झांसी, लखनऊ, उरई, बांदा में कई दंगलों में बाजी मारी। 1950 में होमगार्ड की ट्रेनिंग पूरी की। तीन रुपए प्रतिमाह वेतन पर काम किया। 1966 में स्वामी ब्रह्मानंद के साथ गौ आंदोलन में एक माह तिहाड़ जेल में बंद रहा।
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कर्म बना लिया।कोई बीमारी नहीं: ब्रजनाथ से जब पूछा कि क्या आप योग करते हैं, तो उन्होंने तपाक से कहा कि खेती में सभी योगासन हो जाते हैं। आज तक कभी योग नहीं किया। सिर्फ खेतों में पसीना बहाया और अनाज पैदा किया। अब तक कोई भी गंभीर बीमारी नहीं हुई। बुखार आ जाने पर देसी दवा कर लेता हूं। काढ़ा, नीम पत्ती, दतून का सेवन रोज करते हैं। एक गाय पाल रखी है। जिसकी व मन लगाकर सेवा करता हूं। गाय के दूध को कच्चा ही पीता हूं।
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